तो मध्यप्रदेश के संवैधानिक संकट के जबाबदार 22 पूर्व विधायकों और मंत्रियों के चुनाव लड़ने पर लगना चाहिए रोक

खबर नेशन /  Khabar Nation

भारत के प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी, गृहमंत्री अमित शाह से लेकर मध्यप्रदेश के पूर्व मुख्यमंत्री कमलनाथ , वर्तमान मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चौहान सहित कर्नाटक सरकार भी बराबर की दोषी 

"मैं ईश्वर की शपथ लेता हूं कि मैं विधि द्वारा स्थापित भारत के संविधान के प्रति सच्ची श्रद्धा और निष्ठा रखूंगा.... भय या पक्षपात, अनुराग या द्वेष के बिना मैं सभी प्रकार के लोगों के प्रति संविधान और विधि के अनुसार न्याय करूंगा..."
भारत के संविधान की तीसरी अनुसूची में दिए गए ये शब्द भारत की न्यायिक, विधायी और संवैधानिक एवं प्रशासनिक व्यवस्था की मूल आत्मा के तौर पर असर करते हैं। इन पंक्तियों में दो चार शब्दों का अंतर हो सकता है लेकिन पंचायत से लेकर राष्ट्रपति तक इसके मूल कर्तव्य में बंधे हैं।
सवाल यह है कि हर कसम की तरह इस शपथ को तोड़ने के पहले क्याक हमारे जनप्रतिनिधि कुछ सोचते हैं? एक पल भी इस शपथ का विचार करते हैं?
यह सवाल इस लिए कि संविधान की इस मूल भावना पर मध्य प्रदेश के एक वरिष्ठ सरकारी अफसर ने यह कहते हुए झकझोर दिया कि अगर हम इसका उल्लंघन करें तो हमारी नौकरी चली जाती है तो फिर कांग्रेस छोड़कर भाजपा में शामिल हुए मध्य प्रदेश के इन 22 विधायकों पर कठोर कार्रवाई क्यों नहीं की जाना चाहिए? उनका सीधा इशारा इन विधायकों के भविष्य में चुनाव लड़ने पर रोक लगाने को लेकर था।
गौरतलब है कि मध्य प्रदेश की कांग्रेस सरकार के ज्योतिरादित्य सिंधिया समर्थक 22 विधायक (जिनमें 6 मंत्री शामिल है) अचानक बंगलोर के एक रिसोर्ट में पहुंच गए। मध्य प्रदेश की कांग्रेस सरकार अल्पमत में आ गई और उसे हटना पड़ा। ये पूरा घटनाक्रम मध्य प्रदेश में लगभग 15 दिनों तक संविधानिक संकट के तौर पर व्याप्त रहा। इस्तीफे देने वाले सिंधिया  समर्थित छह पूर्व मंत्रियों में गोविंद सिंह राजपूत, महेंद्र सिंह सिसोदिया, प्रभुराम चौधरी, प्रद्युम्न तोमर, तुलसीराम सिलावट और  इमरती देवी शामिल थे ।
विभिन्न माध्यम से अपने इस्तीफे भेजने वाले 16 कांग्रेसी विधायकों में सुरेश धाकड़, रक्षा संतराम सरोनिया, जजपाल सिंह जज्जी, विजेंद्र सिंह, रघुराज कंसाना, ओपीएस भदौरिया, मुन्नालाल गोयल, गिर्राज दंडोतिया, कमलेश जाटव, रणवीर सिंह जाटव, राजवर्धन सिंह दत्तीगांव, हरदीप सिंह डंग और मनोज चौधरी ,एन्दल सिह कंसाना, बिसाहू लाल सिंह शामिल हैं।

आखिर इस संकट का जवाबदार कौन और क्या दोषी को इसकी सजा नहीं मिलना चाहिए ?
विधायक और मंत्री की शपथ में इस बात का उल्लेख है कि वह अपने कर्तव्यों का पालन श्रद्धा पूर्वक और शुद्ध अंत:करण से निर्वहन करेंगे । सिंधिया समर्थक विधायक मुख्यमंत्री कमलनाथम पर उनकी नेता की उपेक्षा का आरोप लगा रहे हैं । इधर कांग्रेस उक्त विधायकों को भाजपा द्वारा अनुचित तरीके से रखें जाने का आरोप लगा रही थी । शपथ कर्तव्यों के पालन की थी । अगर मुख्यमंत्री कमलनाथ उपेक्षा कर रहे थे तो उक्त विधायकों और मंत्रियों ने मध्यप्रदेश में इस्तीफा देना उचित क्यों नहीं समझा ?  आखिर बेंगलुरु जाकर यह इस्तीफे क्यों दिए गए ? क्या यह उस जनता का अपमान नहीं है जिसके कर्तव्यों को श्रद्धा पूर्वक और शुद्ध अंतकरण के निर्वहन के  लिए उन्हें चुना गया था ?शपथ में इस बात का भी उल्लेख कि वे भय या पक्षपात ,अनुराग या द्वेष के बिना सभी प्रकार के लोगों के प्रति संविधान और विधि के अनुसार न्याय करेंगे ।
आखिर ये कैसा न्याय किया गया ? अगर इन विधायकों द्वारा भोपाल में रहकर इस्तीफा दिया जाता तो इन्हें किसका भय था । बेंगलुरु  जाकर भाजपा नेताओं के हाथ से इस्तीफा भिजवा कर मध्य प्रदेश की जनता के साथ इनके द्वारा पक्षपात नहीं किया गया ? क्या यह ज्योतिरादित्य सिंधिया के प्रति अनुराग और मुख्यमंत्री कमलनाथ की सरकार के साथ द्वेष नहीं था ?  मध्यप्रदेश विधानसभा में नियम एवं प्रक्रिया में कॉल शकधर की पुस्तक के मुताबिक विधायक का कर्त्तव्य  जन सामान्य के कल्याण , जनता के हितों को व्यक्तिगत हितों  से ऊपर रखें जाने , सार्वजनिक हित को  नुकसान ना पहुंचाने एवं सदस्यों को सार्वजनिक जीवन में नैतिकता , प्रतिष्ठा , शालीनता और मूल्यों का उच्च स्तर बनाए रखने के रूप में शामिल किया गया है । इन मापदंडो पर भी यह इस्तीफा दिए हुए विधायक कितने खरे उतरे यह भी विचारनीय है ।
विधानसभा नियम प्रक्रिया के एक जानकार के अनुसार इसमे विधानसभा अध्यक्ष की भूमिका पर भी प्रश्न चिन्ह खड़ा होता है विधानसभा प्रमुख होने के नाते विधायको के संरक्षण में सर्वथा असफल साबित हुये l विधानसभा अध्यक्ष चाहते तो प्रदेश के मुख्य सचिव डी जी पी को अपने कार्यालय बुलाकर विधायकों की कुशलता आदि  के बारे में रिपोर्ट तलब करते  l विधान सभा अध्यक्ष ने सभी विधायको का इस्तीफा  स्वीकृत न करके मात्र 6 विधायकों का इस्तीफा स्वीकृत करके  अपनी भूमिका को संदिग्ध बना लियाI पूरे घटना क्रम के दौरान भाजपा विधायक दल के चीफ व्हिप द्वारा बार बार विधानसभा अध्यक्ष से मिलने से भी कई संदेहों को जन्म दिया l विधानसभा के मुखिया ना होते हुए भी राज्यपाल ने उक्त दोनों अधिकारियों को राजभवन तलब किया था और पूरे घटनाक्रम पर रिपोर्ट तलब की थीl सत्तारूढ़ दल की भूमिका भी महज दिखावटीपन से अधिक कुछ नहीं थी । वरना सत्र आहूत होते ही तथाकथित 22 विधायकों को उनके संसदीय दायित्वों से रोके जाने  के कारण विशेषाधिकार भंग की सूचना देते मगर ऐसा हो न सका । सत्तारुढ़ दल की मंशा महज भाजपा को बदनाम करने के अतिरिक्त औऱ कुछ नहीं थी l सत्तारूढ़ दल अपने संसदीय दायित्वों के निर्वहन में सर्वथा असफल साबित हुआ l काग्रेस के पूर्व मुख्यमंत्री दिग्विजय सिंह द्वारा बंगलुरु जाकर अपने मतदाताओं से मिलने का ढिढोरा पीटना महज नोटंकी थी ।क्योंकि जब उनके दल द्वारा व्हिप जारी की गई थी तो फिर भी मतदाताओं से मिलने की जिद महज बचपना ही कहा जा सकता है या प्रचार माध्यमो की सुर्खियों में बने रहने का प्रयास l
इसी के साथ ही मध्यप्रदेश की राज्य सरकार में शामिल कांग्रेस हो या विपक्ष के तौर पर भारतीय जनता पार्टी दोनों ही दल के नेता अपनी संवैधानिक जिम्मेदारियों को निभाने में असफल साबित हुए । इसी के साथ ही केन्द्र सरकार ने भी इस मामले को जानते बूझते हुए अपने संविधान प्रदत्त शपथीय कर्त्तव्यों को जानबूझकर निभाने की कोशिश ना कर संवैधानिक उल्लंघन किया है । माना जा सकता है इस मामले में भारत के प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी, गृहमंत्री अमित शाह से लेकर मध्यप्रदेश के पूर्व मुख्यमंत्री कमलनाथ , वर्तमान मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चौहान सहित कर्नाटक सरकार भी बराबर की दोषी रही ।

Share:


Related Articles


Leave a Comment