RSS : मुगालता या मोदी का डर ?

 

 

आखिर साइलेंट क्यों?

 

गौरव चतुर्वेदी/खबर नेशन/ Khabar Nation 

 

मौसम का असर, राजनीतिक मतभेद , मुगालता या मोदी का डर लोकसभा चुनाव 2024 में राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ साइलेंट नजर आ रहा है।  भारतीय राजनीति की एक ऐसी अदृश्य शक्ति जो कदम कदम पर भाजपा के साथ खड़ी हुई नजर आई है, इस चुनाव में नदारद है। 

अगर देश में हुए प्रथम चरण के मतदान को देखें तो पिछले लोकसभा चुनाव के मुकाबले मतदान प्रतिशत में भारी गिरावट देखी जा रही है। मतदान प्रतिशत को लेकर भाजपा के रणनीतिकार चिंतित हैं और इसका तोड़ ढ़ूढने में जुटे हुए हैं। आखिर क्या कारण रहे मतदान में गिरावट के एक विश्लेषण -

 

मुगालता - भारतीय राजनीति में काम के मुकाबले हमेशा परसेप्शन को तरजीह दी जाती रही है। जो हमेशा आम चुनावों में मतदान के प्रतिशत को गिराता बढ़ाता रहा है। वर्तमान दौर में पूरे देश में एक वातावरण बना हुआ है कि भाजपा और एन डी ए 400 पार करने जा रही है। मोदी ने अपने इस लक्ष्य को साधने मतदाता और कार्यकर्ताओं को 370 का भावनात्मक नारा भी दिया है। कश्मीर से धारा 370 हटाना, राम मंदिर की प्राण प्रतिष्ठा और मोदी की आक्रामक प्रचार शैली के साथ साथ भाजपा के माइक्रो मैनेजमेंट के माहिर अमित शाह की रणनीति के बावजूद प्रथम चरण में मतदाता बड़ी तादाद में घर से बाहर नहीं निकला। मतदान के पहले से भाजपा कार्यकर्ता बैठकों में यह कहती नजर आई कि अंतिम समय तक मेहनत करना है। यह मानकर ना चलें कि हम जीत रहे हैं। भाजपा कार्यकर्ता तो बूथ लेवल तक सक्रिय रहा लेकिन संघ साइलेंट हो गया। मुगालता कहीं फीलगुड जैसा तो नहीं हो गया। 2004 में ऐसे ही इंडिया शाइनिंग ने भाजपा को सत्ता से दूर कर दिया था।

इश्यू लैस - ऐसा नहीं है मतदाताओं को लोक लुभावने वादे ना हो पर इसके बाद भी चुनाव में नीरसता बनी हुई है। पूरा टारगेट युवाओं और बुजुर्गो पर केंद्रित किया गया है। बुजुर्गो को मेडिकल सुविधा देने के बावजूद चर्चा नहीं है तो युवा अपनी समस्याओं में उलझकर जोश नहीं दिखा पा रहा है।

 

मंच- माला- माइक- इवेंट -प्रथम चरण के मतदान में जिन राज्यों में भाजपा सरकारें हैं वहां पर कम मतदान की वजह इवेंट बेस सरकार का होना रहा। खासकर विधायक और इनके समकक्ष पार्टी पदाधिकारियों ने मंच पर मजमा लूटने माला और माइक को तरजीह देते रहे।आम जनता से कनेक्टिविटी के मामले में फेल रहे। यूं भी माना जा सकता है चुनाव के जिन प्रमुख मुद्दों को जनता के बीच ये नेता ले जा सकते थे उन्हें जनता तक ले जाने की कोशिश नहीं की गई। पार्टी की साख बचाने की सारी कवायद बूथ लेवल के कार्यकर्ताओं ने की। जिससे मतदान भले कम रहा हो पर सम्मानजनक हो पाया। भाजपा के एक प्रमुख रणनीतिकार का कहना है कि अगर बूथ लेवल के कार्यकर्ताओं द्वारा बूथ पर मेहनत नहीं की जाती तो वर्तमान मतदान प्रतिशत से दस प्रतिशत मतदान और कम होता। उन्होंने मध्यप्रदेश भाजपा द्वारा बूथ पर किए गए कामों का जिक्र करते हुए कहा कि यह प्रदेश के बड़े नेताओं द्वारा बूथ लेवल के कार्यकर्ताओं से कनेक्टिविटी स्थापित होने के कारण हुआ। उन्होंने अन्य राज्यों की तुलना में मध्यप्रदेश के मतदान प्रतिशत को सम्मान जनक बताया। उन्होंने मतदान प्रतिशत में गिरावट की एक वजह प्रत्याशी चयन भी बताया। उन्होंने कहा कि दिल्ली से थोपे गए प्रत्याशीयों का जनता के साथ वैसा संबंध स्थापित नही हो पाया जैसा पहले प्रत्याशी चयन की प्रक्रिया से छनकर आए प्रत्याशियों की रहती थी।


 

मौसम का असर - राजनीतिक विश्लेषकों का मानना है कि मौसम का असर भी हो सकता है। आने वाले चरणों में तापमान और तेजी से बढ़ेगा। ऐसे में मतदाता क्या बूथ तक पहुंचेगा। हालांकि पिछले चुनावों पर नजर डालें तो ऐसे ही मौसम में मतदान होता रहा है। कई बार तो इससे भी तेज गर्मी रही है लेकिन मतदान प्रतिशत बढ़ता ही गया। अगर मौसम की बात करें तो पहले चरण के मतदान में अमूमन सभी जगह पर एक जैसा मौसम रहा। कुछ सीटों पर जबरदस्त मतदान रहा तो कुछ सीटों पर भारी अंतर निकलकर सामने आया। मध्यप्रदेश की ही बात करें तो छह सीटों पर हुए मतदान में छिंदवाड़ा, बालाघाट और मंडला में भारी मतदान हुआ लेकिन शहडोल, सीधी, जबलपुर में इन सीटों के मुकाबले काफी कम मतदान हुआ। इसी प्रकार छिंदवाड़ा, बालाघाट, और मंडला से सटे पड़ोसी राज्य की सीमावर्ती सीटों नागपुर, गोंदिया, चंद्रपुर में काफी कम मतदान सामने आया। ऐसा ही अन्य राज्यों में भी सामने आया। हालांकि एक बात को लेकर राजनीतिक विश्लेषकों का कहना है कि जिन राज्यों में या जिन लोकसभा सीटों पर कड़ा मुकाबला था वहां पर मतदान प्रतिशत ज्यादा रहा है। हालांकि पिछले लोकसभा चुनाव के मुकाबले सभी सीटों पर मतदान प्रतिशत में गिरावट देखी गई।

 

संघ की भूमिका - भारतीय जनता पार्टी के लिए पालिसी मेकर और अदृश्य शक्ति के साथ भाजपा को ताकत पहुंचाने वाली राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ का इस चुनाव में सक्रिय ना होना आश्चर्य चकित कर रहा है। पहले के चुनावों में संघ मतदान को लेकर आखिरी दिनों में सक्रिय होता था और अधिक से अधिक मतदान कराने में सफल रहता था। इस बार के चुनाव में प्रथम चरण में मतदान काफी कम रहा है। संघ देश में ठीक अपने मुख्यालय नागपुर में भी अधिक मतदान कराने में असफल रहा।एक बड़े राजनीतिक विश्लेषक का कहना है कि राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ प्रमुख तौर पर राष्ट्रवाद को लेकर काम करती है। व्यक्तिवादी राजनीति से कोसों दूर रहती है। वर्तमान राजनीतिक हालातों में भारतीय जनता पार्टी व्यक्तिवादी राजनीति पर केंद्रित हो गई है। कुछ समय पहले तक भाजपा विशुद्ध रूप से कैडरबेस संगठन के तौर पर जाना जाता था और संघ के कोर इश्यूज को प्रमुखता के साथ उठाता रहता था। 2014 के बाद मोदी के प्रधानमंत्री बनते ही कश्मीर में धारा 370 , राम मंदिर निर्माण, और सीएए जैसे संघ के कोर इश्यूज को पूरा कर दिया गया लेकिन इसका श्रेय प्रधानमंत्री होने के नाते नरेन्द्र मोदी लूटकर ले गए। हालांकि यह मोदी की योग्यता है कि वे किसी भी मुद्दे पर और किसी भी मंच पर मजमा लूटने की ताकत रखते हैं। एक प्रकार से इन दिनों भारतीय राजनीति में मोदी और शाह की जोड़ी तानाशाह प्रवृत्ति (विपक्ष खुलकर कहता है और इसी के साथ दबे स्वरों में भाजपा के नेता भी यही कहते हैं) के साथ फैसले ले रहे हैं। एक प्रकार से भाजपा में वनवे कम्युनिकेशन लागू हो चुका है। पहले संघ के फैसलों को भाजपा में आत्मसात किया जाता था लेकिन इन दिनों सूत्रों के अनुसार संघ की राय को वैसी तव्वजो नहीं दी जा रही है। जिसको लेकर संघ में भी अब एक वर्ग मोदी से दूरी बनाने पर मजबूर होता जा रहा है। संभवतः यही कारण है कि 2025 में मनाए जाने वाले शताब्दी वर्ष को राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ ने स्थगित कर दिया है। एक वजह और है मोदी शाह जिस प्रकार से कैंपेन कर रहे हैं उसमें संघ के पास जनता से बात करने के लिए मुद्दा नहीं बच रहा है। मोदी मंगलसूत्र, मांस मछली मटन को तरजीह दे रहे हैं। जबकि कर्नाटक में हनुमान जी का मुद्दा उठाने के बाद भाजपा को आशाजनक परिणाम नहीं मिला। एक विश्लेषक का कहना है कि राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ और भाजपा में ज्यादा अंतर नहीं है। बस ड्रैस कोड है , सुबह खाकी पेंट तो शाम को भगवा गमछा डाल लेते हैं। इसके बावजूद एक बड़ा वर्ग स्वयंसेवक और कार्यकर्ताओं का अलग-अलग है।

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