मोहन की मुहिम की हवा निकालता मोहन का ही सचिवालय
खबर नेशन/ Khabar Nation
जी हाँ मध्यप्रदेश के मुख्यमंत्री डॉक्टर मोहन यादव की भ्रष्टाचार के खिलाफ चल रही मुहिम की हवा कोई विरोधी नहीं बल्कि उनके इर्द-गिर्द जमे धन-लोलुप अफसर ही निकल रहे हैं । विगत कई माहों में ऐसे कई उदाहरण देखें जा सकते हैं,जहां मुख्यमंत्री डॉक्टर मोहन यादव के निर्देश पर किसी भ्रष्ट अफसर को हटाया जाता है,तो भ्रष्टाचार के खिलाफ यादव की मुहिम की सीएम सचिवालय के अफ़सर ही हवा निकाल देते हैं,और मुख्यमंत्री के निर्देश पर स्थानांतरित किए गए ऐसे भ्रष्ट अफ़सर को, सीएम सचिवालय,कुछ ही समय में, मलाईदार पदों का चार्ज दिलवा देता है ।
ऐसा हाल ही में मुख्यमंत्री द्वारा बाल कृष्ण मोरे के इंदौर से भोपाल किए गए स्थानांतरण के मामले में भी देखने को मिला।इंदौर में 9 बरस से जमें पंजीयन एवं मुद्रांक उपमहानिरीक्षक बालकृष्ण मोरे को विभिन्न शिकायतों को संज्ञान में लेते हुए उप महानिरीक्षक पंजीयन इंदौर परिक्षेत्र से हटाकर पंजीयन उप महानिरीक्षक भोपाल परिक्षेत्र में पदस्थ किया गया था,लेकिन भोपाल परिक्षेत्र में पदस्थापना के साथ ही मोरे को पंजीयन मुख्यालय में प्रभारी उपमहानिरीक्षक पंजीयन का अतिरिक्त प्रभार भी सौंप दिया गया है ।
सूत्रों के अनुसार मोरे के खिलाफ कुछ ऐसी गंभीर शिकायतें हैं,जिनसे मोहन सरकार तक की छवि पर आंच आ सकती है। उक्त गंभीर प्रकृति की शिकायतें मुख्यमंत्री डॉक्टर मोहन यादव से व्यक्तिगत तौर पर भाजपा के कुछ वरिष्ठ नेताओं और राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ के पदाधिकारियों द्वारा की गई थी। सीएम डॉ. मोहन यादव,जो कि इंदौर जिले के प्रभारी मंत्री भी हैं, ने अपनी बेदाग़ छवि को ध्यान में रखते हुए,श्री मोरे के खिलाफ की गई शिकायतों को तत्काल संज्ञान में लिया और श्री मोरे का स्थानांतरण परिक्षेत्र भोपाल में कर दिया। हालांकि सीएम डॉ मोहन यादव द्वारा मोरे के स्थानांतरण की वजह प्रशासकीय बताई गई है। लेकिन वाणिज्य कर विभाग द्वारा जारी आदेश की प्रतिलिपि जिस प्रकार अपर मुख्य सचिव,मुख्यमंत्री सचिवालय,मध्य प्रदेश शासन और उप सचिव,मुख्य सचिव कार्यालय,मध्य प्रदेश शासन को भेजी गई है,वह श्री मोरे के खिलाफ प्रचलित शिकायत की गंभीरता को दर्शा रही है । सामान्यतः पंजीयन उपमहानिरीक्षक जैसे पदों के स्थानांतरण की सूचना मुख्यमंत्री सचिवालय और मुख्य सचिव कार्यालय को दिए जाने की परंपरा नहीं रही है । सूत्रों के अनुसार मोरे पर पूर्व में वाणिज्य कर मंत्री जगदीश देवड़ा के नाम पर इंदौर-उज्जैन संभाग में तबादला करवाने और तबादले के नाम विभिन्न अधिकारियों/कर्माचारियों से मोटी राशियॉं वसूलने के गंभीर आरोप भी लग चुके हैं। जिसके चलते जगदीश देवड़ा लंबे समय तक मोरे से नाराज भी रहे। देवड़ा ने तब मोरे को हटाने की कवायद भी की थी लेकिन तत्कालीन मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चौहान के कार्यकाल में उच्च पदस्थ प्रशासनिक अधिकारियों को मोटी राशि देकर मोरे बच गए थे । देवड़ा के नाम पर मोटी राशियों को वसूलने के कारण उप मुख्यमंत्री श्री देवड़ा जी की नाराज़गी अभी भी बरकरार है,वरना मोरे को इंदौर से हटाया नहीं जा सकता था।
लोकसभा चुनाव 2024 के दौरान भी मोरे पर इंदौर जिले के अधिवक्ताओं ने चुनाव आयोग को श्री मोरे द्वारा आचार संहिता का उल्लंघन किए जाने की शिकायत की थी। राजनीतिक गलियारों की चर्चा अनुसार श्री मोरे अपने भ्रष्ट
रसूख़ के चलते कांग्रेस से चुनाव लड़ने की तैयारी में भी थे,किन्तु ऐन वक्त पर टिकिट ना मिलने से उन्होंने शासकीय सेवा से त्याग पत्र नहीं दिया,और शासकीय सेवा में रहकर पुनः कॉंग्रेस की फ़ील्डिंग कर रहे हैं।मोरे के खिलाफ की गई शिकायतों में राजनीतिक दल कॉंग्रेस को फंडिंग करने और भू माफिया बॉबी छावड़ा, चंपू अजमेरा भाजपा सरकार के कई मंत्रीयों के साथ नजदीकी संबंधों का आरोप भी लगाया गया था । उक्त शिकायत पर राजनीतिक एवं प्रशासनिक दबाव के चलते तब मोरे पर कोई कार्रवाई नहीं हुई।
9 साल से इंदौर में पदस्थ मोरे द्वारा अब स्थानांतरण के बाद यह प्रचारित करवाया जा रहा है कि उनका स्थानांतरण ग़लत हुआ है । मोरे खुद को मुख्यमंत्री से भी ऊपर मानते है,और मुख्यमंत्री कार्यालय से हुए इस ट्रांसफर को भी ग़लत बता रहे है । पैसे देकर मीडिया मैनेजमेंट में माहिर मोरे अब स्वयं को मुख्यमंत्री से भी बड़ा समझने लगे हैं । मोरे की पूर्व में भी कई शिकायते हुई हैं,पर उनके मैनेजमेंट के चलते उन पर कभी कोई आँच नहीं आई ।ऐसे में पंजीयन मुख्यालय,भोपाल के उप महानिरीक्षक (शिकायत) का अतिरिक्त प्रभार मिलने के कई निहितार्थ हैं,अब वे भोपाल पंजीयन परिक्षेत्र के साथ ही ,बतौर उप महानिरीक्षक पंजीयन (शिकायत) मुख्यालय, वे मुख्यालय में शिकायत शाखा भी देखेंगे ,मतलब वे अपने विरुद्ध हुई शिकायतों की जाँच भी ख़ुद ही करेंगे,यानि खुद के विरूद्ध की गई शिकायत में खुद ही जज भी होंगे। एक ओर तो ऐसे भ्रष्ट अधिकारी को हटाने में मुख्यमंत्री तक को 9 साल लग जाते हैं तो दूसरी मोहन के सचिवालय में पदस्थ भ्रष्ट अफ़सर इनाम में मोरे को खुद के खिलाफ की गई शिकायतों की खुद ही जॉंच करने के लिए मुख्यालय में उन्हें ही बैठा देते हैं।ऐसे में,भ्रष्टाचार के विरुद्ध जीरो टॉलरेंस रखने की बात कहने वाले मुख्यमंत्री का सपना पूरा कैसे होगा ये देखना दिलचस्प होगा।आज जरूरत इस बात की है कि मोरे के सम्पूर्ण कार्यकाल की गंभीर जांच की जाए ताकि दूध का दूध और पानी का पानी हो सके।मोरे के इंदौर से स्थानांतरण होने पर ईमानदार सर्विस प्रोवाइडर्स एवं अधिवक्ताओं को चैन की सॉंस लेते हुए मिठाई बॉंटते देखे गए साथ ही यह कहते भी सुना गया कि आतंक और बुराई का देर से सही पर अंत तो हुआ।
मोहन की मुहिम की हवा निकालता मोहन का ही सचिवालय