माई नेम इज खान बट आई एम नॉट टेरिरिस्ट

यूं ही Nov 20, 2019

गौरव चतुर्वेदी

खबर नेशन / Khabar Nation /गुस्ताख़ी माफ़

काशी...बनारस......आज से सालों पहले बसा शहर... वास्तविक इतिहास शायद इतिहास के पन्नों से भी पुराना शहर जिसके कई नाम बदले..नहीं बदली तो यहां की आबो-हवा..महादेव की नगरी कहलाने वाले इस शहर में जहां आजान से सुबह होती है। तो घंटों की आवाज और शंख की ध्वनि दिल को सुकून देती है। यहां लोग भाषा को बोलते, पढ़ते और लिखते नहीं बल्कि यूं कहे कि ओढ़ते और बिछाते हैं। लेकिन फिर सवाल मेरे मन में हैं कि आखिर क्यों ऐसे शहर ने फिरोज को नहीं अपनाया। आखिर क्यों फिरोज को बनारस छोड़ के जाना पड़ा, आखिर क्यों फिरोज के पिता को अफसोस हुआ कि उसे क्यों ऐसी तालीम दी। क्यों उसने ज़िंदगी भर संस्कृत से मुहब्बत की। क्या फिरोज के नाम के पीछे लगे खान ने उससे छीन लिया उसका सपना। सपना छात्रों को बीएचयू में संस्कृत पढ़ाने का। बीएचयू स्थित संस्कृत विद्या धर्म विज्ञान संकाय में नियुक्ति को लेकर उपजे विवाद ने आखिरकार फिरोज खान के हौसले को डिगा दिया और इसके पीछे की वजह मुझे ज्यादा कुरेदती है। कि जिस फिरोज खान ने अपने बचपन से लेकर आज तक बिना किसी भेदभाव के संस्कृत पढ़ी। न सिर्फ पढ़ी उसमें स्नातक हुए। शिक्षा शास्त्री (बीएड) की डिग्री जैसी काबिलियत लेकर बनारस हिंदू यूनिवर्सिटी (BHU) में संस्कृत टीचर बने। वहां उनकी काबलियत पर जहां कुछ ने सराहा..तो वही कुछ विरोध के सुर उठाने लगे। विरोध एक गैर हिंदू के संस्कृ‍त शिक्षक बनने पर था...विरोध में हवन और बुद्धिशुद्धि यज्ञ तक किया गया..BHU में अखिल भारतीय विद्यार्थी परिषद से जुड़े छात्र आंदोलन कर रहे हैं...छात्रों का कहना है कि कोई भी व्यक्ति जो उनकी भाषा और धर्म के आधार से नहीं जुड़ा है, वो कैसे पढ़ा सकता है..ये सब होता देख सवाल तो उठेंगे कि क्या ये विविधता में एकता वाले भारत की तस्वीर है। अगर यही सोच होती तो क्या हम अमीर खुसरो जो पहले मुस्लिम कवि थे जिन्होंने हिंदी शब्दों का खुलकर प्रयोग किया । जिन्होंने हिंदी, हिन्दवी और फारसी में एक साथ लिखा I उन्हे खड़ी बोली के आविष्कार का श्रेय दिया जाता हैI उन्हें कभी पढ़ पाते..ये सब देखकर साल 2010 में आई फिल्म माई नेम इज खान की याद आ गई ..जिसमें फिल्म के हीरो को बार बार कहना पड़ा.. माई नेम इज खान बट आई एम नॉट टेरिरिस्ट... फिल्म के इस संवाद की याद तब आई। जब भावी भविष्य...यंग इंडिया...नई ऊर्जा वाले भारत में कुछ लोग किसी के रंग, लिंग, जाति के आधार पर मोर्चा खोले बैठे हैं....गुस्ताखी माफ पर ये 21वीं सदी का भारत तो बिल्कुल नहीं हो सकता। 

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