माय मदर इज इन ट्रबल

 

 तो ऐसा माधवराव सिंधिया ने राजमाता विजयाराजे के लिए क्यों कहा था ?
 खबर नेशन / Khabar Nation

 भारतीय राजनीति में राजशाही हमेशा लोकतंत्र के बावजूद अपने स्थान को बरकरार रखें हुए हैं। हाल ही में भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस के राष्ट्रीय महासचिव पद से ग्वालियर रियासत के महराज ज्योतिरादित्य सिंधिया नाता तोड़कर तगड़ा झटका दिया है। कांग्रेस को यह तगड़ा झटका उन्होंने मध्यप्रदेश में भारतीय जनता पार्टी की सरकार बनवाने में अहम भूमिका निभाकर भी दिया है। लगभग पन्द्रह माह पुरानी कांग्रेस सरकार बनवाने में सिंधिया ने बहुत बड़ा योगदान दिया था। निजी नाराजगी, भविष्य की सुनहरी रुपरेखा और निजी स्वार्थ के चलते 22 विधायकों को अलग लेकर सिंधिया ने कांग्रेस सरकार गिरवा दी।सो प्रसंगवश यह घटना याद आ गई।
आजादी के बाद मध्यप्रदेश की राजनीति में खासकर ग्वालियर रियासत में सिंधिया घराने ने अहम भूमिका निभाई है। भारतीय राजनीति में प्रवेश करने वाली सिंधिया घराने से सर्वप्रथम राजमाता विजया राजे सिंधिया थी। जिसके बाद माधवराव सिंधिया फिर वसुंधरा राजे और यशोधरा राजे रही । अब ज्योतिरादित्य सिंधिया भी हैं।1957 में स्वर्गीय राजमाता सिंधिया राजनीति में आई थी। इसके बाद स्वर्गीय माधवराव सिंधिया के कांग्रेस प्रवेश से राजमाता नाराज़ रहीं और दोनों में तल्खियां बढ़ गई। इसके बावजूद 90 के दशक में एक चुनाव के दौरान महाराजा माधवराव सिंधिया अपने एक निकट मित्र से यह कहते हुए सुने गए कि माय मदर इन ट्रबल । बताया जाता है तल्ख रिश्तों के बावजूद माधव महाराज की यह बात बाहर आई तो उस समय के कांग्रेस के बड़े नेता स्व.अर्जुन सिंह ने इस मुद्दे पर किसी भी प्रकार की टिप्पणी करने से चुप्पी साध ली। यह दौर लोकसभा चुनाव का था और राजमाता गुना शिवपुरी लोकसभा क्षेत्र से चुनाव लड़ रही थी और राजनीतिक बिसात पर उनकी हालात काफी कमजोर मानी जा रही थी।
राजनैतिक सूत्रों के अनुसार जिस दिन माधव महाराज के मुख से यह शब्द निकले थे उस दिन ग्वालियर में तत्कालीन मुख्यमंत्री अर्जुन सिंह के साथ सिंधिया का रात्रि का भोजन तय हुआ था और दूसरे दिन सिंधिया अर्जुनसिंह के साथ जबलपुर जाने वाले थे। उस दिन ना यह डिनर हुआ और ना ही दूसरे दिन दोनों ने साथ साथ विमान यात्रा की। बताया जाता है कि माधवराव सिंधिया और अर्जुन सिंह के बीच वैचारिक तौर पर मतभिन्नता थी लेकिन दोनों एक दूसरे की गाहे-बगाहे मदद भी कर दिया करते थे।
इस तरह की राजनीतिक सौजन्यता सिंधिया परिवार के साथ भाजपा कांग्रेस निभाते रहे। राजनैतिक हलकों में यह भी कहा जाता है कि भले ही सिंधिया परिवार के बीच आपस के संबंधों में तल्खियां रहती थी। पर ना तो वे एक दूसरे के खिलाफ चुनाव लड़ते थे और ना ही एक दूसरे के खिलाफ मजबूत प्रत्याशी उतरने देते थे ।

यह भी एक बड़ी वजह...डर...!
जब आपातकाल के बाद के '77 के चुनाव में माधवराव सिंधिया ने कॉंग्रेस समर्थित निर्दलीय उम्मीदवार के रूप में चुनाव लड़ने का निर्णय लिया था तब स्व.राजमाता ने कहा था कि मेरा बेटा कायर है।
  '96 के चुनाव में जब जयभान पवैया ने माधवराव को शहरी क्षेत्र ग्वालियर से लगभग पराजित कर दिया ( जीत का अंतर मात्र 25000) तो '98 में वे ग्रामीण क्षेत्र गुना आ गये।
अब जब एक साधारण व्यक्ति ने ज्योतिरादित्य को हरा दिया तो उन्हें समझ में आ गया कि सिंधिया +कॉंग्रेस के नाम का जादू ख़त्म हो गया है अब जीतने और जिताने वाली पार्टी की ओर चलो जिससे परिवार के नाम की झाँकी जमी रहे।
हारने के बाद से ही वे अवसर तलाश रहे थे यदि जेटली का स्वर्गवास नहीं होता तो ये बहुत पहले ही जा चुके होते।

पिता की राह पर क्यों नही चले श्रीमंत
राजनीति हमेशा जनसेवा के लिए की जाती है ऐसा सारे नेताओं का कहना होता है पर वे ईमानदारी से करते नहीं हैं...... सिंधिया परिवार को लेकर माना जाता है कि वे इस मामले में एक हद तक ईमानदार है बनिस्बत अन्य नेताओं के....... ज्योतिरादित्य सिंधिया भी योग्य नेता हैं और उनका स्वयं का कद बहुत बड़ा है लेकिन इस मामले में वे तुच्छ राजनीति कर बैठे...... अगर उनकी उपेक्षा कांग्रेस में हो रही थी तो उन्हें अपनी हैसियत लड़कर जताना चाहिए थी...... मध्यप्रदेश की राजनीति में स्वर्गीय अर्जुन सिंह और स्वर्गीय माधवराव सिंधिया भी कांग्रेस से अलग हुए थे.... दोनों ने नयी पोलिटिकल पार्टी बनाई थी लेकिन उन्होंने मौजूदा सत्ता को हिलाने का काम नहीं किया था.....वे चाहते तब भी सरकार गिराई जा सकती थी....... ज्योतिरादित्य सिंधिया जाते भाजपा में तो बुरा नहीं माना जाता लेकिन सिंधिया ने कांग्रेस तब छोड़ी जब 22 कांग्रेस विधायकों को बैंगलोर में बंधक बनवा दिया.....

Share:


Related Articles


Leave a Comment