सत्ता से निर्लिप्तता की विरासत

 

 

मध्यप्रदेश जनसंपर्क विभाग के वरिष्ठ अधिकारी स्वर्गीय श्री राजेंद्र जोशी जी की कलम से। आज पेरेंट्स डे के अवसर पर ।

 / खबर नेशन / Khabar Nation

 

बैरागीजी ने आकाशवाणी पर अपने जीवन का एक महत्वपूर्ण प्रसंग सुनाया -

फिल्म अभिनेता बलराज साहनी, भोपाल में मन्त्री निवास (पुतली घर बंगले) पर पधारे। भोजन करते हुए बलराजजी ने पूछा - ‘आपके भोपाल में क्या-क्या चीजें देखने लायक हैं। बैरागीजी ने कहा - ‘आइए बाहर।’ बैरागीजी, बलराजजी को साथ लेकर बाहर लॉन में लाए। बलराजजी समझ रहे थे कि अब मन्त्रीजी गाड़ी बुलाएँगे और उन्हें कहीं शहर में घुमाने ले जाएँगे। बाहर आ कर

बैरागीजी ने लॉन में लगी कुर्सियों पर बैठे दो बुजुर्गों को उन्हें दिखाया और कहा - “बलराजजी! ये लोग भी देखने की चीज हैं।” बलराजजी आश्चर्यचकित थे। 

बैरागीजी ने परिचय कराया - ‘ये दाढ़ी वाले काका हाथरसी हैं। देश के विख्यात हास्य कवि।’ बलराजजी ने कुछ सोचा और फिर बोले कि “ये वही काका हाथरसी हैं, जो धर्मयुग में ‘फुलझड़ी’ कालम लिखते हैं?” बैरागीजी ने कहा - ‘हाँ! ये दाढ़ीवाले वही काका हैं।’ काका हाथरसी उन दिनों बैरागीजी के निवास, पुतलीघार बंगले पर ही ठहरे हुए थे। बैरागीजी ने जब दूसरे बुजुर्ग सज्जन का परिचय कराया तो बलराजजी चौंक पड़े। बैरागीजी ने कहा - ‘ये बुजुर्ग माँ के गर्भ से ही अपंग हैं। इनका नाम द्वारिकादासजी बैरागी है और ये आपके सामने खड़े इस सौभाग्यशाली बेटे के ऐसे पिता हैं जिन्होंने अपने बेटे को अपने उत्तराधिकार में भिक्षावृत्ति दी और अपने आशीर्वाद और पुण्य प्रताप से अपने बेटे को यहाँ तक पहुँचाया।’

बलराजजी को मानो करण्ट छू गया हो। उनके चेहरे के भाव उनके भावुक और विशाल व्यक्तित्व को छुपाए नहीं छुपा पा रहे थे। उनकी आँखें नम हो चुकी थीं। बलराजजी ने बैरागीजी को अपने सीने से चिपका लिया। फफकते हुए बोले - ‘बैरागीजी! आप धन्य हैं। इतने ऊँचे स्थान पर पहुँचकर लोग अपने माँ-बाप को छुपाकर रखते हैं। लेकिन आप हैं, जो अपने अपाहिज और विपन्न जीवन से घिरे रहे पिता का परिचय बड़े ही गर्व के साथ दे रहे हैं।’ 

बलराजजी ने बैरागीजी के पिताजी को प्रणाम किया और बोले - ‘आपका बेटा मन्त्री हो गया है। अब आपकी और क्या इच्छा है?’ पिताजी बोले - ‘मेरी एक ही इच्छा है कि मेरा नन्दराम जल्दी से जल्दी वापस घर आ जाए।’ 

बलराजजी के लिए पिताजी का यह उत्तर और भी हतप्रभ कर देनेवाला था। क्यों न हो! भला कौन पिता चाहता होगा कि उसका बेटा मन्त्री पद से लौट आए? 

बालकविजी ऐसे ही निर्लिप्त पिता के बेटे थे।

 

 

चित्र में बायें से बालकविजी, बलराजजी साहनी, बालकविजी के पिता द्वारिकादासजी बैरागी। चित्र सौजन्य - वीणा बैरागी।

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