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मजदूर आखिर क्यों हुआ मजबूर
खबर नेशन /Khabar Nation

प्रवासी मजदूर लौट रहे हैं।  
कोरोना संक्रमण से उपजे हालात और सरकारों के रवैए से मजदूर हताश हैं और अधर में लटके हैं । भविष्य के सपनों पर वर्तमान की निराशा उन्हें गलत कदम उठाने पर मजबूर कर सकती है । क्योंकि जिस हालात में वे गांव छोड़कर अन्यत्र गए थे,, उन गांवों के हालात जस के तस हैं ।
अकेले मध्य प्रदेश से पलायन किए गए कुल लोगों की संख्या लगभग 50 लाख के ऊपर है । इनमें भी छात्र, नौकरीपेशा, व्यवसाई और मजदूर शामिल हैं। सरकारी आंकड़ों के आधार पर मजदूरों की अनुमानित संख्या लगभग 10 लाख के करीब है। आज तक कोई भी राज्य सरकारें या केंद्र सरकार पलायन किए गए लोगों के आंकड़ों को एकत्रित नहीं कर पाई है। सरकार के पास जो भी आंकड़े हैं वे अनुमानित तौर पर है । इसी प्रकार पूरे भारत में एक राज्य से दूसरे राज्य में पलायन किए गए लोगों की संख्या भी लगभग 7 करोड़ के आसपास है । जिनमें मजदूरों की संख्या लगभग 5 करोड़ के आसपास आंकी जा सकती है । इतनी बड़ी तादाद में प्रवासी मजदूरों का लौटना हर सरकार के लिए सरदर्द की स्थिति पैदा करेगा । ये मजदूर जिन कारणों से अन्य राज्यों में गए थे । उसकी वजह उन इलाकों में रोजगार के साधन का ना होना ,शिक्षा की व्यवस्था ना होना, जातिगत और धार्मिक संघर्ष, बुनियादी सुविधाओं का अभाव होना रहा है । यह मजदूर अपने गांव को जैसा छोड़ कर गए थे वे गांव वैसे के वैसे ही हैं । जिसके चलते  भविष्य के सपनों को लेकर इन मजदूरों का हताशा और बढ़ेगी । वर्तमान हालात में कई मजदूर अपने गांव शहर वापस लौटने के लिए सड़क पर निकल पड़े हैं । सरकारें कोरोना संक्रमण के पूर्व मजदूरों या अन्य राज्य में फंसे लोगों की समस्याओं का आकलन सही ढंग से नहीं कर पाई । इसी के साथ ही लॉकडाउन के पूर्व केंद्र सरकार द्वारा जारी एडवाइजरी को देश के उद्योगपतियों ,व्यवसायियों ने अपने स्वयं के आर्थिक हालातों के चलते पालन करने से अस्वीकार कर दिया। मजदूरों के समक्ष कोरोना संक्रमण और भूख पैर पसार कर खड़ी हो गई । केंद्र सरकार लॉकडाउन के पहले किसी भी प्रकार की तैयारी नहीं की और इन्हें इनके घर तक पहुंचने के साधन देर से मुहैया कराए । जिसके चलते ये मजदूर सड़कों पर फंसे पड़े हैं । हजारों किलोमीटर पैदल चलने पर मजबूर हैं । रास्ते में ना भोजन की सुविधा है ना पीने के पानी और ना ही रुकने की कोई व्यवस्था । चिलचिलाती धूप और तपती धरती । साथ में छोटे बच्चे, बूढ़े मां-बाप , विकलांग ,  बीमार, महिलाएं बस चले जा रहे हैं और सड़कों पर पुलिसिया अत्याचार का शिकार हो रहे हैं ।इन मजदूरों की निराशा न्यूज़ चैनलों पर देखी जा सकती है जिसमें यह कह रहे हैं कि कोरोना और भूख से मरने से बेहतर है अपने गांव में जाकर मरना । सरकार को इस हताशा को ध्यान में रखकर उचित कदम उठाना होंगे । यह एक अवसर है कि राज्य सरकार इन हालातों को देखकर ऐसे अवसर पैदा करें जिससे विकास कार्य को गति मिल सके । निजी और कृषि क्षेत्र में ऐसा वातावरण निर्मित करने का प्रयास करें कि भविष्य में कानून व्यवस्था की स्थिति ना बिगड़े ।

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