दिसंबर में लू, जुलाई में सूखा और मई में बर्फ पड़ेगी....

कहो तो कह दूं ।
संस्कारधानी जबलपुर की बातें वरिष्ठ पत्रकार चैतन्य भट्ट की कलम से कहो तो कह दूं ।
खबर नेशन / Khabar Nation
कहते हैं संगत का असर निश्चित तौर पर पड़ता है, इसलिए मां-बाप अपने बच्चों से कहते हैं बेटा बुरी संगत में मत पड़ना वरना जिंदगी बर्बाद हो जाएगी, ऐसा ही कुछ मौसम के साथ हो रहा है । बरसों से ये मौसम नेताओं के साथ रह रहा है हर पार्टी के नेताओं को देख चुका है कि वे कब किस तरफ कुलाटी खा लें वो खुद भी नहीं जानते, कल तक जिसको पानी पी पीकर कोसते थे आज उसी की तारीफ में ऐसे कसीदे पढ़ते हैं कि जिस की तारीफ की जा रही है वो खुद भी शर्मा जाए । अब जब नेताओं की संगत को इतने साल हो गए हैं तो मौसम भी उनके "गिरगिट" वाले रूप से कैसे बच पाता सो उसने भी पलटी खानी शुरू कर दी है, अब देखो ना कोई सोच सकता था कि अप्रैल और मई में ऐसी भीषण बारिश होगी कि जो बेचारे दुकानदार कूलर, एसी, पंखा का शोरूम खोले बैठे थे वे उसमे बरसाती, छाता और पन्नी बेचने मजबूर हो जाएंगे जो लोग लस्सी पीने और आइसक्रीम खाने बाहर जाते थे वे बेहतरीन भजिया और मंगोडा खाकर वापस आ रहे हैं । नेता तो चलो मान लिया सत्ता के लिए पलटी मारते हैं ,दल बदल लेते हैं, स्वभाव बदल लेते हैं, वाणी बदल लेते हैं लेकिन इस मौसम को कौन सी सत्ता चाहिए भाई, ये तो अपने समझ से बाहर है। मौसम विभाग वाले अलग-हलकान परेशान हैं कि वे जनता को क्या बताएं क्या ना बताएं जब भी बारिश की संभावना बताते हैं तो चटक धूप निकलती है और जब मौसम खुला बताते हैं तो बारिश शुरू हो जाती है इसलिए तो अब जनता ने मौसम विभाग पर भरोसा करना ही छोड़ दिया कि जब इन्हें अपनी बात पर ही भरोसा नहीं तो इनकी बात पर हम क्यों भरोसा करें , लेकिन इस मौसम ने नगर निगम के नकारा और लापरवाह अफसरों को अच्छी बत्ती दे दी है वरना वे टांग पसार कर सो रहे थे लेकिन दो इंच की बारिश ने पूरे शहर को तरबतर कर दिया, तमाम नाले नालियां उफन कर सड़कों पर आ गए, लोगों के घरों में पानी भर गया अब हल्ला मचना स्वाभाविक था इसलिए अच्छी खासी गहरी नींद में सोने वाले नगर निगम के अफसरों को जागना पड़ा और अब शायद वे नाले नालियों की सफाई करेंगे । वैसे भी शहर के नाले नालियों की हालत यह है यदि उनमें "एक लोटा पानी" भी डाल दिया जाए तो वे ओवरफ्लो हो जाते हैं, बहरहाल जो स्थिति मौसम की दिख रही है उसे देखकर लगता है कि वो दिन दूर नहीं है जब दिसंबर में लू, चलेगी, जुलाई में सूखा पड़ेगा और मई लगनेमें बर्फ पड़ेगी । मौसम के इस बदलते रूप पर किसी गीतकार ने सही गीत लिखा था "आज मौसम बड़ा १बेईमान है आने वाला कोई तूफान है" इसमें से सिर्फ आज शब्द हटा दिया जाए तो मौसम पर यह गाना बिल्कुल फिट बैठेगा ।
ऐसे कैसे ना करें घमंड
मध्य प्रदेश के मुखिया शिवराज सिंह चौहान उर्फ मामा जी ने सिविल सर्विसेज के अफसरों को नसीहत देते हुए बताया कि वे "आईएएस" और "आईपीएस" होने का घमंड ना पालें आप और हम दोनों जनता के सेवक हैं । मामाजी भी कई बार जोक छोड़ देते हैं, अरे हुजूर सेवक तो इस देश की जनता है, राजा महाराजा तो नेता और अफसर होते हैं। आपने देखा नहीं एयर कंडीशंड ऑफिस में बैठे हुए अफसरों के सामने जनता अपने काम के लिए कैसे घिघियाती है । बड़े-बड़े बंगले, ए सी गाड़ी, बड़े-बड़े दफ्तर, नौकरो चाकरों की फौज, दरवाजे पर खड़े पीड़ितों की भीड़ अब ये सब जिसके सामने हो उसे घमंड कैसे नहीं होगा ये बात अलग है कि ये ही अफसर "प्राइमरी पास" नेताओं के सामने अपनी नाक रगड़ते दिख जाते हैं क्योंकि मलाईदार पोस्टिंग तो इन के दम पर ही मिलती है फिर जिसने इतनी मेहनत की हो कलेक्टर बना हो, एस पी बना हो उसे अगर सचिवालय या पी एच क्यू में बिठा दिया जाए तो उसका तो जीवन ही नष्ट हो जाता है मामा जी ने कह जरूर दिया है कि आप लोग घमंड मत करो पर अपने को मालूम है ये असंभव सी बात है एक शेर भी है "खुदा जब हुस्न देता है नजाकत आ ही जाती है करे मोहब्बत जो कोई शराफत आ ही जाती है" उसी तर्ज पर यह कहना गलत ना होगा "जब अधिकार मिलते हैं तो घमंड आ ही जाता है"
दारू तो रात में ही पी जाती है
एक खबर आई है जिसमें बताया गया है कि पूरे देश में दारु की दुकानें यदि सबसे ज्यादा समय तक खुली रहती है तो वह मध्यप्रदेश है। मामा जी ने पूर्व मुख्यमंत्री उमा भारती जी के दबाव में अहाते तो बंद कर दिए लेकिन दारू प्रेमियों के लिए भी उनके मन में कहीं ना कहीं सॉफ्ट कॉर्नर था सो उनके आबकारी डिपार्टमेंट ने शराब की दुकान बंद करने का समय बढ़ा दिया । वैसे एक हिसाब से यह काम ठीक भी है क्योंकि दारू तो रात में ही पी जाती है बहुत ही बड़े दरुए होंगे जो दिन में भी बोतल खोल लेते होंगे वरना दारू का मजा तो रात को ही आता है। बेहतरीन ठंडी हवा चलती हो, चार यार मिल कर बैठे हो, चखना भी सामने हो, बर्फ की क्यूब्स हाजिर हों तो फिर दारु पीने का मजा तो दस गुना हो ही जाता है, दिन में भला कौन दारू पीता है दिन में काम करता है तब तो दारू qके लिए पैसे खड़े हो पाते हैं इसलिए अपना मानना तो ये है कि दरुओ की सुविधा के लिए यदि रात भर भी दुकानें खुली रहे तो कोई गुरेज नहीं क्योंकि आफ्टर आल उनके ही दम पर तो सरकारें चल रही हैं जिस दिन ये दारु पीना छोड़ देंगे उस दिन सरकारों का बजट बिगड़ जाएगा और कोई भी सरकार यह नहीं चाहती ।
सुपरहिट ऑफ द वीक
श्रीमान जी ने खाना खाते खाते श्रीमती जी से पूछा
"ये तो बताओ तुमने जो सब्जी बनाई है उसका नाम क्या है"
"तुम सब्जी खाओ नाम से क्या होने वाला है" श्रीमती जी ने पूछा
इसको खाने के बाद जब मर कर ऊपर जाऊंगा तो ऊपरवाला पूछेगा
" क्या खाकर मरे थे तो क्या बताऊंगा" श्रीमान जी ने उत्तर दिया
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गौरव चतुर्वेदी
खबर नेशन
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