प्रदेश में आदिवासियों के हित में पेसा कॉर्डिनेटर भर्ती योजना भी बड़े घोटाले में तब्दील हो गई है

शिवराज सरकार ने करोड़ांे युवाओं के साथ किया विश्वासघात

बहुत ढूँढा नही दिखाई दिया अपना विकास, तो एक युवा पहुंचा शिवराजसिंह के पास, बोला मामा, अब बंद करो ड्रामा, थोड़ी हमको राहत दे दो

भोपाल,   जुलाई 2023

खबर नेशन/ Khabar Nation

मामा ने कहा, बेटा, मुझे यो ही  घोटालों का ब्रांड एंबेस्डर नहीं कहते है
हम गडबडियों के प्रदेश में रहते है  वसूली में जीते है और कमिशन में साँस लेते है।

बहुत ढूँढा नही दिखाई दिया अपना विकास, तो एक युवा पहुंचा शिवराजसिंह के पास, बोला, मामा, अब बंद करो ड्रामा, थोड़ी हमको राहत दे दो  बस इतना कह
की मप्र में परीक्षाओं में अब गडबडी नहीं होगी, वसूली नहीं होगी,
ईमानदारी से भर्ती होगी

मध्यप्रदेश में छात्र, मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चौहान को घोटालों के ब्रांड एंबेस्डर यूं ही नहीं कहते है. माननीय शिवराज जी इसकी योग्यता भी रखते है. आइये देखते है उनकी अगुवाई में परीक्षाओं का क्या हाल हुआ है। व्यापम के घोटालेबाजों ने मप्र कर्मचारी चयन बोर्ड बनाया जो मप्र बीजेपी चयन बोर्ड बन गया है। इनके 20 सालों के हिसाब किताब की लम्बी फेहरिस्त है   इस साल का अभी सातवाँ महिना चल रहा है   और युवा बेहाल है।

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राहत इंदौरी ने क्या खूब लिखा है

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8,10 और 12 वीं के पेपर, आउट आरक्षक, सब इंस्पेक्टर, पटवारी और मप्र राज्य सेवा परीक्षा में भारी गड़बड़ियाँ ,   7 फरवरी 2023 को नेशनल हेल्थ मिशन (छंजपवदंस भ्मंसजी डपेेपवद) के तहत संविदा नर्सिंग स्टाफ भर्ती परीक्षा, पेपर लीक 03 जून, 2023
मध्य प्रदेश उच्च माध्यमिक शिक्षक पात्रता परीक्षा में भारी गड़बड़ी। 150 सवालों के पेपर में 11 सवाल गलत थे। हंगामा हुआ तो प्रश्न विलोपित कर दिए गए परंतु उनके अंत समायोजित नहीं किए गए। नतीजा इस परीक्षा में 60 प्रतिशत अंक लाने वाले कैंडीडेट्स भी क्वालीफाई नहीं हो पाए। मध्यप्रदेश की प्रतिभाएं जाएँ तो कहा जाएँ  और यह सरकार आदिवासी भाइयों के साथ कितना खिलवाड़ कर रही है।
आबादी के लिहाज से मध्यप्रदेश को आदिवासी राज्य कहा जाए तो भी कोई अतिश्योक्ति नहीं होगी। प्रदेश में देश की सबसे अधिक जनजातीय जनसंख्या है। देश की कुल आदिवासी आबादी का 14.70 प्रतिशत (वर्ष 2011 की जनगणना) यहां निवास करती है। मध्यप्रदेश में डेढ़ करोड़ से ज्यादा आबादी रहती है।
केंद्र की यूपीए सरकार द्वारा 1996 में संसद में पेसा एक्ट को पारित किया गया था, जो स्वर्गीय दिलीपसिंह भूरिया जी की अध्यक्षता में गठित भूरिया कमेटी के ड्राफ्ट पर आधारित था। इस कानून का मूल उद्देश्य ग्राम सभाओं को सर्वशक्तिशाली, सशक्त और संपन्न बनाना था, जिसके लिए एक नारा दिया था ‘न लोकसभा, न विधानसभा सबसे बड़ी ग्राम सभा।’ भाजपा ने आदिवासियों के हितों पर आधारित पेसा एक्ट के साथ खिलवाड़ कर दिया।
प्रदेश में आदिवासियों के हित में पेसा कॉर्डिनेटर भर्ती योजना बड़े घोटाले में तब्दील हो गई है। मप्र के 89 आदिवासी बाहुल्य ब्लॉकों में पेसा कानून को लागू कराने, उसके प्रचार प्रसार के लिए प्रदेश की भाजपा सरकार ने सेडमेप बनाया। चयन के माध्यम से विधिवत आवेदन बुलाये, जिनसे 500 से 600 रू. प्रति आवेदक से फीस वसूली गई, जिससे सरकार को एक करोड़ रूपये का राजस्व प्राप्त हुआ। साक्षात्कार हेतु आवेदकों की मेरिट लिस्ट तैयार की गई। जिसमें से 890 आवेदकों को छांटकर फरवरी 2022 में साक्षात्कार के लिये बुलाया भी गया, किंतु बिना कारण बताये साक्षात्कार रद्द कर दिया गया।  
एमपीकॉन के माध्यम से आउटसोर्स से गोपनीय तरीके से एक विचारधारा विशेष से जुड़े 89 ब्लाक और 20 डिस्ट्रिक कॉर्डिनेटर के पद भर दिये गये। इन चयनित लोगों को सरकारी खजाने से जहां 25 हजार रूपये मासिक वेतन ब्लॉक कॉर्डिनेटर और 45 हजार डिस्ट्रिक कॉर्डिनेटर को दिया जायेगा। ऐसे लोग आदिवासियों के हित के लिए नहीं, भाजपा का बूथ मेनेजमेट कर रहे है।
मध्यप्रदेश में सबसे ज्यादा पढ़े-लिखे वर्ग यानी ग्रेजुएट्स में बेरोजगारी दर सबसे ज्यादा है, रिपोर्ट के मुताबिक प्रदेश में ग्रेजुएट्स में बेरोजगारी दर 11.53 प्रतिशत है। मप्र में 20-24 साल तक के युवा वर्ग की महिलाओं में बेरोजगारी दर 58.08 प्रतिशत है, जबकि पुरुषों में यह 26.50 प्रतिशत है। मतलब जो उम्र भविष्य बनाने की होती है, शिवराज सरकार तोहफे में उनका भविष्य खराब कर रही है।
  2011-12 से 2021-22 के बीच रोजगार कार्यालयों में अधिसूचित रिक्तियों के खिलाफ केवल 1697 नई नौकरियां दी गई हैं। यह जानकारी विधानसभा में तकनीकी कौशल विकास एवं रोजगार मंत्री यशोधरा राजे सिंधिया ने विधायक प्रताप ग्रेवाल के सवाल पर दी है।
एक अप्रैल 2022 तक प्रदेश में 25.8 लाख से अधिक बेरोजगार हैं। इसमें सबसे अधिक संख्या ओबीसी वर्ग से आने वाले लोगों की है। इसके बाद सामान्य वर्ग के लोगों की संख्या अधिक है। इन दो वर्गों के 70 फीसदी युवा बेरोजगार हैं।
रोजगार कार्यालयों में रजिस्टर्ड 37 लाख 80 हजार 679 शिक्षित एवं 1 लाख 12 हजार 470 अशिक्षित बेरोजगार आवेदक रोजगार की बाट जोह रहे हैं।
शिवराज सरकार की नीतियों के कारण हताश होकर शिवराज के कार्यकाल में 10 हजार से ज्यादा  छात्र और  करीब 7 हजार बेरोजगारों आत्महत्या कर चूके है।
वहीं, कर्मचारी चयन आयोग द्वारा पटवारी परीक्षा 2022 में मुरैना जिलेकी जौरा तहसील के 15 छात्रों के दिव्यांग कोटे में चयनित होने का मामला सामने आया है। इस परीक्षा में 21 लोग पास हुए, जिनमें से 15 जौरा के ही है। ये सभी सुनने में अक्षम हैं। जिसका मेडिकल सर्टिफिकेट भी लगाया गया है। इन छात्रांे मे वास्तविक दिव्यांगों का हक मारा है। एक गांव और एक ही कोटे से वो भी एक ही समाज के 15 लोगांे का एक साय चयन होना व्यवस्था पर सवालिय निशान लगा रहा हैं कांग्रेस ने इस गड़बडी की उच्च स्तरीय जांच की मांग की है।
केंद्र की यूपीए सरकार द्वारा 1996 मंे संसद में पेसा एक्ट को पारित किया गया था, जो स्वर्गीय दिलीपसिंह भूरिया जी की अध्यक्षता में गठित भूरिया कमेटी के ड्राफ्ट पर आधारित था। इस कानून का मूल उद्देश्य ग्राम सभाओं को सर्वशक्तिशाली, सशक्त और संपन्न बनाना था, जिसके लिए एक नारा दिया था ‘न लोकसभा, न विधानसभा सबसे बड़ी ग्राम सभा।’ आज भाजपा ने एक पूरी तरह से कमजोर और फर्जी पेसा कानून लागू किया जो कि आदिवासी वर्ग की मूल भावनाआंे के बिल्कुल विपरीत है और उनके साथ बहुत बड़ा खिलवाड़ किया जा रहा है।
भाजपा का पेसा कानून फर्जी क्यों ?
 आदिवासी क्षेत्रों को नौकरशाही से मुक्त करना मूल पेसा का उद्देश्य था जो कि अभी पूरी तरह नकार दिया गया है। आज भी पूरा अधिकार ग्राम सभाओं के ऊपर एसडीएम और कलेक्टर का है।
 मूल पेसा कानून आदिवासियों को जल, जंगल और जमीन का अधिकार देता था, जो कि भाजपा के इस फर्जी पेसा कानून में कहीं भी नहीं दिखाई देता है।
 भाजपा के पेसा कानून के तहत खनिज और वनोपज पर ग्राम सभाआंे का एकाधिकार नहीं है।
 आदिवासियों की रूढ़ी प्रथा, रिवाज, पहचान और संस्कृति को बचाने के लिए इस पेसा कानून में कोई भी प्रावधान नहीं है।
 इस पेसा कानून ने गांवों में एक नये विवाद को जन्म दिया है, जिसके तहत पंचायती राज और ग्राम सभाओं में टकराव की स्थिति बन गई है। क्यांेकि इस पेसा कानून में ग्राम सभाओं से सरपंच, पंच और तड़वी/ पटेल को बाहर कर दिया गया है। तो क्या ये पेसा कानून पंचायती राज को बढ़ावा न देकर उसे कमजोर करने का कानून बन गया है?  
पेसा कानून-फर्जी नियुक्तियां 
प्रदेश में आदिवासियों के हित में पेसा कॉर्डिनेटर भर्ती योजना बड़े घोटाले में तब्दील हो गई है। मप्र के 89 आदिवासी बाहुल्य ब्लॉकों में पेसा कानून को लागू कराने, उसके प्रचार प्रसार के लिए प्रदेश की भाजपा सरकार ने सेडमेप ब्म्क्ड।च् के माध्यम से विधिवत आवेदन बुलाये, जिनसे 500 से 600 रू. प्रति आवेदक से फीस वसूली गई, जिससे सरकार को एक करोड़ रूपये का राजस्व प्राप्त हुआ। साक्षात्कार हेतु आवेदकों की मेरिट लिस्ट तैयार की गई। जिसमंे से 890 आवेदकों को छांटकर फरवरी 2022 में साक्षात्कार के लिये बुलाया भी गया, किंतु बिना कारण बताये साक्षात्कार रद्द कर दिया गया।  
एमपीकॉन के माध्यम से आउटसोर्स से गोपनीय तरीके से एक विचारधारा विशेष से जुड़े 89 ब्लाक और 20 डिस्ट्रिक कॉर्डिनेटर के पद भर दिये गये। इन चयनित लोगांे को सरकारी खजाने से जहां 25 हजार रूपये मासिक वेतन ब्लॉक कॉर्डिनेटर और 45 हजार डिस्ट्रिक कॉर्डिनेटर को दिया जायेगा। ये चयनित लोग पेसा कानून का प्रचार करने के बजाय भाजपा के चुनावी बूथ मैनेजमेंट का काम करेंगे। इससे स्पष्ट है कि भाजपा सरकार ने शिक्षित बेरोजगार युवाओं के साथ छल किया है।
कांग्रेस के सवाल
 यदि आपको एमपीकॉन से ही भर्ती करना था, तो सेडमैप से विज्ञापन क्यों निकाला? क्यों आवvेदकों की मेरिट सूची जारी करने और साक्षात्कार पत्र भी जारी करने के बाद अपरिहार्य कारण बताकर साक्षात्कार निरस्त क्यों कर दिया?
 आज तक वह अपरिहार्य कारण उन आवेदकों को क्यों नहीं बताया गया, जिन्हांेने फीस जमा कर आवेदन किये थे? आखिर सरकार ऐसा क्या छुपा रही है? आवेदकों से जो करोड़ों रूपये की राशि सरकार के खजाने में आई उस राशि का क्या हुआ? अभी तक उन आवेदकों की फीस क्यों नहीं लौटायी गई? भाजपा सरकार का क्या यही सुशासन है?
 जो 119 नियुक्तियां हुई उसमें एक भी महिला को शामिल नहीं किया गया, क्या एक भी महिला इस पद के काबिल नहीं थी? क्या भाजपा महिलाओं को चुनावी वोट के लिए इस्तेमाल करती है? क्या लाड़ली बहना योजना भी भाजपा का चुनावी प्रोपेगंडा है?
कांग्रेस की मांग
व्यापमं / कर्मचारी चयन आयोग एवं लोक सेवा आयोग से चयन न करवाते हुये आउटसोर्सिंग एजेंसी एमपीकॉन के माध्यम से ये भर्तियां क्यों करवायी गईं? क्या उसमें आरक्षण का पालन हुआ है? एमपीकॉन द्वारा करायी गई अब तक की भर्तियों की सीबीआई से जांच करायी जाये? क्या उसमें आरक्षण के नियमों और मेरिट के नियमों का पालन हुआ अथवा नहीं हुआ?े
 जिन लोगों के चयन हुये वे सोशल मीडिया, फेसबुक अकाउंट भाजपा और संघ विचारधारा से ही क्यों जुड़े हुये पाये जाते है।  
 गोपनीय तरीके से की गई इन भर्तियांे को निरस्त कर पुनः सेडमेप के आधार पर बनी मेरिट लिस्ट के माध्यम से भर्ती प्रक्रिया को संपन्न कराया जाये? साथ ही इस प्रक्रिया मंे आरक्षण के तहत महिलाओं को भी अवसर प्रदान किया जाये।
 ये भर्तियाँ किसके निर्देश पर और किस नियम के आधार पर की गई? इस अपारदर्शी भर्ती प्रक्रिया की उच्च स्तरीय जांच होनी चाहिए? ताकि इस तरह के षड्यंत्र का पर्दाफाश हो सके और भविष्य में इसे दोहराया न जाये, जिससे योग्य अभ्यार्थि के साथ छलावा न हो सके।
 एमपी सेडमैप द्वारा 17500 अभ्यर्थियों से आवेदन शुल्क के नाम पर वसूले गयी एक करोड़ रूपये की राशि को वापस न करना गवन की श्रेणी में आता है, इसलिए  ईओडब्ल्यू द्वारा सेडमैप के अधिकारियों के खिलाफ धोखाधड़ी की धारा के तहत एफआईआर दर्ज की जाये।
 इस फर्जीवाडे़ में संलिप्त और भर्ती प्रक्रिया को अंजाम देने वाले मुख्यमंत्री के चहेते अधिकारियांे पर एफआईआर दर्ज की जाये।
 जिन लोगों को नियुक्तियां दी गई हैं, उनकी मेरिट लिस्ट सार्वजनिक की जाये
यदि वास्तव में शिवराजसिंह चौहान आदिवासी वर्ग के इतने हितेषी थे, तो पिछले 20 वर्षों तक इन पेसा रूल्स को बनाने का इंतजार अब तक क्यों किया? लड़ाई यह नहीं है कि सभी आदिवासियों को इसमें नियुक्ति दी गई। लड़ाई यह है कि मेरिट में शामिल आवेदकों को दरकिनार कर भाजपा के एजंेटों को इन नियुक्तियां दी गई।

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गौरव चतुर्वेदी

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