बाप-बेटा-बीवी हार की कगार पर

खुफिया रिपोर्ट से सरकार सासंत में
 

मंत्री और कद्दावर विधायक खतरे में
 

खबरनेशन / Khabarnation
 

मुंगावली-कोलारस विधानसभा उपचुनाव में प्रत्याशी चयन में पिछड़ी भारतीय जनता पार्टी को आने वाले समय में आगामी विधानसभा चुनाव 2018 को लेकर पूरे प्रदेश में ही संकट का सामना करना पड़ सकता हैं। हालियां दिल्ली भेजी गई खुफिया रिपोर्ट में भारतीय जनता पार्टी को आगामी विधानसभा चुनाव में मात्र 70 सीटों पर ही सिमटना बताया हैं। प्रदेश के कद्दावर विधायक और मंत्री भी खतरें में बताए जा रहे हैं। एन्टीइनकम्बेन्सी से निपटने सरकार और संगठन लगभग 60 से 70 चेहरे बदलने की जद्दोजहद कर रही हैं। पार्टी के सामने संकट खड़ा हैं कि अगर प्रत्याशी बदलते हैं तो जिन क्षेत्रों में कद्दावर नेताओं और मंत्रियों ने भाजपा को जेबी संगठन बना लिया उन इलाकों में भाजपा को करारी हार का सामना करना पड़ सकता हैं। मौजूदा विधायकों और मंत्री के टिकिट काटकर किसी दूसरे को प्रत्याशी बनाते हैं तो अमरबेल बन चुके नेता और उनके समर्थक भीतरघात कर दूसरें प्रत्याशी को जीतने नहीं देंगे।

और अगर मौजूदा प्रत्याशी की जगह परिवार से ही बेटा या पत्नी को उम्मीदवार बनाते हैं तो क्षेत्र में मौजूदा विधायक और उनके परिवार के खिलाफ उपजी नाराजगी भारी पड़ने की पूर्ण संभावना हैं।
 

मौजूदा परिदृश्य में 230 सदस्यीय विधानसभा में भारतीय जनता पार्टी के 166 विधायक हैं। 2013 में मध्यप्रदेश विधानसभा चुनाव परिणाम भाजपा के पक्ष में 165 विधायकों की जीत के साथ आए थे। जिसमें मध्यप्रदेश के मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चौहान दो जगह बुदनी और विदिशा से जीतकर आए थे। बाद में उन्होंने विदिशा से इस्तीफा दे दिया। 2013 से लेकर अभी तक 12 स्थानों पर विधानसभा के उपचुनाव हो चुके हैं और 2 जगह होने जा रहे हैं। इन उपचुनावों में दो कांग्रेस विधायक कांग्रेस छोड़कर भाजपा के प्रत्याशी बनकर चुनाव लड़े और जीते। संजय पाठक और नारायण त्रिपाठी को चुनाव जीतने में व्यक्तिगत छवि महत्वपूर्ण रही। शिवराज सिंह चौहान, ज्ञान सिंह और मनोहर ऊंटवाल के इस्तीफे देने के कारण चुनाव हुए जहां पर बाद में भाजपा का ही कब्जा रहा। नौ विधायकों की मृत्यु के कारण 7 उपचुनाव हुए और 2 होने जा रहे हैं। विधायकों के निधन से रिक्त हुए उपचुनावों में जहां 3 स्थानों पर कांग्रेस विजय रही और चार में भाजपा जीती। कांग्रेस ने भाजपा के कब्जे की एक सीट जीत ली।
 

सभी जगह उपचुनावों में शिवराज सिंह चौहान को जमकर मेहनत करना पड़ी। कई जगह पर प्रत्याशी चयन को लेकर नाराजगी रही तो कहीं कार्यकर्ताओं ने पार्टी के प्रति उपेक्षा का भाव अपना लिया। येन केन प्रकारेण उपचुनाव जीतने में सफल रहे शिवराज और भाजपा को अगले उपचुनाव में कड़ी मशक्कत करना पड़ी।
 

ऐसे ही हालात पूरे मध्यप्रदेश में बने हुए हैं। भ्रष्टाचार, किसान आंदोलन, प्याज की फसल बरबाद होना, राजस्व प्रकरणों का समय पर निपटारा न हो पाना, लोकसभा चुनाव के बाद मोदी के वादा खिलाफीके खिलाफ नाराजगी ने शिव सरकार के प्रति एंटी इनकम्बेंसी बढ़ाने में खासा योगदान दिया। आग में घी डालने का काम भाजपा के जनप्रतिनिधियों और उनके परिजनों के द्वारा भ्रष्ट आचरण एवं सखा व्यवहार रहा। मध्यप्रदेश के मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चौहान बार-बार जनप्रतिनिधियों को चेता रहे हैं लेकिन हालात बेकाबू होते जा रहे हैं।
 

गुजरात चुनाव परिणामों ने भाजपा के राष्ट्रीय नेतृत्व को बैचेन कर दिया। क्योंकि गढ़ में जैसी जीत मिली हैं न तो वह अपेक्षित थी और न ही अन्य प्रदेशों की सरकार एवं संगठन के लिए प्रेरणास्पद। गुजरात जैसे ही हालात मध्यप्रदेश, छत्तीसगढ़, राजस्थान में नजर आ रहे हैं। जिससे भाजपा का राष्ट्रीय नेतृत्व सतर्क हो गया हैं। वजह 2019 में होने वाले लोकसभा चुनाव हैं। अगर इन राज्यों में विधानसभा चुनाव परिणाम गड़बड़ नजर आए तो लोकसभा में भारी खामियाजा उठाना पड़ सकता हैं।

मध्यप्रदेश में मुख्यमंत्री शिवराज सिंह और भाजपा संगठन ने रणनीतिक बदलाव की कोशिशें पहले से ही शुरू कर दी थी। मौजूदा विधायकों के राजनैतिक हालात देखकर उन्हें सतर्क रहने और विकल्प के तौर पर उनके परिजनों को मैंदान में उतारे जाने को लेकर संकेत भी देना शुरू कर दिए थे। कई मौजूदा विधायकों और मंत्रियों ने अपने निजी सर्वेक्षण भी करवाएं तो पार्टी ने भी अपने स्तर पर सर्वेक्षण करवाए हैं। सरकार के द्वारा करवाएं गए गोपनीय सर्वे में लगभग चार मंत्री भारी अंतरों से हारते हुए नजर आ रहे हैं। जब विकल्प के तौर पर इनके परिजनों के बारे में रिपोर्ट निकाली गई तो परिवारिक सदस्यों की भी हालात पतले नजर आये।

सर्वेक्षण में सबसे बुरी हालत मालवा और निमाड़ की बताई जा रही हैं। किसान आंदोलन का भारी असर भी इन्हीं इलाकों में रहा हैं। जबकि मालवा निमाड़ भाजपा का गढ़ माना जाता हैं। हम आपको ताजा अपडेट से अवगत कराते रहेंगे। (क्रमशः)

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