अंजुली भर क्षीर को तरसती धरती की कोख

खबर नेशन / Khabar Nation

दर्शनी प्रिय

छुटपन में जब हमने अंजुली भर नन्हीं-नन्हीं बूंदों को अपने भीतर समेटा होगा तब मन तरंग की उठती आवर्तियों ने हमारे भीतर के खिलंदरेपन को फिर जगाया होगा। वो कागज की कश्ती और उस कश्ती पर सवार हमारा बालमन उन आह्लादित पलों में कितनी उम्र जी गया होगा ये भाव आज भी मन को गुदगुदाता और रोमांचित करता है। बारिश और मन परस्पर ऐसे गूँथे है जैसे प्राण और शरीर। कितनी हैरानी है कि बचपन की स्मृतियों में बसी बारिश आज अपने अस्तित्व के संकट से जूझ रही है। जल ने हमे जीवन दिया, बचपन दिया बदले में हमने उसे सूनी कोख दी, मरी हुई तपती आत्मा दी। पानी अंजुली भर बचा रहे ये प्रयास जरूरी है। वैसे भी जल जीवन का सार है जीवन का आधार भी। वर्तमान समय में बढ़ते जल संकट ने जल प्रबंधन की महत्ता को बढ़ा दिया है। सदी की सबसे भंयकर चुनौती हमारे समक्ष यक्ष प्रश्न बनकर खड़ी है। हाल हीं में सरकार द्वारा इसे राष्ट्रीय हित का मुद्दा बताये जाने से स्थिति की भयावहता औऱ अपरिहार्यता की ओर स्वतः ध्यान केन्द्रित हो जाता है। बेरोजगारी,शिक्षा और आंतकवाद से इतर जल समस्या एक अन्य ज्वलंत मुद्दा बनकर उभरा है। जितनी तेजी से देश विकास के पथ पर अग्रसर हो रहा है उतनी हीं तेजी से जल संसाधनों की उपलब्धता में कमी आ रहीं है। जाहिर है जितने अधिक कल-कारखानें और उद्य़ोग-धंधे खुलेगें उतनी हीं अधिक मात्रा में जल और जल-संसाधनों की आवश्यकता होगी। विकास की नींव पर जल से जुड़े स्त्रोंतो का जिस प्रकार अंधाधून दोहन हो रहा है वह सांसत में डालने वाला है। जल जीवन का सबसे जरुरी अवयव है इसके बिना जीवन की कल्पना बेमानी है। हैरानी की बात है कि मानव हित से जुड़े इतने महत्वपूर्ण मसले को अब तक हासिये पर धकेला जाता रहा है। देश में जल-प्रबंधन को लेकर अब तक कोई माकूल नीति नहीं बनाई गई ना हीं इसके लिए कोई गंभीर प्रयास किये गये। वर्षा जल-संचयन को तो छोड़ दें हमारे यहां पानी के उपलब्ध स्त्रोतों के प्रबंधन की कोई आधिकारिक व्यवस्था नहीं। दक्षिण भारत के कुछ शहरों को छोड़ दें तो उत्तर भारत में जल-संचयन और जल-प्रबंधन जैसी व्यवस्थाओ के बारे मे लोगों को पता भी नहीं । आमजनों में जल-संचयन को लेकर व्याप्त अनभिज्ञयता हैरानी पैदा करती है। 

यूनिसेफ की एक रिपोर्ट के अनुसार वैश्विक रूप से 844 लाख लोग पीने के पानी की कमी झेल रहे है। हर इक्कीस सेकेंड में एक बच्चा पानी की कमी से मर रहा है। एक आंकड़े के अनुसार देश की आजादी के समय प्रति व्यक्ति  लगभग 100 लीटर पानी उपलब्ध था लेकिन आज ये घटकर 30 लीटर हो चुका है। दूसरी ओर पानी के संसाधनों की कमी के चलते धरती से 83 प्रजातियां लुप्त हो चुकी हैं। एक अध्ययन के अनुसार सन् 1989 तक केवल 22 नदियां हीं प्रदूषित थी जो आज बढ़कर 302 तक पहुंच चुकी हैं इस सूची में झीलें औऱ तालाब शामिल नहीं है। गोदावरी का जल स्त्रोत पहले हीं सूख चुका है उधर कृष्णा नदी 40 प्रतिशत तक उजाड़ हो चुकी है औऱ गंगा नदी कितने समय तक बारहमासी रह पायेगी इसका कोई ज्ञात स्त्रोत नहीं। 

जल भयावहता की बानगी पिछले दिनों हमें लातूर जैसे जिलों से मिल चुकी है जहां पानी के स्त्रोतो के आस-पास संघर्ष रोकने के लिए सुरक्षाकर्मियों को तैनात किया गया था । हालात बद्दतर होने पर बकायदा ट्रेनों के जरिये वहां पानी पहुचांया गया । सिर्फ लातूर हीं क्यों देश के कई अन्य जिले पानी की भारी किल्लत से दो-चार हो रहे हैं। एक अनुमान के मुताबिक आने वाली सदी में जल के उलब्ध 30 प्रतिशत से अधिक स्त्रोत विलुप्त हो जायेगें और आने वाली पीढ़ी को इसकी कमी से भारी मुसीबत का सामना करना पड़ सकता है। इस बात की भी आशंका जतायी जाती है कि मानवजाति को जल के चलते एक अगले विश्वयुद्ध का सामना करना पड़ सकता है। कहना श्रेयस्कर होगा कि जल सकंट के रूप में मानव जाति एक बड़ी त्रासदी की ओर बढ़ रही है जिससे इस प्रजाति पर अस्तित्व के खतरें मंडराने लगे हैं। 

धयातव्य है कि जल संकट की समस्या एकदम से नहीं खड़ी हुई है। सालों से उचित रख-रखाव और लाचार नीतियों के आभाव में जल के ज्यादातर स्त्रोत सूखते गये जिन्हें पुर्नजीवित करने की कभी कोई कोशिश नहीं की गई । अतीत में झांके तो पता चलता है कि प्रकृति ने इस सबसे बड़ी नेमत को झोली भर-भर के दिया और हमारे पुरूखों ने भी धरती की इस सबसे अमूल्य निधि को सहेजकर रखा। लेकिन कालातंर में प्राकृतिक संसाधनों पर आबादी के बढ़ते दबाब ने शैने-शैने इस थाती को हमसे छीनना शुरु कर दिया। जीवनदायिनी नदियों के उद्धार को लेकर कभी भी व्यापक स्तर पर नहीं सोचा गया। विकास की द्रुत गति ने प्रकृति के इस सबसे बड़े उपहार का तेजी से दोहन किया है।

अब वक्त आ गया है कि जलसकंट को नीति राष्ट्रीय नीति के आधार से जोड़कर इसे ज्वलंत समस्याओ की श्रेणी में खड़ा किया जाये। तभी संकट निदान की दिशा में आगे बढ़ा जा सकेगा। इसके लिए जल के परपंरागत स्त्रोतों यथा- नदियों, जलाश्यों,बाबरियों,कुंओ और नहरों को पुनर्जिवित कर उनके निरंतर प्रहाव को बनाये रखना होगा साथ हीं वर्षा जल-संचयन को प्रमुखता से जनजीवन के लोकाचार में शामिल करना होगा। पेड़ों की जड़ें, नदियों औऱ धाराओ को बनाये रखने के लिए पानी को सहेजती है अगर पेड़ों को निर्बाध गति से काटा जाता रहा तो बारिश का पानी रुक नहीं पायेगा और समुद्र में गिरकर व्यर्थ चला जायेगा। इसे बचाये रखने का एक उत्तम तरीका है कि बड़ी नदियों के किनारों पर एक किलोमीटर और छोटी नदियों के किनारे आधा किलोमीटर तक पेड़ लगाये जाये इससे पानी को सहेजा जा सकता है। इससे पहले की धरती जीवनरेखा रुपी इस संसाधन को हमसे छीनकर हमें रिफ्यूजी बना दें हमें चेतना होगा और इसके वैकल्पिक स्त्रोत ढ़ूढने होगें। 

 

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