प्रधानमंत्री फसल बीमा योजना : कार्पोरेट का हित ध्यान में रख किसानों से छलावा


यह है जरूरी : 30 दिन में मिले किसानों को बीमा क्लेम की राशि

कलेक्टर, पटवारी और तहसीलदार से सांठगांठ कर बीमा कंपनी लिखती हैं फसल का कम नुकसान

इसके लेखक भगवान मीणा किसान नेता हैं और किसान स्वराज संगठन के संस्थापक हैं। 
खबर नेशन / Khabar Nation

देशभर में इस समय प्रधानमंत्री फसल बीमा योजना एक चर्चा का केंद्र बनी हुआ है। खासकर  नेता इस पर लगातार चर्चा करते रहे हैं।गांव की चौपाल से लेकर राजनीतिक गलियारों तक एक राजनीतिक मुद्दा भी बना हुआ है। सरकार द्वारा जो अधिकारी प्रस्तुतीकरण फसल बीमा योजना का वह मैं आपको बताता हूं।

मध्य प्रदेश के सीहोर जिले से 18 फरवरी 2016 को शुरू की गई प्रधानमंत्री फसल बीमा योजना (PMFBY) किसानों को होने वाली उनकी पैदावार के लिए एक बीमा सेवा है। इसे पहले की दो योजनाओं – राष्ट्रीय कृषि बीमा योजना (NAIS) और संशोधित राष्ट्रीय कृषि बीमा योजना (MNAIS) के स्थान पर वन नेशन – वन स्कीम उद्देश्य के साथ तैयार किया गया था, जिसमें उन योजनओं की सर्वोत्तम विशेषताओं को शामिल करके और उनकी अंतर्निहित कमियों (कमियों) को दूर किया गया था।
पीएमएफबीवाई फसल की विफलता के खिलाफ एक व्यापक बीमा कवर प्रदान करता है जिससे किसानों की आय को स्थिर करने में मदद मिलती है।
योजना में सभी खाद्य और तिलहन फसलों और वार्षिक वाणिज्यिक फसलों को शामिल किया गया है, जिसके लिए पिछले उपज के आंकड़े उपलब्ध हैं और जिसके लिए फसल कटाई प्रयोगों (CCE) की संख्या सामान्य फसल आकलन सर्वेक्षण (GCES) के तहत आयोजित की जाती है।
यह सरकार का अधिकारिक प्रस्तुतीकरण है, फसल बीमा योजना को जब सरकार द्वारा प्रस्तुत किया गया और सरकार ने किसान को सपना दिखाया की यह फसल बीमा दुनिया की सबसे अच्छी फसल बीमा योजना है। यह किसान की जिंदगी को पूरी तरह से बदल कर रख देगी। किसान भी काफी आशा बनाए हुए था, लेकिन यह उस पर खरी नहीं उतरी। क्योंकि फसल बीमा योजना बनाते समय देश की लगभग 22 कंपनियों के प्रतिनिधियों को शामिल किया गया। और गुजरात केडर के अधिकारी द्वारा इसका ड्राफ्ट  बनाया गया। किसानों के लिए बनाई गई इस योजना में देश के किसी भी किसान को शामिल नहीं किया गया। उसका खामियाजा आज किसान को भुगतना पड़ता है। क्योंकि यह  योजना पूरी तरह से कॉर्पोरेट घरानों ध्यान में रखकर बनाई थी। और सीधा-सीधा लाभ कंपनियों को मिल रहा है। इस योजना के विज्ञापन में किसान को बताया गया कि, आप जब से बीज बोते हैं, उसके बाद से फसल काटने के बाद भी आपके खलियान में निकली हुई फसल से लेकर मंडी में बेचने तक, आप की फसल खराब होती है तो आपको फसल बीमा का लाभ मिलेगा। लेकिन वास्तविकता में अगर देखा जाए तो देश में कोई भी ऐसा किसान नहीं हैं। जिसको बीज बोने पर अधिक बारिश होने पर या सूखा पड़ने पर उसकी फसल खराब हुई तो उसको मुआवजा मिला हो। या फिर उसकी फसल खेत से निकालकर खलियान में खराब हुई तो उसको क्लेम मिला हो।एक भी किसान का ऐसा उदाहरण नहीं है जिसको हम बता सके। दूसरी ओर इस फसल बीमा योजना में खेत में खड़ी फसल या खलिहान में रखी हुई फसल में आग लगने पर भी किसान को बीमा क्लेम देने का प्रावधान नहीं है। 

सरकार के आंकड़ों पर गौर करें तो 2016-17 में चार करोड़, चार लाख किसानों ने तकरीबन 382 लाख हेक्टेयर कृषि भूमि का फसल बीमा योजना के तहत बीमा कराया था। फसल के नुकसान का आकलन कर बीमा कंपनियों ने किसानों को सिर्फ दस हजार,पांच सौ पच्चीस करोड़ रुपए मुआवजे के तौर पर दिए। जबकि राज्य सरकारों ने बीमा कंपनियों को एक लाख, इकतीस हजार,अठारह करोड़ रुपए प्रीमियम के तौर पर दिए। साल 2017-18 में एक लाख, उनतीस हजार, दो सौ पंचानबे करोड़ रुपये दिये। जबकि इस बार किसानों को मुआवजे के तौर पर सिर्फ सत्रह सौ करोड़,सात सौ सात करोड रुपए मिले। 
 2018 के दौरान कुल प्रीमियम बीस हज़ार,747 करोड रुपए का जमा किया गया। इस दौरान किसानों को  बारह हज़ार,आठ सौ, सड़सठ रुपए ही क्लेम दिया गया। जबकि बीमा कंपनी ने केवल सात हजार करोड़ छह सौ अट्ठानबे रुपये का ही भुगतान किया। दावे से 5171 करोड़ रुपए कम है,अगर कुल जमा करेंगे वह भुगतान के बीच के अंतर देखे तो यह अंतर तेहरा हजार,पचास करोड़ का बनता है।

अगर मध्य प्रदेश के आंकड़ों के मुताबिक साल 2017-18 रबी सीज़न में 59,89,531 किसानों ने बीमा करवाया, किसान, केन्द्र राज्य ने मिलाकर 1411 करोड़ रुपये का प्रीमियम भरा, दावा मिला 171 करोड़ रुपये का. 2018 खरीफ में 35,00,244 किसानों ने प्रीमियम भरा, 4049 करोड़ रुपये का प्रीमियम भरा गया, दावा वितरण हुआ 1921 करोड़ रुपये का. 2018-19 रबी सीजन में 25,04,463 किसानों ने बीमा करवाया, 1473 करोड़ रुपये का प्रीमियन जमा हुआ, भुगतान हुआ 1060 करोड़ रुपये का. 2019 खरीफ में 37,27,835 किसानों ने बीमा करवाया, 2350 करोड़ रुपये का प्रीमियम भरा गया. पैसे मिले नहीं हैं. 2019-20 रबी सीजन में 34,38,996 किसानों ने बीमा करवाया, 947 करोड़ रुपये का प्रीमियम भरा गया, दावे का निपटारा नहीं हुआ हैं।

डिजिटलाइजेशन तो सरकार ने देश में खूब करा, लेकिन इसका फायदा किसान को कुछ नहीं हुआ। अगर सरकार डिजिटलाइजेशन का यूज फसल बीमा योजना में करती थी। उसमें किसानों को फायदा हो सकता था। जब किसानों को फसल बीमा कराता है, या बैंक के खाते से फसल बीमा का पैसा काटे जाते हैं,तो ना तो रसीद दी जाती है। ना उसको बीमा योजना का कोई पॉलिसी नंबर दिया जाता है। जिससे किसान के पास कोई सबूत नहीं रहता हैं, कि उसकी फसल का बीमा हुआ है, या नहीं हुआ है कई बार बैंक किसान से तो फसल बीमा का पैसा ले लेता है। लेकिन उसको बीमा कंपनी तक जमा नहीं करता। और कई बार ऐसा भी होता है कि बैंक कर्मियों द्वारा किसान के खेत का खसरा नंबर गलत डाल दिया जाता है। या हल्का नंबर गलत डाल दिया जाता है। जिसके कारण किसान की फसल का बीमा नहीं होता है।और इसके लिए पॉलिसी में बैंक की जिम्मेदारी तय नहीं की गई है। जिससे किसान को फसल बीमा का क्लेम नहीं मिलता। फसल बीमा योजना में क्लेम देने कि कोई निश्चित समय सीमा नहीं रखी गई हैं। कितने दिन में सर्वे होना चाहिए।कितने दिन में सर्वे की रिपोर्ट देना चाहिए। और कितने दिन के अंदर किसानों को बीमा क्लेम मिलना चाहिए। किसान के खाते में रुपये ट्रांसफर कितने दिन में होना चाहिए। इन सभी कारण से बीमा कंपनियां दो-दो, तीन-तीन साल होने के बाद भी बीमा क्लेम नहीं देती है।साथ ही सरकार के अधिकारियों की भी इन सब चीजों में मिलीभगत रहती है। देखा गया है कि बीमा कंपनी के अधिकारी द्वारा जिले के कलेक्टर, पटवारी तहसीलदार से भी सांठगांठ कर फसल के नुकसान को कम लिखा जाता हैं। ताकि बीमा कंपनियों को कम क्लेम देना पड़े।

इस समय देश घर में लगातार किसानों की मांग उठ रही है,कि ऐसी फसल बीमा योजना बनाई जाए जिसमें 30 दिन के अंदर किसानों को बीमा क्लेम देने का प्रावधान है। किसान द्वारा कराया गया बीमा की रसीद तत्काल दी जाए। किसान के खसरा नम्बर को इकाई माना जाये। शिकायत करने का यूनिवर्सल माध्यम बनाया जाये।जिसके तत्काल निपटारे हो, साथ ही किसान पास अधिकार हो कि वह खुद ऑनलाइन भी फसल बीमा प्रक्रिया देख सके।

 

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