आसान है किडनी की बीमारियों को पहचानना

 

 

सामान्य जांचों से समय रहते करवाएं इलाज बडी मुसीबतों से बचें

 

लेखक एमजीएम सुपरस्पेशलिटी अस्पताल इंदौर में नेफ्रोलॉजिस्ट एवम प्रत्यारोपण विशेषज्ञ सहायक प्राध्यापक, नोडल अधिकारी,SOTTO MP डॉ ईशा तिवारी ( MD DNB DM ) हैं |

 

खबर नेशन / Khabar Nation 

कितनी आम है किडनी की बीमारी? किडनी शरीर का एक ऐसा अंग है जो यदि खराब हो रही हो तो 50% खराबी आने तक भी कोई लक्षण नहीं उभरते हैं| इसी कारणवश कई शोधों में पाया गया है की  किडनी की बीमारियां १२ से १६ प्रतिशत लोगों में मौजूद होने के बाद भी सिर्फ १—२ प्रतिशत लोगों में ही यह परिलक्षित होता है और वे इसका इलाज करवा रहे होते हैं। बाकी लगभग १०से१५ प्रतिशत को ये पता ही नहीं होता है की उन्हें किडनी की बीमारी है। ऐसे लोग बीमारी के प्रारंभिक अवस्था में होने के कारण कई सूक्ष्म लक्षणों को नजरअंदाज कर देते हैं। किडनी की बीमारियों को पहचानना आसान है । समय रहते सामान्य जांचों के माध्यम से इलाज करवाएं और बडी मुसीबतों से बचा जा सकता है ।

किडनी की सेहत जानना क्यों जरूरी है?

किडनी की बीमारी यह विडंबना है कि यह अंग स्वयं को पुनः विकसित नहीं कर सकता। अर्थात्, किडनी की कोशिकाएं, जिसे नेफ्रॉन्स कहते है ,उनमें रिजनरेशन की क्षमता नहीं होती है। पूर्णतः सेहतमंद व्यक्ति में भी ४०वर्ष की आयु के बाद गुर्दे की कार्य क्षमता का लगभग १% प्रति वर्ष प्राकृतिक पतन शुरू हो जाता है। यानि ६० साल की उम्र के पूर्णतः सेहतमंद व्यक्ति की किडनी की क्रियात्मकता में २०% की कमी आ चुकी होती है। आम तौर पर जब तक यह ५०% से कम न हो तब तक कोई मुख्य लक्षण नहीं आते हैं और यदि जब तक यह ६% से भी कम न हो जाए तब तक डायलिसिस की जरूरत नहीं पड़ती है।

 किडनी रोगों को विषय में किसे अधिक सजग होना चाहिए ?

 प्रायः यह देखा गया है कि किडनी की क्षमता के कम हो जाने का दर १% प्रतिवर्ष से बढ़ कर ८—१५% प्रतिवर्ष तक हो जाता है यदि व्यक्ति को डायबिटीज, हाइपरटेंशन , अधिक मोटापा, जेनेटिक  या ऑटोइम्यून बीमारियां, किडनी या यूरेटर में  पथरी, मूत्र संक्रमण, हृदय रोग, लीवर रोग, कैंसर इत्यादि जैसी कोई बीमारी हो। ऐसे व्यक्ति जिन्होंने दर्द निवारक गोलियों एवम अनाधिकृत औषधियों का अधिकाधिक सेवन किया हो ,उन में भी तीव्र गति से गिरावट देखी जाती है। यदि हम किडनी के रोगों को इन मरीजों में जल्द पता लगा लें तो किडनी में होने वाली खराबी के दर को रोका या धीमा किया जा सकता है। सही समय पर विशेषज्ञों के द्वारा इलाज और जागरूकता से हम डायलिसिस से बच सकते हैं और अपनों को बचा सकते है।

किडनी की बीमारियों को कैसे पहचाने—लक्षण और जांच?

वैसे तो किडनी के रोगों के लक्षण बीमारी के बढ़ जाने के बाद प्रकट होते हैं लेकिन उनके विषय में जानकारी रख सही इलाज करवाना अत्यावश्यक है| निम्नलिखित सूचकों के होने पर सजग हो जाएं :

मूत्र ज्यादा या कम आना

मूत्र में जलन होना

मूत्र में लालपन होना या झाग आना

चेहरे पर या हाथ पैर पर सूजन आना

कम उम्र में ब्लड प्रेशर की समस्या होना

बढ़ा हुआ क्रिएटिनिन (1.3 से ज्यादा)

अनियंत्रित मधुमेह 

 

कुछ प्रारंभिक जांचों एवम आवश्यकता होने पर विस्तृत जांचों के उपरांत सटीक निदान और इलाज किया जा सकता है|

किडनी की बिमारियों के इलाज में क्या तरक्की हुई है?                                                                                                                                                                                                                                                          पिछले कुछ दशकों से तुलना की जाए तो किडनी से संबंधित रोगों के निवारण में आमूलचूल परिवर्तन एवम सुधार हुआ है। यूरीन की रूटीन टेस्ट्स से ले कर किडनी की बायोप्सी तक कर के गुर्दा रोग विशेषज्ञ यह पता लगाते हैं की इन बीमारियों के स्पेक्ट्रम में से मरीज़ को कौन सी बीमारी है और वह कितनी विस्तृत हो चुकी है। यह चिन्हित करने के उपरांत इम्यूनोसप्रेसेंट्स और गोलियों से एवम आवश्यकता पड़ने पर  किडनी के ब्लड डायलिसिस ,पेट के डायलिसिस व किडनी प्रत्यारोपण तक किया जा सकता है।

किडनी की बिमारियों का अभी क्या इलाज मौजूद है।?

मरीज़ को किस प्रकार का ट्रीटमेंट दिया जाना है वह इस पर निर्भर करता है कि उसकी बीमारी क्या है एवम किस स्टेज पर है। किडनी का रोग सिंपल इन्फेक्शन या पथरी भी हो सकता है और ग्लोमरुलर डिसीज ,किडनी में सूजन और एंड स्टेज किडनी डिसीज भी हो सकता है। इन रोगों की सही समय पर पहचान कर ली जाए तो डायलिसिस या ट्रांसप्लांट की नौबत नहीं आती है। हालांकि इन से भी घबराने की आवश्यकता नहीं है क्योंकि सही डोज़ के साथ एवम नेफ्रोलॉजिस्ट के निरीक्षण में किए गए डायलिसिस से व्यक्ति कई वर्ष साधारण जीवन व्यतीत कर सकता है। उसी प्रकार गुर्दा प्रत्यारोपण से जुड़ी सावधानियों को बरत कर सामान्य ढंग से जीवन यापन किया जा सकता है ।

1. ज्यादातर लोगों का मानना है कि मोटापे से सिर्फ हार्ट की बीमारी होती है, किडनी की नही किडनी की रक्त को फिल्टर करने की जो क्षमता है, वह मोटापे की वजह से कम होने लग जाती है और व्यक्ति को क्रोनिक किडनी डिजीज तक हो सकती है।

2. दर्द निवारक गोलियों का अधिकाधिक सेवन

3. किडनी की बीमारी को दर्शाने का सूचक क्रिएटिनिन लेवल 1.3 से ज्यादा होने पर तुरंत किडनी के डॉक्टर को दिखाना चाहिए। 

उस लिहाज से 2,2.1,2.2 भी असामान्य स्तर है। उसी समय बीमारी को पकड़ लिया जाए तो सही निदान किया जा सकता है। विडंबना ये है कि क्रिएटिनिन के स्तर को 4,5 यहां तक कि 15-20 तक बढ़ जाने के बाद ही नेफ्रोलॉजिस्ट से संपर्क किया जाता है जो सर्वथा गलत है।

4.  कई बार लोग समझते हैं कि बढ़ती उम्र के साथ ब्लड प्रेशर का बढ़ जाना भी सामान्य है। ये अवधारणा गलत है क्योंकि सभी उम्र के लिए हाईपरटेंशन हो जाने  का कट ऑफ एक जैसा है।

5. किडनी की कई बीमारियां अनुवांशिक होती हैं व पीढ़ी दर पीढ़ी चली आ रही होती हैं। ऐसे लोगों को ज्यादा सजग रहते हुए अपनी स्क्रीनिंग टेस्ट करवाते रहना चाहिए ।

 

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