सच में अपना एमपी गजब है....

खबर नेशन / Khabar Nation

अरुण दीक्षित

मध्यप्रदेश के पर्यटन मंत्रालय ने कुछ साल पहले एक विज्ञापन बनवाया था! उस विज्ञापन की टैग लाइन थी एमपी गजब है! वह विज्ञापन भले ही पर्यटन को प्रोत्साहन देने के लिए बनाया गया हो लेकिन इतना तय है कि अपना एमपी सच में गजब है।

इसका ताजा उदाहरण हैं मध्यप्रदेश के कैबिनेट मंत्री महेंद्र सिंह सिसोदिया! वैसे तो सिसोदिया खुद ही गजब हैं। वह विधानसभा के एक ही कार्यकाल में कांग्रेस और भाजपा दोनों की ही सरकारो में मंत्री रहे हैं। लेकिन इससे भी बड़ा गजब काम उन्होंने राज्य के मुख्यसचिव पर आरोप लगाकर किया है। सिसोदिया ने ऐसा काम किया है जिसके चलते वे हमेशा याद किए जाएंगे।मध्यप्रदेश के इतिहास में अब तक किसी कैबिनेट मंत्री ने ऐसा काम नही किया था।

अभी कुछ दिन पहले ही उन्होंने मीडिया से कहा था राज्य के मुख्यसचिव निरंकुश हैं।वे तानाशाही कर रहे हैं। मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चौहान बहुत अच्छे आदमी हैं।लेकिन मुख्यसचिव मनमानी करते हैं।

यह अलग बात है कि यह कहने के अगले दिन ही उन्होंने यह कहकर बात खत्म कर दी कि उनकी मुख्यमंत्री से बात हो गई है।अब सब ठीक हो गया है।

मंत्री और मुख्यमंत्री के बीच फोनालाप से "सब कुछ" भले ही ठीक हो गया हो लेकिन माना यह जा रहा है कि जो हुआ था वह "ठीक" नही था। मंत्री के बयान और उस पर मुख्यमंत्री व अन्य पक्षों की चुप्पी ने कई सवाल खड़े कर दिए हैं।

सबसे बड़ी बात यह है कि इस मुद्दे पर न तो सरकार ने कुछ कहा और न ही सरकार को चलाने वाले अफसरों ने मुंह खोला।एक पूर्व नौकरशाह कहते हैं ऐसा पहले कभी नही हुआ।जब से मध्यप्रदेश बना है तब से अब तक एक से एक धाकड़ अफसरों ने मुख्यसचिव की कुर्सी संभाली है। प्रदेश के मुख्यसचिवों की आज भी पूरे देश में नजीर दी जाती है।एक पूर्व मुख्यसचिव की लिखी किताबें मसूरी की अकादमी में चर्चा का विषय रहती हैं। ऐसे में राज्य के कैबिनेट मंत्री द्वारा मुख्यसचिव को निरंकुश और तानाशाह कहा जाना बहुत ही गंभीर बात है। उससे भी ज्यादा गंभीर है आई ए एस बिरादरी की चुप्पी!इस बिरादरी को तो अपने मुखिया के साथ खड़ा होना चाहिए था। मुख्यमंत्री ने अपने मंत्री से बात कर ली।ठीक है। लेकिन उन्हें उनकी बात का प्रतिवाद तो करना ही चाहिए था। आखिर मुख्यमंत्री और मुख्यसचिव एक ही सिक्के के दो पहलू हैं।अगर मुख्यसचिव पर उंगली उठेगी तो मुख्यमंत्री भी उसके दायरे में आएंगे।

सबसे बुरी बात है बिरादरी की चुप्पी। मुख्यसचिव, पद की गरिमा को देखते हुए, खुद अपना बचाव करने आगे नही आ सकते।लेकिन उनके साथी अधिकारियों को तो इस मुद्दे को उठाना चाहिए।

सरकार में शामिल एक मंत्री भी अपने साथी के सार्वजनिक बयान को उचित नहीं मानते। वे कहते हैं राजनेताओं और नौकरशाही के मतभेद सनातन हैं। हर सरकार में किसी न किसी मंत्री के अपने प्रमुख सचिव और सचिव मतभेद होते रहे हैं। इस सरकार में भी हैं।इस को लेकर मंत्री खतो किताबत भी करते रहे हैं।कभी मंत्रियों और कभी अफसरों के विभाग भी बदले गए हैं।भाजपा हो या कांग्रेस,सभी की सरकारों में यह लड़ाई चलती रही है।लेकिन मुख्यसचिव को लेकर इस तरह किसी मंत्री ने कभी बयान नही दिया।

मंत्री महेंद्र सिंह सिसोदिया के इस बयान के अलग अलग मानी भी निकाले जा रहे हैं। हर पक्ष अपने-अपने कोण से व्याख्या कर रहा है।

कहा यह भी जा रहा है कि कुछ अधिकारियों ने ही मंत्री से यह बयान दिलाया था।ताकि विवाद के बाद मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चौहान मुख्यसचिव को सेवा वृद्धि न दे सकें। इन अफसरों का गुट भी बहुत ताकतवर माना जाता है।इसी वजह से आई ए एस अफसरों का संगठन भी मौन साधे हुए है।

एक वर्ग इस मामले में जातीय एंगल भी तलाश रहा है। इस वर्ग का कहना है कि एक सामंत मंत्री ने आरक्षित वर्ग के आला अधिकारी पर अपमानजनक आरोप लगाए हैं।सब मौन हैं।हमेशा आदिवासी और दलित वर्ग की बात करने वाले मुख्यमंत्री भी कुछ नही बोले हैं।इस पर तो मंत्री को बर्खास्त कर दिया जाना चाहिए।क्योंकि यह आरोप तो खुद मुख्यमंत्री पर भी चस्पा होता है।इस मुद्दे पर अजाक्स का मौन हैरान करने वाला है।

जितने मुंह उतनी बातें!सरकार के एक अन्य मंत्री कहते हैं यह मुख्यसचिव की कुर्सी का खेल है।अफसरों की लड़ाई में मंत्री मोहरा बन गए हैं।

सब जानते हैं कि सरकार भले ही भाजपा की है पर उसमें भी "गुट" हैं।एक मुकामी है और दूसरा सैलानी।यह भी संयोग ही है कि पिछले कुछ समय से सैलानी गुट के मंत्री निशाने पर चल रहे हैं।चाहे बांध फूटने का मामला हो या फिर अरबपति आर टी ओ का।अस्पतालों में लूट खसोट की बात हो या पंचायतों में गड़बड़ी की।आरोप एक गुट पर ही लग रहे हैं।इस गुट का कहना है कि मंत्री सिसोदिया ने गलत कुछ नही कहा है।

सब जानते हैं कि कुल 4 लोग इस सरकार को चला रहे हैं।इनके आगे खुद मुख्यमंत्री बेबस हैं।अगर ऐसा न होता तो वह खुद कुछ बोलते।

खैर कुछ भी हो।चर्चाओं का बाजार गरम है।कुछ लोग यह मान रहे हैं कि इस विवाद के बाद मुख्यसचिव का कार्यकाल बढ़ना कठिन होगा।सुना यह भी है कि पूरी जानकारी दिल्ली के "शाहों" को पहुंचा दी गई है।अब फैसला वहीं से आयेगा। 

अब जो होगा सो होगा पर इतना तो पक्का है कि अपना एमपी गज्जब है।बस एक बार गौर से देखिए तो!!!

 

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