"महाकाल" भी कन्फ्यूजन में, किसे पैदा करें किसे ना करें......

संस्कारधानी जबलपुर की बातें वरिष्ठ पत्रकार चैतन्य भट्ट की कलम से कहो तो कह दूं । खबर नेशन / Khabar Nation
"महाकाल" भी कन्फ्यूजन में, किसे पैदा करें किसे ना करें......
ये नेता लोग अभी तक तो अपनी बातों से, अपनी घोषणाओं से सिर्फ जनता को कन्फ्यूजन में डालते थे लेकिन अब वे ऊपर वाले को भी नहीं छोड़ रहे हैं। अब देखो ना कांग्रेस के नेता "दिग्गी
राजा" ने महाकाल से एक ही प्रार्थना की कि हे महाकाल कांग्रेस में कोई दूसरा "ज्योतिरादित्य सिंधिया" पैदा ना हो आप ऐसी कृपा करना। जब दिग्गी राजा ने ये गुहार लगाई तो महाराजा कहां पीछे रहते उन्होंने भी एक एप्लीकेशन महाकाल के सामने रख दी, हे महाकाल कृपया दिग्विजय सिंह जी जैसे देश विरोधी और मध्यप्रदेश के बंटाढार भारत में फिर से ना पैदा हो। दिग्गी राजा तो महाराज को सिर्फ कांग्रेस में पैदा होने से रोक रहे थे महाराज ने तो उन्हें भारत से ही बाहर खदेड़ने की गुहार लगा दी ।ये दोनों तो ठीक थे दो मंत्री और इस जंग में कूद गए महाराज के खास मंत्री सिसोदिया जी ने कह दिया दिग्गी राजा का जन्म पाकिस्तान में हो ताकि पाकिस्तान का भी बंटाढार हो जाए, यानी सिसोदिया जी एक तीर से दो निशाने करना चाहते हैं दिग्गी राजा को देश निकाला और पाकिस्तान के बंटाधार की इच्छा । एक और मंत्री हैं सिलावट जी उन्होंने तो और बढ़कर बात कह दी यह दिग्विजय सिंह जैसा तत्व सूक्ष्म रुप से भी जन्म ना ले, दूसरे दिन एक और बात कह दी कि कि दिग्गी राजा तो "कोरोना" है,चूंकि कोरोना चीन से आया इसलिए उनका जन्म चीन में हो । अब महाकाल भारी कन्फ्यूजन में है कि किसकी बात माने तो किसकी बात ना माने, कोई राजा को पाकिस्तान में पैदा करने की मांग कर रहा है तो कोई उन्हें चीन में पैदा करवाने का का आवेदन दे रहा है इधर मामा जी ने भी साफ कर दिया महाराज गद्दार नहीं बल्कि खुद्दार हैं । यानी इस वक्त मध्य प्रदेश की राजनीति में नेता कहां पैदा हो कहां ना पैदा हो इसको लेकर युद्ध छिड़ा हुआ है पर महाकाल भी अभी इंतजार कर रहे हैं कि पता नहीं और दूसरे नेता एक दूसरे को कौन-कौन से देशों में पैदा करने का आवेदन करने वाले हैं दूसरी तरफ कई पुराने रोगों की जानकारी इकट्ठी की जा रही है कि कौन सा रोग किस देश से आया था और राजा या महाराजा को किस देश में पैदा करवाना है इन नेताओं के चक्कर में महाकाल उन तमाम लोगों की फरियाद नहीं सुन पा रहे हैं जो बेचारे अपनी अपनी संकटों से मुक्ति पाने की आशा में महाकाल के दर्शन लाभ के लिए आते हैं, लेकिन एक बात हम भी बताएं देते हैं कि कोई कितनी भी गुहार लगाएं पर महाकाल के दरबार में सबके लिए न्याय होगा किसे कहां पैदा करना है ये महाकाल ही तय करेंगे नेता नहीं ।
बब्बू भैया का दर्द
प्रदेश में पूर्व मंत्री रहे जबलपुर के पूर्व विधायक "हरेंद्र जीत सिंह बब्बू" इन दिनों बड़े दुखी हैं और दुखी होना स्वाभाविक भी है, पहली बात तो ये है कि चुनाव हार चुके हैं उसका दर्द रह रह कर उभर आता है उस पर से एक और अपनी उपेक्षा से उनकी पीड़ा दुगनी हो गई । हुआ यूं कि पिछले दिनों जबलपुर गोंदिया ट्रेन शुरू हो गई कोई नई चीज शुरू हो और उसमें नेता ना पहुंचे यह तो संभव नहीं था तो तमाम बीजेपी के नेता उसको हरी झंडी दिखाने के लिए जा पहुंचे, जो नहीं पहुंच पाए थे उन्हें भी बकायदा निमंत्रण देकर बुलाया गया लेकिन बिचारे बब्बू भैया अपने घर में ही बैठे रह गए, ना तो उन्हें बुलावा दिया और ना ही उन्हें किसी ने बताया कि जबलपुर गोंदिया ट्रेन का शुभारंभ होने वाला है,जबकि ये वही बब्बू भैया हैं जिन्होंने आज से करीब 25 बरस पहले जबलपुर गोंदिया को ब्रॉडगेज में परिवर्तित करने के लिए कई किलोमीटर पदयात्रा की थी बाद में पार्टी के वरिष्ठ नेताओं के आश्वासन के बाद वो पदयात्रा समाप्त हुई थी । कम से कम बब्बू भैया को याद तो कर लेना था जिसने पैदल चल चलकर इस आंदोलन को आगे बढ़ाया था लेकिन शायद बब्बू भैया यह भूल गए कि ये राजनीति है यहां जो "जीता वही सिकंदर" माना जाता है आप जब तक विधायक हो, सांसद हो, मंत्री हो मुख्यमंत्री हो तब तक आपकी जय जयकार होगी जिस दिन आप कुर्सी से उतरते हो उस दिन से आपको पूछने वाले, आप की जय जयकार करने वाले रातों-रात गायब होकर उसकी जय जयकार करने लगते हैं जो अब आप की जगह आप की कुर्सी पर बैठ जाता है कहावत भी है "उगते सूरज को सब नमस्कार करते हैं डूबते को कोई नहीं" इसलिए बब्बू भैया रंज ना करो ,आपने भी बरसों जलवा देखा है अब यदि वह जलवा नहीं भी है तो पुराने दिनों के जलवों को याद कर अपना टाइम काटो इसी में भलाई है
अजी रूठ कर कहां जाइएगा,
एक बड़ा सदाबहार गीत है "अजी रूठ कर अब कहां जाइएगा जहां जाइएगा हमें पाइएगा" यह गाना आजकल हर पार्टी के रूठे हुए नेताओं पर सटीक बैठ रहा है जैसे-जैसे विधानसभा चुनावों की तारीख पास आ रही तमाम राजनीतिक दल अपने अपने तमाम रूठे नेताओं को मनाने में जुट गए हैं जो पार्टी से या तो बगावत कर कर चुके हैं या फिर नाराज होकर किसी दूसरी पार्टी का दरवाजा खटखटा रहे हैं । प्रदेश की दोनों ही प्रमुख पार्टियों को यह लग रहा है कि "घर का भेदी लंका ढाए" वाली स्थिति ना बन जाए जो नाराज है उन्हें मनाकर एक बार फिर उनसे काम निकाल लिया जाए , काम निकल जाएगा फिर किसको किस की चिंता है। बड़े बड़े नेताओं को इस बात की जिम्मेदारी दी गई है कि लोगों के पास जाएं, कार्यकर्ताओं से मिले उनसे बात करें उनकी समस्याएं सुनें और उन्हें आश्वासन दें कि फिर से सरकार बनेगी तो तमाम समस्याएं हल कर दी जाएंगी यही कारण है कि दोनो पार्टी के बड़े-बड़े नेता हर नाराज नेता और कार्यकर्ता का दरवाजा खटखटा कर उन से निवेदन कर रहे हैं कि हे प्रभु अपनी नाराजगी छोड़ दो और एक बार हमें फिर सत्ता की कुर्सी पर बैठा दो फिर देखो हम आपके लिए क्या-क्या नहीं करते। अब नाराज नेता उनकी बातों पर भरोसा करते हैं या नहीं ये तो वही बता पाएंगे लेकिन लेकिन यह गाना भी इन लोगों पर सटीक बैठ रहा है,"तुम रूठे रहो मैं मनाता रहूं मजा जीने का और भी आता है"
सुपर हिट ऑफ़ द वीक
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"जी नहीं दुखी रहना मेरी आदत है" श्रीमान जी ने उन्हें समझा दिया
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गौरव चतुर्वेदी
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