आदिवासी अत्याचार के मामले में शिवराज सरकार की विफलता पर स्पष्टीकरण दें प्रधानमंत्री

मप्र कांग्रेस आदिवासी विभाग के अध्यक्ष रामू टेकाम और युवा कांग्रेस
के अध्यक्ष डॉ. विक्रांत भूरिया की संयुक्त पत्रकार वार्ता

भाजपा सरकार के 18 वर्षीय लंबे शासनकाल में आदिवासियों पर हुये तीस हजार से अधिक अत्याचार के मामले प्रदेश को शर्मसार कर रहे हैं

प्रधानमंत्री के शहडोल दौरे में आदिवासियों के कार्यक्रम में ही आदिवासी नेताओं को दरकिनार करना भाजपा की नीयत को दर्शाता है

खबर नेशन/ Khabar Nation

भोपाल, । भारतीय जनता पार्टी का 18 वर्षों का लंबा शासनकाल मप्र में आदिवासियों के लिए दमनकारी साबित होने के साथ ही यह भी प्रमाणित करता है कि भाजपा का प्रादेशिक नेतृत्व आदिवासियों के लिए पूरी तरह से असंवेदनशील और निष्ठुर रहा है। इस पूरे कार्यकाल के दौरान आदिवासियों के खिलाफ अब तक दर्ज 30406 मामले आदिवासी अत्याचार की पीड़ादायक और दर्दनाक स्थिति को उजागर करते हैं।
यह भी उल्लेखनीय है कि भारत में सबसे अधिक आदिवासी आबादी मप्र में ही है, लेकिन यह विडंबना ही है कि पिछले पांच वर्षों से लगातार आदिवासियों के खिलाफ सबसे अधिक अत्याचार के मामले मप्र में ही दर्ज किये गये हैं।
जून 2021 में हुये नेमावर सामूहिक हत्याकांड ने आदिवासियों की पीड़ा के प्रति शिवराज सरकार की उदासीनता को तब पूरी तरह से उजागर कर दिया था, जब देवास जिले के नेमावर में पांच आदिवासियों के क्षत-विक्षत शव एक गढ्ढे में पाये गये थे। आदिवासियांे को शिवराज सरकार के पूरे कार्यकाल में लगातार कष्ट सहना पड़ा है, जैसे मार्च 2023 में मप्र पुलिस ने इंदौर में एक आदिवासी महिला की मौत पर न्याय की मांग कर रहे आदिवासियों के खिलाफ आंसू गैस के गोले दागने के साथ ही फायरिंग भी की थी, जिसमें एक आदिवासी युवक की मौत हो गई थी। अगस्त 2022 में राज्य वन विभाग की एक टीम ने लकड़ी तस्करी के आरोप में आदिवासी लोगों पर गोलीबारी की जिसमें एक आदिवासी की मौके पर ही मौत हो गई और चार आदिवासी घायल हो गये थे। ऐसी तमाम घटनाएं आदिवासियों के खिलाफ चल रहे क्रूरता के दमनचक्र को स्पष्ट रूप से दर्शा रही हैं।
मप्र के नागरिक हैरान हैं कि आदिवासी माताओं और बहनों को आये दिन बलात्कार की घटनाओं का सामना करना पड़ रहा है। शर्मनाक है कि देश में आदिवासी महिलाओं से जुड़े बलात्कार के सबसे अधिक मामले शिवराज सिंह चौहान के शासनकाल में ही मप्र में दर्ज किये गये हैं।
वर्ष 2021 में आठ महीने की गर्भवती आदिवासी महिला मां नहीं बन सकी, जब आरएसएस के तीस लोगों ने कथित तौर पर धर्म परिवर्तन के संदेह में बड़वानी के एक ग्रामीण परिवार पर हमला किया था। जून 2023 में पिपरिया क्षेत्र की एक 50 वर्षीय आदिवासी महिला के साथ क्रूरतापूर्वक बलात्कार कर उसकी हत्या कर दी गई। मार्च 2023 में सामूहिक बलात्कार और हत्या की शिकार 23 वर्षीय आदिवासी महिला के परिवार ने सरकार की प्रशासनिक असफलता के खिलाफ न्याय की मांग करते हुये विरोध प्रदर्शन किया।

शिवराज सिंह की नाकारा सरकार प्रदेश के हजारों हकदार आदिवासी परिवारों को जमीन के पट्दे देेने में पूरी तरह असफल साबित हुई है। मप्र में भूमि दावों की कुल संख्या 6,27,583 थी, जिनमें से लगभग 3,22,699 (51.43 प्रतिशत) दावे खारिज कर दिये गये और 10 हजार से अधिक दावे अभी भी सरकार के पास लंबित हैं।
श्योपुर जिले में आदिवासी महिलाओं को साफ पानी के लिये रोजाना पांच किलोमीटर से अधिक दूरी तय करना पड़ रही है और 55 प्रतिशत आदिवासी गांवों में अभी भी पानी की पहुंच नहीं है। जल-जीवन मिशन मप्र के आदिवासियों तक कब पहुंचेगा। मप्र के 20,407 आदिवासी गांवों में से 11,274 गांवों में अभी भी नल का पानी नहीं पहुंचा है, जो आदिवासी समुदाय की बुनियादी जरूरतों को पूरा करने में शिवराज सरकार की विफलता को पूरी तरह से उजागर कर रहा है।
यह भी उल्लेखनीय है कि केंद्र की यूपीए सरकार द्वारा वर्ष 1996 मंे संसद में पेसा एक्ट को पारित किया गया था, जिसका मूल उद्देश्य ग्राम सभाओं को सर्व शक्तिशाली, सशक्त और संपन्न बनाना था, जिसके लिए एक नारा दिया गया था, ‘न लोकसभा न विधानसभा-सबसे बड़ी ग्राम सभाआज भाजपा सरकार ने एक पूरी तरह से कमजोर और फर्जी पेसा कानून लागू किया जो कि आदिवासी भावनाओं के बिल्कुल विपरीत है और उनकी भावनाओं के साथ एक बहुत बड़ा खिलवाड़ है।
हम पेसा कानून को फर्जी इसलिए कह रहे हैं, क्यांेकि आदिवासी क्षेत्रों को नौकरशाही से मुक्त करना ही पेसा कानून का मूल उद्देश्य था, जो कि अभी पूरी तरह से नकार दिया गया है। आज भी ग्राम सभाऐं अधिकारविहीन है और सारे अधिकारी एसडीएम और कलेक्टर को हैं। आदिवासी ग्राम सभाओं के पास खनिज और वनोपज का एकाधिकार नहीं है। आदिवासियों की रूढ़ी प्रथा, रिवाज, पहचान और संस्कृति को बचाने के लिए पेसा कानून में कोई प्रावधान नहीं है।
संक्षेप में हम यह कह सकते हैं कि मूल पेसा कानून आदिवासियों को जल, जंगल और जमीन का अधिकार देता था, जो कि भाजपा के इस फर्जी पेसा कानून में कहीं भी दिखाई नहीं देता है।
आदिवासियांे के प्रति भारतीय जनता पार्टी की मंशा इस बात से भी उजागर होती है कि प्रधानमंत्री के शहडोल दौरे के कार्यक्रम के लिये जो आमंत्रण पत्र छपवाकर वितरित किये गये हैं, उसमें भाजपा के ही वरिष्ठतम आदिवासी नेताओं केंद्रीय मंत्री फग्गनसिंह कुलस्ते, सांसद हिमाद्री सिंह एवं मप्र शासन के मंत्री बिसाहूलाल सिंह के ही नाम शामिल नहीं हैं।
उपरोक्त सभी परिप्रेक्ष्यों में यदि देखा जाये तो यह बात बिल्कुल स्पष्ट हो जाती है कि मप्र के आदिवासी वर्ग के हितों के संरक्षण में शिवराज सरकार पूरी तरह से अक्षम और नाकारा साबित हुई है, आदिवासियों पर बढ़ने हुये अत्याचारांे ने भी यह सिद्ध कर दिया है कि शिवराज सरकार ने न केवल आदिवासी वर्ग के मामले में दोहरा चरित्र अपनाया है, बल्कि पूरी तरह से अमानवीय, असंवेदनशील और निष्ठुर भी साबित हुई है।

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