क्या वे सभी सपने साकार हो चुके हैं, जो आजादी के बाद भारत को लेकर स्वधीनता संग्राम के सैनानियों ने देखे थे ?

 

सपनों को साकार करने के लिए हमें एक ऐसी अर्थव्यवस्था का ब्लुप्रिन्ट बनाना होगा जिसमें प्रत्येक व्यक्ति के हाथ में रोजगार हो सामाजिक आर्थिक राजनीतिक न्याय, अभिव्यक्ति, विचार, विश्वास, धर्म तथा उपासना की स्वतंत्रता, प्रतिष्ठा एवं अवसर की समता प्रत्येक नागरिक का अधिकार हो

 

एड. आराधना भार्गव / खबर नेशन / Khabar Nation

आज सम्पूर्ण देश आजादी के 75 वर्ष पूर्ण होने पर अमृत महोत्सव मना रहा है। आप सभी देशवासियों को स्वतंत्रता दिवस की ढेरों शुभकामनाऐं। अमृत महोत्सव मनाने के साथ साथ हमें आत्म चिन्तन और आत्म-विश्लेषण करने की भी अवश्यकता है। सामाजिक, राजनैतिक और शैक्षणिक उपलब्धियों की लम्बी लिस्ट हो सकती है, हमें सोचना पड़ेगा कि क्या स्वधीनता सैनानियों ने सिर्फ इन्ही मुद्दों के आस पास भारत के नव निर्माण की कल्पना की थी ? हमें यह भी देखना होगा कि 1947 के मुकाबले देश में भाईचारा, बन्धुत्व, बढ़ा है ? हमें यह भी सोचना पड़ेगा की एक नागरिक की पीड़ा का एहसास दूसरे नागरिकों को होता है कि नही ? संवेदनशील समाज आखिर दिखाई क्यों नही देता ? एक दलित बच्चे द्वारा शिक्षक के पानी के मटके से पानी निकालकर पीने पर शिक्षक द्वारा मासूम बच्चे कि इतनी पिटाई किया की बच्चे की मौत हो गई, देश मूक दर्शक बनकर देखता रहा। हमें यह भी टटोलना पड़ेगा कि आखिर इतना संवेदनहीन समाज कैसे होते चला जा रहा है। जातिवाद और सम्प्रदायिकता से मुक्त भारत का सपना आजादी की लड़ाई से काफी पहले तब से देखा जा रहा है, संत कबीर और गुरू नानक देव लोगों को जगान में जुटे थे भारत के संविधान में सम्प्रदायिकता के खिलाफ कड़े प्रावधान होने के बावजूद आज भी हम सम्प्रदायिकता के दंश को झेल रहे है। सामाजिक कुरूतियों और अंधविश्वासों से भी देश को मुक्ति चाहिए इससे जाहिर होता है कि स्वाधीनता सेनानियों के कई सपने साकार नही हो पाये है।

विकास के साथ अमीरी और गरीबी के बीच की खाई बहुत बढ़ गई है। हमारी राजनीति दिनों दिन दूषित होते जा रही है आपराधिक पृष्ठभूमि के लोग राजनीति में अपनी घुसपैठ बनाने में सफल हो रहे हैं। देश की जनता के हक में आवाज उठाने वाले संघर्षशील साथी, उन पर भारत सरकार देश द्रोही का तमगा लगाकर जेल से सींखचों के अन्दर डाल रही है। बोलने और अभीव्यक्ति की आजादी पर खतरा मन्डरा रहा है। चुनाव प्रणाली इतनी मेंहगी हो गई है कि देश का आम नागरिक चुनाव लड़ना तो दूर चुनाव लड़ने का सोच भी नही सकता। और इस कारण देश के  आम व्यक्तियों के पक्ष में कानून बनाने वाले लोग लोकसभा और विधान सभा में नही पहुँच पा रहे है सरकार कानून बनाने के पूर्व कानून पर बहस करने से कतराते है और अध्यादेश तथा नियम के माध्यम से जन विरोधी कानून देश की जनता को  झेलने पड़ रहे हैं। लोकतंत्र की हत्या मध्यप्रदेश और  महाराष्ट्र में मूक दर्शक बनकर देश की जनता देखती रही।

नई आर्थिक नीति के दुष्परिणाम हमारे आपके सामने है सभी सरकारों ने इस नीति का पलक पावड़े बिछाकर स्वागत किया है। निजीकरण का दंश पूरा देश झेल रहा है, सरकारी स्कूल बन्द होने की कगार पर है, सरकारी अस्पताल निजी अस्पताल के इशारों पर चल रहे है। सार्वजनिक परिवाहन व्यवस्था, मृत्युशैय्या पर दिखाई दे रही है। बैक एवं रेल्वे का निजीकरण का दुष्परिणाम हमारे सामने है। सार्वजनिक सम्पत्ति जो जनता की खून पसीने की कमाई से तैयार की गई थी जिसे बेचने का अधिकार इस देश की जनता ने सरकार को नही दिया है पर पूँजीपति के इशारों पर सार्वजनिक सम्पत्ति बेचने का सिलसिला बदस्तूर चालू है, कारण बहुत स्पष्ट है इलेक्टोरल बाॅन्ड, जिसे कि सूचना के अधिकार से बाहर रखा गया है और यही से शुरूआत होती है गैर बराबरी बढ़ने की। देश के सबसे अमीर 98 भारतीयों की सम्पत्ति 55.2 करोड़ भारतीयों के बराबर है जो यह दर्शाती है कि भारत के संविधान में समता का अधिकार बेमानी है। स्वतंत्रता संग्राम सेनानी के सपने साकार करने का एक ही माध्यम है, वह है हमारे भारत के संविधान के नीति निर्देषक तत्व। अगर हमें अपने सपनों के भारत को साकार रूप देना है तो नीति निर्देशक तत्व के अनुसार देश में कानून बने, इस पर अपनी गिद्ध आखें रखनी होगी। यह तभी हो सकता है जब कल्याणकारी सरकार हो। वर्तमान में केन्द्र या राज्य की सरकारें कल्याणकारी नही बल्कि पुलिस राज्य की सरकार दिखाई देती है। हमें अपने सपनों को साकार करने के लिए 1861 के पुलिस एक्ट को बदलने तथा पुलिस की जवाबदेही राज्य की जनता तथा कानून के प्रति जवाबदेह बनाने की तरफ बढ़ना होगा। हमें एक ऐसी अर्थव्यवस्था का ब्लुप्रिन्ट बनाना होगा जिसमें प्रत्येक व्यक्ति के हाथ में रोजगार हो सामाजिक आर्थिक राजनीतिक न्याय, अभिव्यक्ति, विचार, विश्वास, धर्म तथा उपासना की स्वतंत्रता, प्रतिष्ठा एवं अवसर की समता प्रत्येक नागरिक का अधिकार हो। देश में बन्धुत्व एवं भाईचारा मिटाकर पुलिस के बल पर चलने वाली सरकारों को हमें नकारना होगा। तभी हम कह सकते हैं कि हमारे स्वतंत्रता संग्राम के सेनानियों के सपने पूरे हुए।

 

लिखें और कमाएं
मध्यप्रदेश के पत्रकारों को खुला आमंत्रण । आपके बेबाक और निष्पक्ष समाचार जितने पढ़ें जाएंगे उतना ही आपको भुगतान किया जाएगा । 1,500 से 10,000 रुपए तक हर माह कमा सकते हैं । अगर आप इस आत्मनिर्भर योजना के साथ जुड़ना चाहते हैं तो संपर्क करें:
गौरव चतुर्वेदी
खबर नेशन
9009155999

Share:


Related Articles


Leave a Comment