राहुल डूबना अच्छा , किनारे पर बैठकर सूखना बुरा

राजनीति May 30, 2019

 

कहते हैं कि “नादां की दोस्ती जी का जंजाल” राहुल और उनकी टीम पर यह कहावत सही चरितार्थ होती है | सेंसरशीप की पक्षधर, अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता की विरोधी कांग्रेस के लिए अपने प्रवक्ताओं पर एक माह की वाणी का उपवास करवाने का तुगलकी निर्णय तुगलक रोडज पर रहने का परिणाम तो है ही जरा भी आश्चर्यजनक नहीं है | वैसे “कांग्रेस” जो निर्णय ले ये उनका आतंरिक मामला है, लेकिन लोकतंत्र के तकाजों से दूर रहकर पानी में रहकर मगरमच्छ से बैर करने से कोई राजनैतिक दल कैसे जिंदा रह सकता है | उसे तो अपना विघटन कर गांधीजी की “लोक सेवा संघ”बनाने की इच्छा को पूरा कर ही देना चाहिए | जनता ने तो उन्हें यह जनादेश दे ही दिया है | वैसे भी अब ज्यादा कुछ बोलने को बचा नहीं, और जो बोलने वाले थे उन्हें जिम्मेदारी से दूर पहले से ही दूर कर दिया गया | गुणवत्ता की कमी सत्ता में तो चल जाती है, लेकिन विपक्ष में काम करना पड़ता है जो आरामतलबी, जी हुजूरी की शिकार कांग्रेस को रास नहीं आ सकता |
     विद्वत्ता और मूर्खता के बीच तर्क और गोली का अंतर है, विपक्ष के समय भी तर्क सहित बातों को अध्ययन और जनता के मूड के हिसाब से बोला जा सकता है लेकिन ऐसे लोग पूरे समय कांग्रेस संगठन में उपेक्षित रहे,रही सही बेचारी प्रियंका चतुर्वेदी, बहन प्रियंका के आते ही रुखसत हो गई/कर दी गई,
यही कांग्रेस का कुनबा है,शेखचिल्ली की बारात है |
      अब बोलें भी तो क्या बोलें कब तक मुंहजोरी – सीनाजोरी करते रहें और फिर छापों में तुगलक रोड कनेक्शन के उठते ही कांग्रेस नेता बैचेन हैं कि क्या बोलें,कैसे बचें | मीडिया तो ठीक, सोशल मीडिया पर भी कांग्रेस के नेता आरोप लगा-लगा कर कोस रहे हैं, कि भाजपा ने अनाप-शनाप सोशल मीडिया केम्पेन पर खर्च किया, इससे चुनाव का माहौल मोदीमय हो गया और राहुल बाबा की टीम हार गई |यह अल्पज्ञान का सबसे बड़ा उदाहरण है,जो मैदान खाली,उन्मुक्त और स्वतंत्र है उस पर खेलने की स्टेमिना चाहिए, खेल नहीं पाओगे और हारने का दोष मत्थे मढ़ोगे यह कैसे चलेगा गले उतरने वाली बात ही चर्चा में दूर तलक जाती है |
       एक तो जमीनी लड़ाई लड़ने की शक्ति, आदत और तरीका नहीं दूसरे कम से कम अपनी बात कहने और नेताओं को चर्चा में दिखने-दिखाने का जो अवसर था वह भी R.G. की टीम ने उनके प्रवक्ताओं से छिनकर बेरोजगार बना दिया | भाजपा को अपनी बात कहने के लिए और ज्यादा समय देने के लिए धन्यवाद ! लेकिन कांग्रेस को यह भरम नहीं होना चाहिए कि उनके डिबेट में शिरकत न करने से चैनल बंद हो जाएँगे, या इस नई राह के ब्याह में रूठी हुई बुआ को कोई मनाने जाएगा | शोर-शराबे को अभिशप्त कांग्रेस का यह “मौन असत्याग्रह”है डूबना अच्छा है,लेकिन किनारे पर बैठकर सूखना बुरा है |

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