छिंदवाड़ा की सेंधमारी, भाजपा की नींव को खतरा

 

 

जनता और कार्यकर्ताओं में जा रहा है विपरीत असर

 

गौरव चतुर्वेदी / खबर नेशन / Khabar Nation

 

मध्यप्रदेश की छिंदवाड़ा लोकसभा जीतने के चक्कर में भारतीय जनता पार्टी ने कांग्रेस में सेंधमारी का दौर चला रखा है। राजनीतिक विश्लेषकों का मानना है कि एक हद के बाद इस तरह का प्रयास हर राजनीतिक दल को बड़े नुक़सान पर मजबूर कर देता है। हांलांकि भाजपा मेनेजमेंट के मामले में एक समय में कई प्लानों पर काम करती है। इसके बावजूद पार्टी की नींव जो मूल कार्यकर्ता के तौर पर जानी जाती है में नींव का खतरा खड़ा कर देती है।

मध्यप्रदेश में लोकसभा की 29 सीटें हैं। भाजपा के पास 28 और एक सीट कांग्रेस के पास है। कांग्रेस का कब्जा छिंदवाड़ा में है। जो कांग्रेस के कद्दावर नेता कमलनाथ के गढ़ के तौर पर जाना जाता है। छिंदवाड़ा लोकसभा सीट पर लंबे समय से मध्यप्रदेश के पूर्व मुख्यमंत्री कमलनाथ और उनके परिवार का कब्जा है। 2019 लोकसभा चुनाव के दौरान कमलनाथ के मुख्यमंत्री रहते हुए उनके पुत्र नकुलनाथ सांसद चुने गए हैं।

छिंदवाड़ा लोकसभा को भाजपा जीतना चाहती है। जिसके चलते हर रोज कांग्रेस के छोटे बड़े नेताओं और कार्यकर्ताओं को भाजपा में शामिल कराया जा रहा है। हाल ही में छिंदवाड़ा जिले के विधायक कमलेश शाह और महापौर को भाजपा में शामिल कराया गया है । इसी के साथ साथ भाजपा मध्यप्रदेश के अन्य लोकसभा क्षेत्रों से भी कांग्रेस कार्यकर्ताओं और नेताओं को तोड़ने का काम कर रही है। कांग्रेस मुक्त और अपना परचम लहराए रखने के चक्कर में भाजपा साम, दाम, दंड, भेद की राजनीति का खुलकर उपयोग कर रही है। सूत्रों के अनुसार विधायक, महापौर, जिला पंचायत अध्यक्ष, जनपद अध्यक्ष, पार्षद, नगर पालिका अध्यक्ष तोड़ने के लिए उनके खिलाफ भ्रष्टाचार के मामले दर्ज करने की धमकी, पद से हटाए जाने की कार्रवाई करने की धमकी दी जा रही है। राजनीतिक विश्लेषकों का मानना है कि ऐसी धमकियों से भले ही निर्वाचित प्रतिनिधि डरकर भाजपा ज्वाइन कर रहे हों पर पार्टी के पक्ष में कितनी ईमानदारी से काम कर पाएंगे इसका आकलन किया जाना संभव नहीं है। इस कवायद से सिर्फ इतना ही हो सकता है कि वे कांग्रेस के पक्ष में काम ना कर पाएं। जिसका फायदा भाजपा को मिल सकता है। 

नुकसानदायक भी है यह कवायद 

राजनीतिक विश्लेषकों का मानना है कि कभी-कभी यह कवायद पार्टी को बड़ा नुक़सान पहुंचा सकता है। इसकी वजह स्थानीय स्तर पर कांग्रेस भाजपा कार्यकर्ताओं और नेताओं के बीच की विरोध भरी राजनीतिक अदावत रहती है। जो कार्यकर्ता एवं नेता लंबे समय तक एक दूसरे के विरोधी रहे हो उनमें आपस में सामंजस्य स्थापित नही हो पाता है। एक दूसरी वजह नवागत कार्यकर्ता और नेता को बड़े नेताओं द्वारा दिया जाने वाला महत्व रहता है। जिसके चलते संगठन के पुराने कार्यकर्ता और नेता अपने आप को ठगा सा महसूस करते हैं। इस हताशा और निराशा में कई बार वे निष्क्रिय हो जाते हैं। जिसके चलते बड़ा नुक़सान हो सकता है।इस कवायद से भाजपा का मूल कार्यकर्ता भी नाराजगी से भरा हुआ है। हाल ही में पूर्व मंत्री अजय विश्नोई, मोहन कैबिनेट के सदस्य प्रहलाद पटेल, पूर्व मंत्री गोपाल भार्गव के तल्ख बयान इस नाराजगी को जाहिर कर रहे हैं।

संगठन अपनी कमजोरियां पर नजर नहीं डाल पा रहा

कांग्रेस तोड़ने के चक्कर में बड़े नेता अपनी कमजोरियां नहीं देख पा रहे हैं। भाजपा के नेता अतिआत्मविश्वास का भी शिकार हो रहे हैं। लगभग सात आठ लोकसभा क्षेत्रों में भाजपा प्रत्याशी के खिलाफ एंटीइंकंबेंसी का माहौल बना हुआ है और कांग्रेस ने भी अपेक्षाकृत भाजपा के मुकाबले ज्यादा बेहतर प्रत्याशी दिए हैं। एक राजनीतिक विश्लेषक का मानना है कि पूरे देश में भाजपा के प्रति जो वातावरण बना हुआ है वह राम मंदिर और मोदी के मैजिक के तौर पर आंका जा रहा है। अगर वर्तमान राजनीतिक हालात देखें जाएं तो दौर मासबेस राजनीति में बदल गया है। जो भारत के प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के प्रति पनपे जनता के रुझान के कारण है। इस चक्कर में भाजपा जो कैडर आधारित राजनीतिक दल के तौर पर जाना जाता है का कैडर में तालमेल गड़बड़ा गया है। इसी के साथ ही अन्य राजनीतिक दलों से आए नेताओं को दिए जाने वाले महत्व ने कैडर डिस्टर्बेंस में आग में घी डालने का काम किया है। मासबेस राजनीति का रास्ता पकड़ने के कारण केंद्र से लेकर बूथ स्तर तक नई सैंकेंड लीडरशिप पनप नहीं पाई और जो पुरानी थी वह खत्म कर दी गई। जिसके चलते यह माना जा रहा है भले ही मध्यप्रदेश में भाजपा की सफलता बरकरार रहे या बढ़ जाए पर जीत का अंतर पिछले लोकसभा चुनाव के मुकाबले कम रहने की ही संभावना है।

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