संयोग या साजिश ? मंत्री गोविंद सिंह राजपूत को मुसीबत या राहत ?

 

 

गुमशुदगी मामले में सुप्रीम कोर्ट के निर्देश पर गठित एस आई टी की रिपोट जमा करने की अवधि समाप्त होने के दस दिन पहले दो चौंकाने वाले फैसलों की वजह क्या? कौन हैं इसके पीछे ?

 

मध्य‌प्रदेश की राजनीति में 4 माह पहले उबाल आ गया जब भारत के सर्वोच्च न्यायालय ने गुमशुदगी  के एक प्रकरण में उच्च स्तरीय एस आई टी गठित करने के निर्देश दिए--- इस एस आई टी में सीधी भर्ती के आई पी एस अधिकारियों को जो पुलिस महानिरीक्षक, सीनियर पुलिम अधीक्षक, और एक अतिरिक्त पुलिस अधीक्षक स्तर के अधिकारियों को शामिल करना था। कोर्ट ने स्ट्रिकट आदेश दिए थे कि राज्य पुलिस सेवा का कोई भी अधिकारी इसमें शामिल ना किया जाए । कोर्ट ने गुमशुदगी को एफ आई आर में बदलने का भी निर्देश दिया था। एस आई टी को 4 माह में रिपोर्ट सबमिट करना थी। उक्त निर्देश ओ बी सी महासभा के द्वारा दायर याचिका पर दिया गया था।

 एस आई टी की रिपोर्ट सबमिट करने की आखिरी तारीख 14 दिसबर है। इसके पहले आए दो फैसले चौकाने वाले माने जा रहे हैं। एक फैसला इस मामले से संबधित प्रमुख गवाह राजकुमार धनौरा को लेकर रहा। राजकुमार धनौरा गबन के मामले में जेल में बंद हैं। राजकुमार धनौरा के  पुत्र का अदालत में कहना है कि धनौरा पर झूठा केस दर्ज किया गया है। असल वजह धनौरा के पास ऐसी जानकारी हैं जो 2016 से लापता मानसिंह पटेल के प्रकरण में महत्वपूर्ण जानकारियाँ के बाहर आने से संबंधित हैं। जिसके चलते धनौरा को राजनीतिक तौर पर फंसाया गया है। इसी के चलते  कांग्रेस नेता धनौरा पर सागर जेल में हमला भी हुआ था।  जिसके बाद धनौरा को भोपाल जेल शिफ्ट कर दिया गया।

 

हाल ही में छह दिन पूर्व सागर जेल में धनौरा के साथ हुई मारपीट के मामले में खेल सुप्रिडेंट ने जेल नियमों  के तहत धनौरा का दोष मानते हुए द‌ण्डित कर दिया। सजा बतौर धनौरा के ऊपर एक माह तक मुलाकात ना कराए जाने की सजा दी गई हैं और धनौरा को विशेष सेल में रहना होगा। सागर जेल में मारपीट के मामले की सुनवाई कर रहे अतिरिक्त जिला न्यायाधीश व विशेष न्यायाधीश  भ्रष्ट्राचार निवारण अधिनियम आलोक मिआ ने जेल अधीक्षक मानेन्द्र सिंह परिहार को निर्देश दिए थे कि धनौरा को कोर्ट में पेश करने के निर्देश दिए थे। सुप्रीम कोर्ट के निर्देश पर गठित एस आई टी ने धनौरा के बयान कराए जाने को लेकर जेल सुपरिटेंडेंट को निर्देशित किया है। सवाल उठ रहा हैं कि जब एस आई टी ने बयान कराए जाने को लेकर निर्देश दिए  हैं तो जेल सुपरिटेंडेंट ने धनौरा को दोषी कैसे मान लिया और सजा किस आधार पर दे दी? कहीं यह खाध एवं नागरिक आपूर्ति मंत्री गोविंद सिंह की मुश्किले बढ़ाने की कोशिश तो नहीं? या फिर गोविन्द सिंह राजपूत को राहत देने की कोशिश की गई हैं।  2016 से लापता मान सिंह पटेल के मामले में गोविन्द्र सिंह राजपूत आरोपों के घेरे में हैं। मानसिंह पटेल की जमीन पर गोविन्द सिंह राजपूत का कब्जा बताया जा रहा हैं। हांलाकि सुप्रीम कोर्ट के एसआई टी गठित करने के निर्देश का गोविन्द्र सिंह राजपूत ने स्वागत किया था।

 

इस मामले में दूसरा चौकाने वाला आदेश धनौरा मामले की सुनवाई कर रहे अतिरिक्त जिला न्यायाधीश व विशेष न्यायाधीश भ्रष्ट्राचार निवारण अधिनियम आलोक मिश्रा का सागर से विशेष न्यायाधीश एस सी/एस टी (PA) एक्ट सीधी के पद पर तबादला रहा। मिश्रा का तबादला संयोग माना जा सकता है लेकिन धनोरा को जेल अधिनियम के तहत मुलाकात पर प्रतिबंध की सजा में साजिश की बू नजर आ रही हैं। डेढ़ साल से जेल में बंद कांग्रेस नेता क्या ऐसे दबाव में निष्पक्ष बयान दर्ज करा पाएंगे यह भी सवाल खड़े हो रहे हैं।

Share:


Related Articles


Leave a Comment