कहो तो कह दूं । ऐसा जुलुम मत ढाना हमारी टिकट मत काटना.....

इस सप्ताह से संस्कार धानी की बातें वरिष्ठ पत्रकार चैतन्य भट्ट की कलम से

कहो तो कह दूं ।

ऐसा जुलुम मत ढाना हमारी टिकट मत काटना.....

यश चोपड़ा की एक बहुचर्चित फिल्म "काला पत्थर" का एक बड़ा मशहूर गाना था जिसका अंतरा था "ऐसा जुलुम मत ढाना पिया मत जाना विदेशवा रे" । ये गाना अब थोड़ा सा उन तमाम नेताओं के लिए बदल गया जिनको भारतीय जनता पार्टी रिटायर करने की सोच रही है, एक खबर आई है कि भारतीय जनता पार्टी ने तय कर लिया है कि इस बार के विधानसभा चुनाव में जो भी नेता "साठ और सत्तर" साल के हो चुके हैं उनको टिकट से वंचित कर दिया जाए । जब से ये खबर आई है उन तमाम नेताओं की हालत खराब है जो इस उम्र को पार कर चुके हैं भगवान से यही प्रार्थना कर रहे हैं कि हे भगवान आपने कलयुग की दुनिया में इतनी जल्दी मुझे क्यों भेज दिया , दस पंद्रह साल बाद भेजते तो शायद आज टिकट के लिए हमें मोहताज ना होना पड़ता, वैसे भी कोई भी नेता कभी नहीं चाहता कि वह रिटायर हो जाए, सरकार भले ही सरकारी कर्मचारियों के लिए रिटायरमेंट की एक उम्र तय कर चुकी हो क्योंकि उसे लगता है कि साठ के बाद इंसान "सठिया" जाता है कर्मचारी का ना तो दिमाग काम करता है ना शरीर ,लेकिन राजनेता वो बला है कि मरते दम तक उनका शरीर भी काम करता है और दिमाग भी, वैसे नेताओं को दिमाग की जरूरत कुछ कम ही पड़ती है जो अफसर कहते हैं वे उसे ओ के  कर देते हैं। चाहे नेता कितना ही जर्जर हो जाए, कमर झुक जाए, चेहरे में झुर्रियों का मकड़जाल बन जाए, हाथ पैर कांपने लगे पूरी बत्तीसी गायब हो जाए, सर में एक बाल ना बचे, लाठी टेक कर चलने की नौबत आ जाए  लेकिन कुर्सी का मोह नहीं छोड़ पाता ,पर भारतीय जनता पार्टी ने  ये स्कीम   लाने का निर्णय ले ही लिया है, अब आप ही  सोचो कितना कष्ट नहीं होगा उन्हें इस बुढ़ापे में, कल तक जिस विधानसभा में उनकी जय जय कार हो रही थी अब उन्हें कोई धेले भर को नहीं पूछेगा, कल तक सत्ता का जो सुख भोग रहे थे वो अचानक खत्म हो जाएगा,   इन तमाम नेताओं की दुख भरी कहानी से अपनी भी आंखों में आंसू आ गए। अपनी तो भारतीय जनता पार्टी के नेताओं से एक ही इल्तजा है कि क्यों बुढ़ापे में इन लोगों को दुखी कर रहे हो एक दो बार और टिकट दे ही दो वरना ये  सामूहिक रूप से एक ही गाना गाते आपको मिलेंगे "ऐसा जुलुम मत ढाना हमारी टिकट मत काटना"

इतना सच ना बोलें तंखा जी

बड़े मशहूर वकील हैं विवेक तंखा, राजनेता भी हैं, राज्यसभा के सदस्य भी हैं अमूमन यह माना जाता है कि नेता सच नहीं बोलते लेकिन चूंकि विवेक तंखा नेता कम वकील ज्यादा है इसलिए उनके मुखारबिंद से सचाई निकल आई । उनका कहना है कि मध्य प्रदेश में मुख्यमंत्री के लिए "कमलनाथ" से बेहतर कोई और  उम्मीदवार नहीं हो सकता क्योंकि उनके पास धन संपत्ति है, हवाई जहाज है ,और वे तमाम संसाधन है जो राजनीति के लिए जरूरी होते हैं आप इसे मजबूरी समझ लें लेकिन राजनीति करने और चुनाव लड़ने के लिए यह सब जरूरी है। एकदम सच बोल दिया तंखा जी ने , कोई फटीचर तो राजनीति में आ नहीं सकता । चुनाव जिसको लड़ना है उसके पास होना चाहिए माल, लाखों करोड़ों रुपया चुनाव में खर्चना पड़ता है तब कहीं जाकर हार जीत का फैसला होता है उस पर भी भरोसा नहीं कि आदमी जीत ही जाए यह तो जुआ है हार भी सकता है और जीत भी मिल सकती है लेकिन धन तो सटाना ही पड़ता है वैसे भी यह कहा जाता है कि "पैसा खुदा नहीं लेकिन खुदा से कम भी नहीं" ।  वे जमाने चले गए जब आदमी एक कुर्ते में साइकिल में अपना प्रचार करता था लोग चंदा इकट्ठा करके उसकी व्यवस्था किया करते थे और वह सिर्फ जनता के दम पर जीत हासिल कर लिया करता था लेकिन जमाना बदल चुका है, बिना पैसे के यदि आप चुनाव लड़ने की सोच भी रहे हैं तो भूल जाइए। विवेक तंखा जी ने जो बात कही हो सकता है वह कड़वी हो लेकिन है सौ फीसदी सही । पूरे प्रदेश में दौरा करना है तो हवाई जहाज की भी जरूरत है, पोस्टर बैनर, कार्यकर्ताओं का मेहनताना, उनकी भोजन नाश्ता की व्यवस्था करना इसमें पैसे लगते हैं उस वक्त कार्यकर्ता जो मांगता है उसे देना पड़ता है एक यही तो मौका होता है कार्यकर्ता के लिए जब उसकी चार पैसे की बखत बनती है वरना चुनाव जीतने के बाद कार्यकर्ता को कौन पूछता है । लेकिन अपनी एक सलाह तंखा जी को जरूर है कि आप भी नेतागिरी में हैं तो नेतागिरी के तमाम गुन सीख लो नेताओं के लिए सच बोलना गुनाह है ।

अपने पर कम बाबाओं पर ज्यादा भरोसा

जैसे-जैसे विधानसभा के चुनाव पास आ रहे हैं वैसे वैसे टिकट का हर उम्मीदवार बाबाओं की शरण में जा पहुंचा है । हर नेता ईश्वर मय हो गया है कोई किसी बाबा के चरणों पर मस्तक टेक रहा है तो कोई किसी दूसरे बाबा के आशीर्वाद के लिए लालायित है, हालत ये है कि बाबाओं के पास टाइम नहीं है। कथाओं के लिए वेटिंग चल रही है क्योंकि 230 सीटें हैं यदि 1 दिन में भी एक विधानसभा में भी जाएंगे तो भी जितने दिन बचे हैं उतने में कवर नहीं हो पाएगा। बाबाओं के दरबार में पहले आओ पहले पाओ की स्थिति निर्मित हो गई है जो उन्हें पहले एंगेज कर ले बाबाजी वहां कथा करने पहुंचेंगे जो थोड़ा भी लेट होगा वह फिर लेट ही हो जाएगा। मतदाता को कैसे लुभाया जाए अब उसका पूरा दारोमदार बाबाओं के दरबार और उनकी कथा पर डिपेंड हो गया है नेता भी सोचता है के लाखों लोग बाबाओं के शिष्य हैं यदि बाबा का आशीर्वाद मिल जाएगा तो दुनिया की कोई ताकत उन्हें  हरा नहीं पाएगी ।अपने को तो लगता है कि अब नेताओं को अपने काम पर नहीं बल्कि बाबाओं की कथा पर ज्यादा भरोसा हो गया है नेता भी यही सोच रहे हैं जो बाबा ज्यादा से ज्यादा भीड़ इकट्ठी कर सके उसको आमंत्रित करना उनके लिए ज्यादा फायदेमंद होगा इसलिए बाबाओं की पूछ परख लगातार बढ़ती जा रही है क्योंकि ये आस्थाओं का देश जो है ।

 

सुपर हिट ऑफ़ द वीक

"आपके ये तीन दांत कैसे टूट गए" डेंटिस्ट ने श्रीमान जी से पूछा

"दरअसल श्रीमती जी ने कड़क रोटी बनाई थी" श्रीमान जी ने बताया

"तो आप खाने से इंकार कर देते" डेंटिस्ट ने कहा

"वो ही तो किया था डाक्टर साहेब" श्रीमान जी ने उत्तर दिया

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