लोधी की अयोग्यता में भाजपा अनुच्छेद 192 का सहारा नहीं ले सकती : अभय दुबे

एक विचार Nov 06, 2019

 

खबर नेशन / Khabar Nation

भोपाल, - प्रदेश कांग्रेस मीडिया विभाग के उपाध्यक्ष अभय दुबे ने जारी एक बयान में कहा कि मध्यप्रदेश भाजपा का शीर्षस्थ नेतृत्व न्यायालय द्वारा दोषसिद्ध और अयोग्य करार दिये गये विधायक प्रहलाद लोधी के संदर्भ में जो भ्रम फैला रहे हैं वे कुछ संवैधानिक और प्रासांगिक प्रश्नों के जवाब दें।

1. विधानसभा क्षेत्र क्रमांक 58-पवई जिला पन्ना से निर्वाचित प्रहलाद लोधी को प्रकरण क्रमांक 22/2019 जो कि 30 दिसम्बर 2014 को प्रदेश में भाजपा की सरकार के दौरान संस्थित किया गया था, क्या उन्हें 31 अक्टॅूबर 2019 को दो वर्ष के कारावास एवं अर्थदंड से दंडित नहीं किया गया है?

2. क्या सर्वोच्च अदालत ने 10 जुलाई 2013 के अपने आदेश में चुनाव आयोग के आर.पी. एक्ट 1951 की धारा 8 (4) को अल्ट्रा वायरस डिक्लेयर करते हुए हटा नहीं दिया था? जिसमें प्रावधान था कि सजायाफता एमपी या एमएलए ऊपर की अदालत में तीन महीने तक अपील करने के दौरान अयोग्य नहीं माना जायेगा।

3. क्या सर्वोच्च अदालत ने 10 जुलाई 2013 को अपने फैसले में यह नहीं कहा था कि विधायक की अयोग्यता जो आरपी एक्ट की धारा 8 (1), 8 (2), 8 (3) में परिभाषित की है अर्थात जिस दिनांक को दो वर्ष या उससे अधिक की सजा सुनाई जाती है, उसी दिनांक से विधायक अयोग्य करार दिया जायेगा? क्या जुलाई 2019 में सुप्रीम कोर्ट के चीफ जस्टिस की बेंच ने लोकप्रहरी बनाम यूनियन आफ इंडिया केस में इसी आदेश को दोहराया नहीं था?

4. क्या विधानसभा ने विधि सम्मत निर्णय लेते हुए विधानसभा क्षेत्र क्रमांक 58-पवई से निर्वाचित विधायक प्रहलाद लोधी को 31 अक्टूबर 2019 को दो वर्ष का कारावास एवं अर्थदंड से दंडित होने के पश्चात 10 जुलाई 2013 के सर्वोच्च अदालत के आदेश के परिपालन में संविधान के अनुच्छेद 191 (1) (म) सहपठित लोकप्रतिनिधित्व अधिनियम 1951 की धारा 8 के तहत विधायक लोधी के खिलाफ कार्यवाही नहीं की?

 

दुर्भाग्यपूर्ण बात है कि भारतीय जनता पार्टी महामहिम राज्यपाल जी को गुहार लगाने के नाम पर सिर्फ राजनैतिक रोटियां सैंक रही है, सर्वोच्च अदालत की अवमानना कर रही है और बेवजह महामहिम राज्यपाल जी की छबि को धूमिल करने की कोशिश कर रही है।

भाजपा को जान लेना चाहिए कि जिस भारत के संविधान के अनुच्छेद 192 के तहत वे राज्यपाल के पास गये हैं, वह कहता क्या है:-

अनुच्छेद 192. सदस्यों की निरर्हताओं से सम्बन्धित प्रश्नों पर विनिश्चय:

(1) यदि यह प्रश्न उठता है कि किसी राज्य के विधान-मण्डल के किसी सदन का कोई सदस्य अनुच्छेद 191 के खण्ड (1) में वर्णित किसी निरर्हता से ग्रस्त हो गया है या नहीं तो वह प्रश्न राज्यपाल को विनिश्चय के लिए निर्देशित किया जाएगा और उसका विनिश्चिय अन्तिम होगा।

(2) ऐसी किसी प्रश्न पर विनिश्चय करने से पहले राज्यपाल निर्वाचन आयोग की राय लेगा और ऐसी राय के अनुसार कार्य करेगा।

अर्थात उपरोक्त अनुच्छेद 192 में साफ कहा गया है कि कोई सदस्य निरर्हता से ग्रस्त हो गया है या नहीं जब यह सुनिश्चित नहीं होगा तब ही राज्यपाल उस प्रश्न का समाधान करेंगे। आज जब अपराधी दोषसिद्ध हो चुका है और सर्वोच्च अदालत के निर्णय के परिपालन मंे विधानसभा उसे अयोग्य ठहरा चुकी है अर्थात निरर्हता का कोई प्रश्न है ही नहीं तो संविधान के अनुच्छेद 192 का सहारा अप्रासांगिक हो जाता है।

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