जीतू के बसंत में पतझड़ की बहार

 

 

राहुल गांधी की मेहनत पर पानी फेरते  जीतू पटवारी का दंभ 

बतौर मध्यप्रदेश कांग्रेस अध्यक्ष के तौर पर उल्लेखनीय उपलब्धि नहीं , 

कांग्रेस छोड़कर जाने वालों का रिकार्ड बना 

गौरव चतुर्वेदी / खबर नेशन / Khabar Nation

मध्यप्रदेश में सत्ता परिवर्तन हुए सौ दिन हो गए हैं। भारतीय जनता पार्टी ने जीत की सफलता को दरकिनार करते हुए मुख्यमंत्री के तौर पर शिवराज सिंह चौहान की बजाय डॉ मोहन यादव की ताजपोशी कर दी। कांग्रेस में असफलता का ठीकरा कमलनाथ पर फोड़ते हुए हारे हुए विधायक जीतू पटवारी को प्रदेश की कमान सौंपी है। दोनों ही दलों ने पीढ़ी परिवर्तन को महत्व दिया है। सही मायने में आकलन किया जाए तो इन सौ दिनों में ना डॉ मोहन यादव और ना ही जीतू पटवारी कोई उल्लेखनीय काम कर पाए हैं।

बात आज जीतू पटवारी की

मध्यप्रदेश कांग्रेस कमेटी भंग पड़ी हुई है। आलाकमान का जीतू पटवारी को सीधा वरदहस्त प्राप्त है। इसके बावजूद कांग्रेस का प्रदेश मुख्यालय वीरान पड़ा है। राजधानी में होते हुए भी जीतू प्रदेश मुख्यालय पर मौजूद नहीं रहते हैं। जीतू के राजनीतिक जीवन में यह दौर बसंत सा भरा है, लेकिन कांग्रेस कार्यकर्ताओं और नेताओं ने पार्टी छोड़ने का रिकार्ड बनाने की ठान ली है। अभी तक के राजनीतिक इतिहास में किसी प्रदेश अध्यक्ष के कार्यकाल में और वह भी शुरुआती दौर में पार्टी छोड़ने वालों की तादाद जीतू पटवारी के अल्प कार्यकाल में सर्वाधिक है।

एकला चलो

मध्यप्रदेश के पूर्व मुख्यमंत्री दिग्विजय सिंह के गुट से राजनीति की एबीसीडी सीखने वाले जीतू संभवतः दंभ का शिकार हो गए हैं कि वे राजनीति में पारंगत हो चुके हैं। दिग्विजय के साथ रिश्तों के चलते वे अन्य गुटों से समन्वय स्थापित नहीं कर सके। मध्यप्रदेश में कमलनाथ के प्रदेश अध्यक्ष बनते ही जीतू को कार्यवाहक अध्यक्ष भी बनाया गया था लेकिन जीतू कमलनाथ गुट में सर्वश्रेष्ठ दिखने की चाहत में सामंजस्य स्थापित नही कर पाए। विधानसभा में भी कई अवसरों पर अपने दंभ के चलते बड़बोलेपन का शिकार हुए। जिसकी सजा भी उन्हें मिली। 

मीडिया फुटेज की भूख 

जीतू को मुद्दों की समझ है लेकिन वे मीडिया फुटेज की भूख से ग्रसित है। कई अवसरों पर वे अपने वरिष्ठ नेताओं की प्रेस कॉन्फ्रेंस के दौरान स्वयं ही पत्रकारों के सवालों का जबाब देने कूद पड़ते हैं। जिसके चलते असहज स्थिति बन जाती है। संभवतः यही वजह है कि मध्यप्रदेश कांग्रेस की मीडिया सेल छिन्न-भिन्न हो गई है। 

कांग्रेस में टूट

कांग्रेस मुक्त भारत की कोशिशों में लगी भाजपा ने बतौर मास्टर स्ट्रोक कांग्रेस के प्रमुख रणनीतिकार सुरेश पचौरी को भाजपा में शामिल करा लिया। इसी के साथ ही इंदौर जिले के पूर्व विधायक रहे संजय शुक्ला, विशाल पटेल  भी भाजपा में शामिल हो गए। जीतू समझ नहीं पाए। दूसरा झटका महू के पूर्व विधायक अंतर सिंह दरबार और कांग्रेस के कद्दावर नेता रहे पंकज संघवी ने दिया। अंतर और पंकज को भाजपा में प्रवेश नगरीय प्रशासन मंत्री कैलाश विजयवर्गीय ने दिलाया। नैतिक तौर पर यह सीधा सीधा जीतू को झटका दिया गया। इसी दौरान मध्यप्रदेश के पूर्व मुख्यमंत्री कमलनाथ और उनके बेटे सांसद नकुलनाथ के भाजपा में शामिल कराने की कवायद की गई। मध्यप्रदेश में दो लोकसभा क्षेत्र ऐसे हैं जहां भाजपा कांग्रेस को खत्म करने के लिए आमदा है। इनमें से एक छिंदवाड़ा और दूसरी इंदौर लोकसभा है। छिंदवाड़ा लोकसभा भाजपा कांग्रेस से छीनना चाहती है। इंदौर जीतू का गृहक्षेत्र है इसलिए भाजपा आक्रामक तेवर अपनाए हुए हैं। इस पूरे दौर में जीतू पार्टी छोड़ने वालों को कोसते तो नजर आए लेकिन पार्टी में कार्यकर्ताओं को रोकने के लिए वे कोई भी कदम उठाने में असफल साबित हुए हैं।

विपक्ष का प्रदर्शन लचर

मध्यप्रदेश में कांग्रेस लंबे समय तक विपक्ष में रही है लेकिन विपक्षी दल के पर उल्लेखनीय प्रदर्शन नहीं कर पाई।

सही मायनों में कहा जा सकता है कि अखिल भारतीय कांग्रेस के उपाध्यक्ष राहुल गांधी की मेहनत और सोच पर मध्यप्रदेश कांग्रेस के अध्यक्ष जीतू पटवारी पानी फेर रहे हैं। जिसका कारण जीतू का दंभ है और जो साबित कर रहा है कि जीतू के बसंत में पतझड़ की बहार आई हुई है।

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