ना जान है ना जहान है अदूरदर्शिता को देखिए और भोगिए


निराश कर गए भारत के प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी
खबर नेशन / Khabar Nation

कोरोना संकट के लॉक डाउन के चलते जब भारत के प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने विभिन्न प्रदेशों के मुख्यमंत्रीयों को संबोधित करते हुए जान है, ज़हान है मंत्र कहा था तो एक आस बंधी थी कि लॉकडाउन की समाप्ति पर कोई ठोस योजना सामने आएगी। संविधान निर्माता बाबा साहेब आंबेडकर की जयंती पर प्रधानमंत्री का देश के नाम संबोधन निराशा भरने वाला रहा। 
प्रधानमंत्री ने कोरोना वायरस से उपजे संकट और लॉकडाउन में देश के नागरिकों, डॉक्टर नर्स मेडिकल स्टाफ की भूमिका की प्रशंसा की । इसी के साथ लॉकडाउन अवधि 3 मई तक बढ़ाते हुए सात संकल्प पर समर्थन मांगा । ये सप्तपदी यह हैं ।

पहली बात- अपने घऱ के बुजुर्गों का विशेष ध्यान रखें। खासकर ऐसे व्यक्ति जिन्हें पुरानी बीमारी हो, उनकी हमें एक्स्ट्रा केयर करनी है। उन्हें कोरोना से बहुत बचाकर रखनी है।

दूसरी बात- लॉकडाउन और सोशल डिस्टेंसिंग की लक्ष्मण रेखा का पूरी तरह पालन करें। घर में बने फेस कवर या मास्क का अनिवार्य रूप से उपयोग करें।

तीसरी बात- अपनी इम्यूनिटी बढ़ाने के लिए आयुष मंत्रालय द्वारा जो निर्देश दिए गए हैं, उनका पालन करें। गर्म पानी है, काढ़ा है, इनका निरंतर सेवन करें।

चौथी बात- कोरोना संक्रमण का फैलाव रोकने में मदद करने के लिए आरोग्य सेतु मोबाइल ऐप जरूर डाउनलोड करें। दूसरों को भी इस ऐप को डाउनलोड करने के लिए प्रेरित करें।

पांचवीं बात- जितना हो सके, उतना गरीब परिवार की देखरेख करें। उनके भोजन की जरूरत पूरी करें।

छठी बात- आप अपने व्यवसाय, अपने उद्योग में अपने साथ काम करने वाले लोगों के प्रति संवेदना रखें। किसी को नौकरी से न निकालें।

सातवीं बात- देश के कोरोना युद्धाओं हमारे डॉक्टर, नर्सेज, सफाईकर्मी, पुलिसकर्मी...ऐसे सभी लोगों को हम सम्मान करें। आदरपूर्वक उनका गौरव करें।

साथियो, इन 7 बातों में आपका साथ ये सप्तपदी विजयप्राप्त करने का मार्ग है।

अगर प्रधानमंत्री के संपूर्ण वक्तव्य का आकलन किया जाए तो सरकार की असफलता सामने नजर आई है । संकल्प में जो तथ्य दिए गए हैं भारत के किस परिवार में बड़े बुजुर्गो का ख्याल नहीं रखा जाता। विगत 21 दिन में असंख्य भारतीयों ने लॉकडाउन की लक्ष्मण रेखा का ईमानदारी से पालन किया है । घर के बने फेसमास्क एवं  फेसकवर का उपयोग करने की सलाह संसाधनों की भारी कमी और इस दिशा में सरकार द्वारा कोई प्रयास नहीं किए जाने की और इशारा कर रहे हैं । इम्युनिटी बढ़ाने आयुष मंत्रालय के जो निर्देश पालन करने की बात कह रहे हैं वह देश के नागरिक सदियों से दादी नानी के नुस्खे के तौर पर इस्तेमाल कर रहे हैं । आरोग्य सेतु मोबाइल एप डाउनलोड करने की अपील क्या हास्यास्पद प्रतीत नहीं होती । लॉकडाउन अवधि के दौरान इस देश के आम नागरिक ने जिस तरह से अपने गरीब अड़ोस-पड़ोस का ख्याल रखा है उसके चलते प्रशासन पर अभी तक किसी भी प्रकार का वजन नहीं आ पाया है । आज भी व्यापारी और उधोगपति अपने कर्मचारियों का अपनी आर्थिक परिस्थितियों के अनुसार संवेदना निभाते हुए ही नजर आए हैं । कोरोना संकट से लड़ रहे योद्धाओं का जिस प्रकार सम्मान इस देश में किया जा रहा है वह अभूतपूर्व है और अविस्मरणीय है।
आखिर प्रधानमंत्री ऐसा कुछ उल्लेखनीय क्यों नहीं कह पाए और कर पाए ? महत्त्वपूर्ण सवाल खड़ा करता है ।
इक्कीस दिन के लॉक डाउन के दौरान अगर कृषि उत्पादन के सुव्यवस्थित वितरण प्रणाली स्थापित कर दी जाती तो संभवतः तीन मई तक का लॉक डाउन किसी भी परिस्थिति में नहीं अखरता । एक बेहतर संसाधन वाले देश में इस प्रकार की अदूरदर्शिता काफी अखरने वाली महसूस की जाएगी । रेल्वे ट्रेक खाली पड़े हैं मालवाहन से आवश्यक सामग्रियों को पूरे देश में पहुंचाया जा सकता था । लगभग पचास लॉजिस्टिक हब बनाकर गांव गांव तक आवश्यक वस्तुएं पहुंचायी जा सकती थी । जो नहीं पहुंचाई गई । आज देश के हर मोहल्ले और ग्रामों की दुकानों में किराना सामग्री खत्म हो चुकी है । सीमित परिवार हैं जिनके पास संपूर्ण संसाधन उपलब्ध है । अत्यावशयक दवाईयां मेडिकल स्टोर पर खत्म हो चुकी है ।
भविष्य में आर्थिक योजनाओं को लेकर भी कोई रास्ता नहीं सुझाया गया है ।

जिलों से लेकर दिल्ली तक आखिर राजनीति और प्रशासन में उच्च पदों पर बैठे लोगों ने लॉकडाउन की इस अवधि में क्या किया ? आम नागरिकों की समस्या के निदान और उपचार को लेकर क्या योजनाएं बनाई ? या फिर स्वयं घर पर रहकर लॉकडाउन का पालन किया । आकलन आप स्वयं कीजिए ।

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