मोदी के सितारों की लंबी अमावस्या
राजनीतिक और प्रशासनिक व्यवस्था लचर
तीन महीने तक और रहेगी "ग्रहण" की छाया
गौरव चतुर्वेदी/ खबर नेशन /Khabar Nation
मध्यप्रदेश की राजनीतिक और प्रशासनिक व्यवस्था बैसाखियों पर आ गई है। इस व्यवस्था से कार्य करने की इच्छा शक्ति भी चरमराई हुई है। नवनिर्वाचित सरकार बनने के बाद हालात और खराब होते नजर आ रहे हैं। भारत के सर्व शक्तिमान प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के चुनिंदा सितारों से महफिल भरी पूरी है, लेकिन लगता है सितारों की चमक फीकी पड़ी हुई है।
मोदी के सितारे
मोदी के सितारों में राज्यपाल मंगूभाई पटेल, मुख्यमंत्री डॉ मोहन यादव, नरेंद्र सिंह तोमर,विष्णुदत्त शर्मा, कैलाश विजयवर्गीय, प्रहलाद पटेल , राकेश सिंह, जगदीश देवड़ा, राजेंद्र शुक्ल, राव उदय प्रताप सिंह जैसे नवरत्न शामिल हैं।
प्रदेश में घोर आर्थिक संकट है। प्राकृतिक आपदा ने इस विपप्ति में आग में घी डालने का काम किया है। रास्ता न प्रशासनिक अधिकारियों को सूझ रहा है और न ही राजनेताओं को। एक ही काम हो रहा है धीमी गति के साथ पूर्व मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चौहान की छवि और उनके नजदीकियों को कैसे ठिकाने लगाया जाए। इसके चलते बड़े स्तर पर प्रशासनिक जमावट नहीं हो पा रही है। कानून व्यवस्था तो राम और कृष्ण के भरोसे चल रही है। सीनियर लेवल के लगभग तीस चालीस आई पी एस अधिकारी नई पद-स्थापना की बाट जोह रहे हैं।
लाड़ली बहना का वित्तीय भार सरकार जबरन ढोने को मजबूर
लाड़ली बहना का वित्तीय भार सरकार जबरन ढोने को मजबूर है। इसे पूरा करने के चक्कर में नया कर्ज लिया जा रहा है और सरकार के विभिन्न विभागों में रखा हुआ विभिन्न मदों का पैसा मुख्यालय वापस बुलवाकर बांटा जा रहा है। लोकसभा चुनाव के चलते केंद्र सरकार बजट नहीं लाई। केंद्र ने आय व्यय के सहारे अपना वित्तीय कामकाज तय किया। मध्यप्रदेश सरकार पूर्ण बजट विधानसभा में प्रस्तुत कर सकती थी, लेकिन केंद्र की देखा-देखी और केंद्र सरकार के अनुदान पर जिंदा मध्यप्रदेश सरकार ने भी लेखानुदान पारित करवा अपने कर्तव्य की इतिश्री कर ली।
भाजपा संगठन धृतराष्ट्र की भूमिका में
सरकार की छोटी सी उपलब्धि पर बौरा बौरा कर ढ़ोल पीट पीटकर चिल्लाने वाला भाजपा संगठन इस बड़ी आपदा में धृतराष्ट्र की भूमिका से कम नजर नहीं आ रहा। आम जनता के हाल बेहाल है । सत्ता और संगठन रामधुन पर आगामी लोकसभा चुनाव की तैयारियां में तन-मन-धन से जुटा हुआ हैं या जुटा रहा है।
मुख्य विपक्षी दल कांग्रेस भी पीछे नहीं
इधर मध्यप्रदेश का मुख्य विपक्षी दल कांग्रेस भी पीछे नहीं है। भारत जोड़ो न्याय यात्रा से राहुल गांधी की छवि चमकाने में एक बार फिर लगी कांग्रेस प्रदेश की जनता पर हो रहे अन्याय को देखने में मस्त है। रोकने की ताकत तो वैसे भी अब कांग्रेस के पास बची नहीं है। जनता के पास बेचारगी के अलावा और कुछ नही है।
तीन महीने तक और रहेगी "ग्रहण" की छाया
दस बारह दिनों में आगामी लोकसभा चुनाव की आचार संहिता लागू हो जाएगी। संभावित तौर पर लोकसभा चुनाव मई अंत तक संपन्न हो पाएंगे। ऐसी स्थिति में आगामी तीन माह भी प्रशासनिक व्यवस्था लचर बने रहने की संभावना है। विगत अक्टूबर माह से यह व्यवस्था लचर ही बनी हुई है।