रोमांटिक हैप्पीनेस इंडेक्स ?

यूं ही Nov 28, 2019

 

 

वो सवाल बहुत करती है,और यही बात अगले को पसंद नहीं.. उस दिन रिमझिम की फुहारें लेके जब आई बरसात तो दोनों ने तय किया कि स्मार्ट सिटी के ये स्मार्ट आशिक लाल बस में सवारी कर इस रूमानी मौसम का लुत्फ उठाएंगे। लेकिन बस में सवार होने के बाद भी मोहतरमा के सवाल खत्म नहीं हुए। अगला, आया इस गरज से था कि धक्के मुक्के में मुमकिन है कि कुछ रूमानियत की हवाएं बह निकलें। लेकिन सवालों का सैलाब थमे तब ना। वो फिर पूछ रही थी, सुनो एक बात बताओ हैप्पीनेस क्या है आखिर? जवाब में अगले ने जोर का ठहाका लगाया और फिर रुक गया। बताओ ना? मैं तुम से कुछ पूछ रही हूं? वो फिर हंसा। यार हद है मैं पूछ रही हूं हैप्पीनेस और तुम जोर का ठहाका लगा दे रहे हो। अगले का जवाब हंसी को संभालते हुए आया, यार मेरे हिसाब से तो हंसी ठहाका ही हैप्पीनेस है बाकी आॅफिशियली इसकी डेफीनेशन क्या होगी अभी सरकार उस पर काम कर रही है। सुबह पापा पढ़ तो रहे थे इस बार हैप्पीनेस सेशन भी होने वाला है विधानसभा में। फिर दूसरी ओर से जोर के ठहाके के साथ नया सवाल आया, हैप्पीनेस सेशन??????? यार तो बाकी सेशन भी तो हैप्पीनेस सेशन ही होते हैं। अगले ने बात संभाली, वो ठीक है लेकिन इस बार समझ लो आॅफिशियली है पहले अनआॅफिशियली होते थे।

हैप्पीनेस! भूखे को दो हंसी का डोज 

 

अभी हैप्पनीनेस पर चर्चा शुरू हुई थी कि लाल बस को जोर का ब्रेक लगा। सामने दैनिक वेतन भोगियों का चक्का जाम चल रहा था। मोहतरमा बोलीं, हे चलो ना जब तक बस रुकी है लेट्स एंजाय.., दोनों तरफ ट्रैफिक, बीच में हम, कितना थ्रिलिंग लगता है, चलो ना। अगले ने जब सुना तब दिमाग में जगजीत गा रहे थे हम उनके लिए जिंन्दगानी लुटा दे..।ं तो फिर धरना दर्शन कराना कौन सी बड़ी चीज है। दोनों, जाम में फंसी लाल बस से कुछ देर के लिए उतर गए। चारों तरफ नारों का शोर, नियमित जब हो जाएंगे, ठहाके हम भी लगाएंगे। वेतन पुनरीक्षिण की बात करो, हंसो, फैसला साहब करो। धरने की भीड़ में वो, मोहतरमा के कुछ नजदीक आ गया था, दोनों इतने करीब थे कि हाथ टकरा रहे थे दोनों के। किसी से सुना था प्रेम कथाएं एकांत में नहीं ऐसे ही भीड़ भड़क्के में पनपती बढ़ती हैं। आाज देख भी लिया। लेकिन मोहतरमा  का पॉलिटिकल माइंड फिर अटक गया था, हे लुक देट उनके नारे की तख्तियां देखों, नियमित जब हो जाएंगे, ठहाके तभी लगाएंगे? हंसाने की चुनौती लेते तो लोगों को सुना था, लेकिन हंसने की धमकी देते पहली बार सुन रही हूं?? क्या है यार ये।  अगले का दिमाग झल्ला गया लेकिन प्रेम के शुरुआती चरणों में झल्लाना निषेध है। तो अपने चेहरे पर सूत भर की मुस्कान लाते हुए बोला, एक्चुअली चीफ मिनिस्टर इन्हें हंसाना चाहते हैं, तो ये लोग कह रहे हैं कि रेग्युलर कर दोगे तभी हंसेंगे। ...हाउ स्वीट, यार ये सीएम लाफिंग क्लब का मेंबर है क्या? पर यार आई लाइक हिज इस्पीरिट, कम से कम यार कपिल के बाद किसी ने तो आगे आने कोशिश की। 

अच्छा अब चलो रास्ता क्लियर हो गया है, बस निकल जाएगी। आ जाओ, उसने बस में चढ़ाने की गरज से हाथ बढ़ाया, मुस्कुराती हुई मोहतरमा ने भी हाथ हाथों में दे दिया। बस में चढ़ जाने के बाद जनाब चाहते तो नहीं थे कि हाथ छोड़ना पड़े लेकिन स्मार्ट बन रहे  शहर में सोच अब भी दकियानूसी थी। बहुत देर तक हाथों में हाथ लिए जोड़े को पूरी दुनिया इन निगाहों से देखती... कि स्साला हम, यहां बरसात में फाइलों का बस्ता, लंच बॉक्स और छतरी संभाले कुली बनें आॅफिस जाएं, और ये साहब लाल बस को लाल बाग बनाए, एक दूसरे से कह रहे हैं आओ ना थोड़ा सा रुमानी हो जाएं।  लोगों की बद्दुआओं के साथ उठती निगाहों में प्यार का समां बंधा भी नहीं था कि खत्म हो गया। अचानक बस में गंध सी फैली। सन्नाटे को चीरती एक आवाज आई, किसी झुग्गी बस्ती के पास का स्टॉप लगता है। स्टॉप तो सरकारी बंगलों के पास का था, लेकिन सवारी उम्मीद से उलट निकली।  बस में सवारी बनके वो चढेÞ जो स्मार्ट सिटी की इस स्मार्ट बस को मैच तो नहीं करते थे, लेकिन असल में लोकल ट्रान्सपोर्ट का चित्र सहित वर्णन करें तो ये परिवहन इन्हीं के लिए बनाया गया है। गजब ये हुआ कि बस में चढे दो किसान, इस जोड़े के आगे वाली सीट पर ही जम गए। गंध और तेज हो गई। इतनी तेज कि लड़के का हाई पॉवर डिओ भी उसके आगे बेअसर हो गया था। किसान की आंखों में अांसू थे और घुटने छिले हुए। वो बार बार आंखें पोंछ रहा था, और साथ वाला उसे समझा रहा था, मैंने कई थी कि ऐसी कोई बात ना करिओ कि जामें मोह की खानी पड़े। किसान को बेटा नेता बन गओ जाको जे मतलब ना हे कि कोऊ भी नेता बन जाएगो। निकर गई नेतागिरी..। आंसू पोछता दूसरा किसान अपने ही साथी के ताने सुनकर झल्ला गया, सो मैंने ऐसी का कह दई।  मोहतरमा की क्युरोसिटी इस समय तक शबाब पर आ चुकी थी, उन्होंने हल्के से अगले (यानि उनकी)  बांहों को छुआ, और बोलीं, सुनो ना, पूछो ना क्या हुआ है, बहुत इन्ट्रेस्टिंग सा लग रहा है। और वो रो भी रहे हैं, मैं इमोशनल हो रही हूं। अगले ने मन में कहा हमारे लिए तो आप कभी इमोशनल नहीं हुई। दिल में कुछ था लेकिन अगले की जुबान कुछ और कह रही थी, जानता हूं 90 पार गवर्नरों की तरह तुम भी अपने इमोशन कंट्रोल नहीं कर पाती हो। डोन्ट क्राय डार्लिंग पूछता हूं। अगले ने हिम्मत करके पूछा, दादा क्या हो गया? और दादा यूं बरसे कि जैसे कई दिनों का बंधा बादल टूटा हो। किरसी मंत्री के बंगले पर गए थे हम ओरे। उनके छेत्र के किसान हैं हम। इस बार पाले में फसल खराब हो गई सो मुआवजा के लाने गए थे। अब बे किरसी के संगे हंसी के भी मंत्री हो गए हैं। अब हम ओरन ने तो पतो नई, सो हमने उतें जा के कई के साब हमाए भूखे मरबे की नौबत आ गई पांच साल से मुआवजे के  लाने भटक रहे हैं। मंत्री जी हंसन लगे। हम रो रए, बे हंस रए। हमें लगी कि कछू गलत कह गए का। हमने कई हुजूर कछू गलत के गए हों सो माफी पर हंसो तो नाए। सो बे बोले, तुम भी हंसो। अब मंत्री की बात कौन टाल सके सो हम भी हंसन लगे। बाकी हमाए साथ के कास्तकार भी हंसन लगे। का करते। फिर हमने कई ..,साब हंस तो लए अब थोड़ी हमाई बात गंभीरता से सुन लेते। मंत्री फिर हंसन लगे और हम से बोले, हंसी में ही जीवन का सार है। मिट जाता चिंता का भार है। हरिओम। चलो निकलो। हमें गुस्सा आ गई हमने कई बच्चा भूखे मर रए, बीमार हो रए, आप हंसबे को के रए। सो बे बोले, हंसी का एक डोज, भगाए हर रोग। । बर्बाद फसल के अवसाद से बाहर आओ हंसो हंसाओ। मंत्री जी की जेई बात पे हम थोड़ो झल्ला गए तो बिनके आदमीयन ने हमें धकियाए के निकाल दओ बाहर। 

अभी किसान अपनी बात पूरी भी नहीं कर पाया था कि बस में जोर का ब्रेक लगा।  सड़क पर मीडिया और जनसंगठनों का हुजूम मंत्रालय के सामने पूरे मंत्रिमण्डल को घेरे खड़ा था। मोहतरमा के लिए तो जैसे ये मन चाही मुराद थी, बोलीं, सुनो ना, खिड़की के बाहर देखो, क्या सीन है। चलो ना नीचे चलते हैं अगले के दिल से उठी रूमानियत की हवाएं जेहन तक पहुंची, इस बार बस में चढते वक्त हाथ ऐसा पकड़ूगा कि छोड़ूंगा नहीं, वो मन में बुदबुदा रहा था। मोहतरमा बोलीं, कुछ कहा तुमने। नहीं नहीं, आओ ना नीचे चलकर देखते हैं।दोनों बस से उतर गए। सड़क पर ठहाकों का शोर था, ब्रांडेड जॉगिंग ड्रेस में पूरा मंत्रिमण्डल हा हा, हो हो। हा हा हा। हो हो हो किए जा रहा था। तभी इन ठहाकों को चीरता एक सवाल आया, प्रदेश में हर साल एक लाख बच्चों की मौत कुपोषण से हो जाती है? हंसी रोकेंगे आप और इसका जवाब देंगे? हंसी बचपन संभालो विभाग का दायित्व संभाले मंत्री बोले, बचपन बेफिक्र होकर खेलने कूदने के लिए है, कुपोषण जैसे विषयों से बचपन कुम्हुला सकता है, उसे हंसी का संस्कार दें। जैसे इस प्रदेश में आज लाड़लियां सरकारी इश्तेहारों में मुस्कुराती हैं लाड़ले भी हंसी में नहाएंगे। हरिओम। इधर मोहतरमा की क्युरोसिटी और बढ़ गई, सुनो ना ये जो सवाल पूछ रहे हैं ये मीडिया से है ना?? अगला मुस्कुराने के बाद कुछ इस अंदाज में बोला, जैसे ये पब्लिक है ये सब जानती है,नहीं नहीं, ये मीडिया नहीं है ये जनसंगठन वाले हैं, यही सब करते हैं ये लोग। मीडिया वो है वो मंत्री के बगल में देख रही हो, जो मंत्री जी के कान में हंस रहा है वो मीडिया है।

 

 

(खबर नेशन / Khabar Nation वरिष्ठ पत्रकार शिफाली हूं की फेसबुक वॉल से साभार)

एक शुरुआत कथा , साहित्य , कविता और संस्मरण से भरे रहने वाले कोने के लिए । आप भी देर मत कीजिए हमें भेजिए brrajemf@gmail.com पर

Share:


Related Articles


Leave a Comment