फर्जीवाड़े से संविदा कर्मी  बन गया IAS अफसर के समकक्ष का अधिकारी , वल्लभ भवन में है उप सचिव के पद पर काबिज 

 

 

मूकदर्शक और सहयोगी बने रहे आला आईएएस अफसर 

मध्य प्रदेश लोक सेवा आयोग और वित्त विभाग की आपत्तियां भी रही बेअसर 

आपत्ति उठाने वाली महिला  थकहार कर घर बैठी

गौरव चतुर्वेदी /खबर नेशन / KHABAR NATION

मध्य प्रदेश के मंत्रालय वल्लभ भवन में आला आईएएस अफसर की नाक के नीचे एक संविदा कर्मी ने इतना बड़ा फर्जीवाड़ा कर दिया कि वह उप सचिव बन बैठा। उपसचिव का पद देश की बेहतरीन प्रशासनिक सेवा में चयनित आय ए एस अफसर माना जाता है।  इस मामले में मध्य प्रदेश लोक सेवा आयोग और वित्त विभाग की आपत्तियां भी दरकिनार कर दी गई । कहा जा सकता है कि आला आईएएस अफसर या तो मूकदर्शक बने होने का नाटक कर रहे थे या फिर इस फर्जीवाड़े में सहयोग कर रहे थे। अपने हक पर डाका पड़ते देख एक महिला कर्मी ने आपत्ति भी उठाई लेकिन आय ए इस अफसर और राजनेताओं के मौन और लंबी कानूनी प्रक्रिया से थक हार कर घर बैठ गई । 

सूत्रों के अनुसार चिकित्सा शिक्षा एवं गैस राहत विभाग में उप सचिव के पद पर केके दुबे कार्यरत हैं । दुबे पर शासकीय सेवा में छल कपट तथा फर्जी कूटरचित दस्तावेज तैयार कर महत्वपूर्ण जानकारियां छिपाने के साथ संविदा नियुक्ति से उपसचिव के पद पर काबिज होने का आरोप है । 

दुबे गैस राहत विभाग के अंतर्गत गांधी मेडिकल कॉलेज भोपाल में संचालित भोपाल गैस त्रासदी एवं रिसर्च सेंटर में संविदा कर्मी के बतौर नियुक्त हुए थे । जिनकी सेवाएं 31 दिसंबर 1994 को समाप्त कर दी गई।  दुबे की सेवा समाप्ति के 25 दिन बाद भोपाल गैस त्रासदी राहत एवं पुनर्वास विभाग मंत्रालय ने एक आदेश निकालकर 53 अधिकारियों कर्मचारियों की संविदा नियुक्ति आदेश जारी कर दिए । इस आदेश में दुबे का भी नाम था। आदेश में उल्लेखित था कि गांधी चिकित्सा महाविद्यालय भोपाल में स्थापित गैस त्रासदी अनुसंधान केंद्र में कार्यरत कर्मचारियों अधिकारियों को ही संविदा नियुक्ति दी जाना थी । पूर्व आदेश के अनुसार दुबे की सेवाएं समाप्त हो चुकी थी।

मई 1998 में केके दुबे को अनाधिकृत ,अनियमित एवं नियम विरुद्ध लाभ देते हुए भोपाल गैस त्रासदी राहत एवं पुनर्वास विभाग मंत्रालय वल्लभ भवन भोपाल ने उपसंचालक सांख्यिकी के एक पद को निर्मित करते हुए नियुक्ति दे दी। इस दौरान दुबे के समकक्ष 10 अधिकारी थे एवं सांख्यिकी में इनसे वरिष्ठ श्रीमती मोयना शर्मा थी । उपसंचालक सांख्यिकी के इस पद के लिए स्त्री रोग विशेषज्ञ का एक पद समर्पित कर दिया गया। इस निर्णय के खिलाफ मोयना शर्मा मध्य प्रदेश प्रशासनिक ट्रिब्यूनल में गई । ट्रिब्यूनल ने 28 फरवरी 2000 को दुबे की नियुक्ति को निरस्त कर दिया गया । मध्य प्रदेश शासन ने इस आदेश के विरुद्ध रिव्यू पिटीशन लगाई। जिस पर कोई निर्णय ट्रिब्यूनल नहीं दिया।  राज्य प्रशासनिक अधिकरण भोपाल के समाप्त होने पर यह प्रकरण माननीय उच्च न्यायालय जबलपुर में स्थानांतरित हो गया।  जो प्रचलन में था।  न्यायालय में प्रकरण विचाराधीन होने के उपरांत भी नियमों की अनदेखी करते हुए प्रकरण सहमति हेतु लोक सेवा आयोग को भेजा गया।  लोक सेवा आयोग को भेजे गए प्रकरण के कोर्ट में लंबित रहते हुए जानकारी छुपा ली गई । उनकी कमियां छुपाते हुए दुबे की नियुक्ति लोक सेवा आयोग की परिधि से बाहर रखी गई क्योंकि लोक सेवा आयोग ने प्रकरण की त्रुटियों की ओर गैस राहत विभाग को अवगत कराया था । केके दुबे की नियुक्ति में आयु सीमा की भी छूट दी गई । जबकि इस दौरान अन्य कर्मचारियों को आयु सीमा की छूट नहीं दी गई । केके दुबे की नियुक्ति बिना विज्ञप्ति निकाल कर की गई और प्रकरण मंत्री परिषद से अनुमोदित करा लिया गया । इस दौरान प्रकरण माननीय न्यायालय में लंबित था।  भोपाल गैस त्रासदी विभाग ने इस पद को प्रतिनियुक्ति से ना भरते हुए सीधी भर्ती के द्वारा भर लिया ।  जिसका कोई प्रावधान ही नहीं था । प्रथम श्रेणी के इस पद पर नियुक्ति के लिए ना तो लोक सेवा आयोग से कोई अनुमति प्राप्त की गई और ना ही जीएडी या वित्त विभाग से कोई परामर्श लिया गया।  जी ए डी ने दुबे के प्रकरण में मत दिया था कि प्रथम श्रेणी के पद पर सीधी भर्ती से नियुक्ति करने के पूर्व लोक सेवा आयोग से छूट प्राप्त करने हेतु मंत्री परिषद का कोई आदेश नहीं है । इन कमियों को दूर करने के लिए निर्धारित प्रक्रिया भी नहीं अपनाई गई। वित्त विभाग ने भी अपने अभिमत में इस पद की आवश्यकता नहीं बताई थी। 

 मोयना शर्मा द्वारा तत्कालीन प्रमुख सचिव एवं वरिष्ठ अधिकारियों को इस अनियमितता की ओर अवगत भी कराया गया था लेकिन अधिकारियों ने इस मामले में कोई भी निर्णय नहीं लिया । अगर दुबे की नियुक्ति एवं पदोन्नति की सूक्ष्म जांच करवा ली जाए तो मध्य प्रदेश के कई आला आईएएस अफसर जेल की सलाखों के पीछे होंगे।

जब इस मामले को लेकर उपसचिव गैस राहत एवं चिकित्सा शिक्षा विभाग के के दुबे से दूरभाष पर चर्चा की तो उन्होंने कहा कि मैं अभी मीटिंग में हूं। आपसे थोड़ी देर बाद बात करता हूं। इसी के साथ उन्होंने कहा कि वैसे इस मामले में कुछ नहीं है। हाईकोर्ट से भी क्लीयर हो चुका है और लोकायुक्त से भी।

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