दिग्विजय तो भोपाल का घोषणा पत्र बना रहे हैं, आपके यहां क्या हाल है?

सुबह सवेरे मंडे मैपिंग से साभार

पंकज शुक्ला 

पूर्व मुख्‍यमंत्री दिग्विजय सिंह को कांग्रेस से प्रत्‍याशी बनाने के साथ ही भोपाल लोकसभा क्षेत्र देशभर में चर्चा में आ गया है। भोपाल भाजपा का गढ़ है और पूर्व मुख्‍यमंत्री शिवराज सिंह चौहान सहित कई भाजपा नेता कह चुके हैं कि दिग्विजय को तो कोई भी भाजपा कार्यकर्ता हरा सकता है। जाहिर है, चुनावी प्रबंधन में सिद्ध माने जाने वाले दिग्विजय इस चुनौती को जीतने के लिए कुछ ऐसा करेंगे जो विशिष्‍ट होगा। इसी क्रम में, उन्‍होंने कहा है कि वे भोपाल क्षेत्र के विकास को लेकर अपना घोषणा पत्र जारी करेंगे। आज के राजनीतिक माहौल में यह एक अच्‍छा ‘मूव’ हो सकता है। आप भी अपने क्षेत्र के प्रत्‍याशियों व उनके एजेंडे पर नजर रखिए कि वे क्षेत्र के लिए अपनी किसी योजना का खुलासा करते हैं या नहीं? या राष्‍ट्रीय मुद्दों पर ही अपनी राजनीति चमकाते हैं।

कल सांसद बनने वाले प्रत्‍याशियों से उनकी योजना की जानकारी जाननी इसलिए भी जरूरी है कि सांसदों का रिकार्ड कुछ अच्‍छा नहीं है। यदि लोकसभा में हुए कामकाज और बर्बाद हुए समय का विश्लेषण किया जाए तो 16 वीं लोकसभा में कुल मिलाकर 1659:47 घंटे ही काम हुआ और तक़रीबन 500 से ज्यादा घंटे का समय बर्बाद हुआ। लोकसभा का समय बर्बाद होने का कारण लगातार चलते रहने वाला व्यवधान है। 16 वीं लोकसभा के पांच सालों में कुल 63,443 बार व्यवधान हुआ। इसके अलावा 609 बार सांसद वेल में पहुंचे और 171 बार वाकआउट किया। बार-बार के व्यवधानों के कारण 313 बार लोकसभा को स्थगित करना पड़ा। विडंबना तो यह है कि सतत व्यवधान के कारण सांसद लोकसभा में कम रहते हैं और इसके फलस्वरूप 191 बार तो कोरम पूरा करने के लिए घंटी बजानी पड़ी।

यह तो सदन के अंदर की बात हुई। अब बाहर का प्रदर्शन। केन्‍द्रीय सांख्यिकी मंत्रालय के अनुसार मप्र के 29 में से महज 9 सांसदों ने ही अपनी निधि का पूरा उपयोग किया है। सांसद निधि का उपयोग न करने वाले सांसदों में भाजपा के 18 और कांग्रेस के एक सांसद हैं। लोकसभा अध्‍यक्ष सुमित्रा महाजन के साथ भाजपा की सावित्री महाजन, मनोहर ऊंटवाल, गणेश सिंह, प्रहलाद पटेल, लक्ष्‍मीनारायण यादव, बोधसिंह भगत ने अपनी पूरी सांसद निधि खर्च की। कांग्रेस से मुख्‍यमंत्री कमलनाथ और ज्‍योतिरादित्‍य सिंधिया पूरी राशि खर्च कर पाए जबकि झाबुआ-रतलाम के कांग्रेस सांसद कांतिलाल भूरिया आधी राशि ही खर्च कर सके।

सांसद निधि की बात इसलिए कि सांसदों को अपने क्षेत्र में विकास कार्यों के लिए प्रतिवर्ष 5 करोड़ रुपए दिए जाते हैं। इस तरह प्रत्‍येक सांसद को 25 करोड़ रुपए प्राप्‍त हुए। यदि वे अपने क्षेत्र में विकास कार्यों पर पैसा ही खर्च नहीं करेंगे तो जनता की समस्‍याएं कैसे दूर होंगी? मप्र के संदर्भ में तो यह जानना भी हैरतअंगेज है कि केन्द्र सरकार ने यहां के कई सांसदों की विकास निधि की दूसरी किश्त रोक दी थी क्‍योंकि इन सांसदों द्वारा समय पर उपयोगिता प्रमाण-पत्र उपलब्ध नहीं करवाया गया था। यह भी तब हुआ जब प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने भाजपा के सभी सांसदों से कहा था कि वे ग्रामीण क्षेत्रों के विकास पर ज्यादा ध्‍यान देते हुए राशि जारी करें। ऑडिट और उपयोगिता प्रमाण पत्र समय पर नहीं देने से टीकमगढ़, उज्जैन, भोपाल, मुरैना, मंडला, झाबुआ, खजुराहो, जबलपुर, खरगोन, खंडवा, मंदसौर, होशंगाबाद, बैतूल और सीधी सांसद को आखिरी किश्त जारी नहीं हो सकी।

यह भी देखा जाना चाहिए कि सांसदों ने किन कामों पर पैसा खर्च किया है। अधिकांश सांसदों ने अपने नाम पर गेट या कोई चबूतरा बनवाने, धार्मिक स्‍थलों के निर्माण या जीर्णोद्धार, जातीय समाज संगठनों की मांग पूरी करने में पैसा खर्च किया। शिक्षा, स्‍वास्‍थ्‍य, पानी, रोजगार उन्‍नयन जैसे काम इनकी प्राथमिकताओं में नहीं रहे। इतना ही नहीं अधिकांश सांसदों ने चुनाव करीब आने पर उन क्षेत्रों में ताबड़तोड़ राशि बांटी जहां से उन्‍हें राजनीतिक लाभ की आस थी। अभी मौका है, आप देखिए कि आपके सांसद प्रत्‍याशी राष्‍ट्रीय मुद्दों से अलग अपने क्षेत्र, वहां की हवा-पानी, अच्छे स्वास्थ्य, शिक्षा, और रोज़गार के बारे में क्‍या सोचते हैं? किसी की मत सुनिये! खुद से बात कीजिये। फ़िर तय कीजिये असली मुद्दा क्या है?

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