बर्मिंघम में लोहा उठाकर सोना निकाला भारत की मीरा बाई चानू ने

खबर नेशन / राजकुमार जैन
देश की आजादी के 75वें वर्ष में पहले भाला फेंक में नीरज, फिर मुक्केबाज़ी में निकहत और अब मीरा बाई चानू ने दिलवाया भारत को स्वर्णिम गौरव। सोलिहुल के नेशनल एग्जिबीशन सेंटर में महिलाओं के 49 किग्रा वर्ग में कुल 201 किग्रा (स्नैच - 88 किग्रा; क्लीन एंड जर्क – 113 किग्रा) उठाकर स्वर्ण पदक हासिल करते हुए मीराबाई ने 22वें राष्ट्रमंडल खेल में भारत के लिए तीसरा पदक जीता। ओलंपिक रजत पदक विजेता, विश्व चैंपियन और तीन बार के राष्ट्रमंडल खेलों की स्वर्ण पदक विजेता मीराबाई चानू निश्चित ही भारत की सार्वकालिक बेहतरीन वेटलिफ्टर में से एक है।
प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने ट्वीटर पर मीराबाई चानू को बधाई देते हुए लिखा है, असाधारण, मीरा बाई आपने भारत को एक बार फिर गौरवान्वित किया। प्रत्येक भारतीय इस बात से खुश है कि उन्होंने बर्मिंघम कॉमनवेल्थ गेम्स में गोल्ड मेडल जीता और एक नया रिकॉर्ड कायम किया। उनकी सफलता कई भारतीयों को प्रेरित करती है, खासकर नये उभर रहे एथलीटों को।
इस दमदार महिला साइखोम मीराबाई चानू का जन्म माता साइखोम ओंगबी तोंबी लीमाऔर पिता साइखोम कृति मितेई के घर 8 अगस्त 1994 को भारत के उत्तर पूर्वी राज्य मणिपुर की राजधानी इम्फाल से दूर पूर्वी इंफाल जिले की तलहटी में बसे नोंगपोक काकचिंग नामक गाँव में हुआ था। इनकी माँ एक दुकानदार हैं और पिता लोक निमार्ण विभाग में काम करते हैं।
जहां उनका जन्म हुआ था वो एक ऐसा गांव था जो सभी प्रकार की बुनियादी सुविधाओ से वंचित था, किसी तरह की कोई सुविधा नही थी। उनके घर में लकडिया जलाकर खाना बनता है। और मीरा अपने गांव से दूर जंगल से लकड़ी काटकर अपने घर में लाया करती थी। एक बार जब वो अपने भाई के साथ जंगल से लकडी काटकर अपने घर ला रही थी। तो उनके भाई सैखोम सांतोम्बा मीतेई ने देखा कि वो अपने सर पर कई किलों की लकडियों का भार आसानी से उठाकर अपने घर की तरफ चलती जा रही है। उनके भाई को ये देखकर काफी ज्यादा आश्चर्य हुआ। तभी से ही उनका भाई उन्हे वेटलिफ्टिग की तरफ जाने के लिए प्रेरित करने लगा।
4 फ़ुट 11 इंच लंबाई की मीराबाई चानू को देखकर यह अनुमान लगाना भी मुश्किल है कि बित्ते भर की यह लड़की बड़े बड़ों के छक्के छुड़ा सकती हैं। मीराबाई चानू जब स्कूल में पढा करती थी तो वो एक तीरंदाज बनना चाहती थी। उन दिनों मणिपुर की ही महिला वेटलिफ़्टर कुंजुरानी देवी स्टार थीं और एथेंस ओलंपिक में खेलने गई थीं। टीवी पर देखा वही दृश्य छोटी मीरा के ज़हन में बस गया और छह भाई-बहनों में सबसे छोटी मीराबाई ने कुंजुरानी की तरह वेटलिफ़्टर बनने की ठान ली। मीरा की ज़िद के आगे माँ-बाप को भी हार माननी पड़ी। 2007 में जब मीरा ने विधिवत प्रैक्टिस शुरु की तो पहले-पहल उनके पास लोहे का बार नहीं था तो वो बाँस से ही प्रैक्टिस किया करती थीं।
गाँव में ट्रेनिंग सेंटर नहीं था तो मीरा 50-60 किलोमीटर दूर ट्रेनिंग के लिए जाया करती थीं। डाइट में रोज़ाना दूध और चिकन चाहिए था। लेकिन मीरा के गरीब परिवार के लिए इसे जुटाना बहुत मुश्किल भरा होता था। अपने जूनून के चलते 11 साल में वो अंडर-15 चैंपियन बन गई थीं और 17 साल में जूनियर चैंपियन। जिस कुंजुरानी को देखकर मीरा के मन में चैंपियन बनने का सपना जागा था। अपनी उसी नायिका के 12 साल पुराने राष्ट्रीय रिकॉर्ड को मीरा ने 2016 में तोड़ा- 192 किलोग्राम वज़न उठाकर। हालांकि सफ़र तब भी आसान नहीं था क्योंकि मीरा के माँ-बाप के पास इतने संसाधन नहीं थे।
मीराबाई को वेटलिफ्टिग की दुनिया में पहली बडी सफलता तब मिली उन्होने 2014 के ग्लास्गो राष्ट्रमंडल खेलों में 48 किलों भारवर्ग में सिल्वर मेडल जीता। उन्होंने अपने पहले ओलंपिक रियो 2016 में अपने प्रदर्शन से प्रतिद्वंदियों के छक्के छुड़ा दिए थे। जहां उन्होंने 12 साल के राष्ट्रीय रिकॉर्ड को तोड़ने के बाद प्रवेश किया था, लेकिन वह अपने किसी भी क्लीन-एंड-जर्क लिफ्ट को पूरा करने में असमर्थ रही थीं। इस असफलता ने मीराबाई चानू को निराशा कर दिया और यहां तक कि उन्होंने जल्द ही रिटायर होने के बारे में भी सोचा। इसके बाद इस सदमे से उबरते हुए उन्होने 2017 के वर्ल्ड वेटलिफ्टिग चैंपियनशिप में शानदार प्रर्दशन कर धमाकेदार वापसी की। 2018 में हुए राष्ट्रमंडल खेलों में मीराबाई चानू ने अद्भुत प्रर्दशन किया और स्वर्ण पदक जीतकर उन्होने अपने बुलंद इरादे दुनिया को जता दिये थे।
कर्णम मल्लेश्वरी के बाद, टोक्यो ओलंपिक 2020 में मीराबाई ने अपने दृढ़ संकल्प और कई बलिदानों के बाद रजत पदक जीता, जो किसी भारतीय वेटलिफ्टर द्वारा जीता गया दूसरा ओलंपिक पदक था। वह पीवी सिंधु के बाद ओलंपिक रजत पदक जीतने वाली दूसरी भारतीय महिला भी बनीं।
“पद्म श्री” और “राजीव गांधी खेल रत्न” से सम्मानित मणिपुर राज्य की अतिरिक्त पुलिस अधीक्षक (खेल) मीरा को डांस का भी शौक़ है। एक इंटरव्यू में उन्होंने बताया था, "मैं कभी-कभी ट्रेनिंग के बाद कमरा बंद करके डांस करती हूँ और मुझे सलमान खान पसंद हैं।"
बर्मिंघम में स्वर्ण पदक जीतने के बाद मीराबाई चानू ने कहा, राष्ट्रमंडल खेलों के रिकॉर्ड को तोड़कर मैं बहुत खुश हूं। ओलंपिक के ठीक बाद यह मेरे लिए एक खास पदक है। आज मेरी लड़ाई खुद के खिलाफ थी। मैं स्नैच में 90 किग्रा छूना चाहती थी लेकिन ऐसा नहीं हुआ। उम्मीद है कि यह जल्द ही संभव हो सकेगा। मेरा अगला लक्ष्य विश्व चैंपियनशिप है। उन्होने बताया कि यह सब कुछ मेरे माता-पिता और परिवार के समर्थन की वजह से ही संभव हो सका। मुश्किल समय में वो मेरे साथ खड़े रहे। मेरी चोटों ने मुझे मजबूत बनाया। मैंने अपनी कमजोरियों पर काम किया। मैं अपना सर्वश्रेष्ठ देने के लिए प्रतिबद्ध थी। अपने करियर में मुश्किल परिस्थितियों का सामना करने से मैं मानसिक रूप से मजबूत बनी, क्योंकि तब उन्होंने स्वयम से कहा कि ‘जो कुछ भी हो मुझे अपना सर्वश्रेष्ठ देना है।
मीरा की ज़िंदगी एक वर्ल्ड चैंपियन लड़की की ज़िंदगी नहीं है, वो इस देश की किसी भी सामान्य लड़की की ज़िंदगी भी है. जहां कुछ मामूली फिक्रें हैं, कभी-कभी उदासी भी, लेकिन ज्यादातर वक्त प्यार, उम्मीद, खुशी और सपने हैं। पदक पाने का जोश है और कभी नई ड्रेस और हेयर स्टाइल की मौज भी। मीरा की जिंदगी इस देश की हजारों- लाखों मामूली घरों, परिवेश और जिंदगी वाली लड़कियों के लिए एक संदेश है- तुम कुछ भी हो सकती हो।
चैम्पियन वेटलिफ्टर मीरा एक सामान्य लड़की की तरह अपने सपनों के बारे मे बात करते हुए कहती है कि मेरे हिसाब से जीवन हमेशा से वापसी करने का नाम है और अपने मकसद पर टिके रहने का काम है। एक एथलीट होने के नाते आपके मकसद के लिए आपका फोकस मज़बूत होना चाहिए और आपको कड़ी मेहनत करते रहना चाहिए।
- राजकुमार जैन