कलाकार की निर्मिती धर्म के बंधनों में बांधने के लिए नहीं हुई

एक विचार Aug 12, 2022

 

नाज पर निशाना केवल इसलिए कि वो हिंदू समुदाय से जुड़े गाने गा रही है

लेखक व पत्रकार डॉ दर्शनी प्रिय

नई दिल्ली / खबर नेशन / Khabar Nation

गायिका फरमानी नाज इस समय विवादों में घिरी हुई हैं। दरअसल, नाज ने कांवड़ यात्रा के दौरान "हर-हर शंभू" गाना गाया है। आजकल यू ट्यूब पर यह गाना  वायरल है। एक तरफ जहां इस गाने की जमकर तारीफ की जा रही है, वहीं दूसरी तरह देवबंद के कुछ मौलानाओं ने नाज के खिलाफ फतवा जारी कर दिया है। 

मेरठ के मोहम्मदपुर की रहने वाली फरहान अत्यंत गरीब मुस्लिम परिवार से है। पिता मजदूरी कर घर चलाते है।पति ने एक बच्चे के साथ सालों पहले बेसहारा छोड़ दिया था।पर ईश्वर की दी हुई एक नेमत ने नाज को बिखरने से बचा लिया। कुदरत की इस बख्शीश को नाज ने धीरे धीरे तराशना शुरू किया और अपने लोकप्रिय शिव भजनों के जरिए आज घर घर तक अपनी पहचान बना चुकी है।  कट्टर मौलानाओं को नाज की ये कोशिश नागवार गुजरी उन्होंने नाज को येन केन प्रकारेण धमकाना शुरू कर दिया।आज नाज हिंदू धर्म से जुड़े गीत गाने के चलते कट्टरपंथियों के निशाने पर है।

 

सवाल है कि क्या कलाकार को किसी धर्म या कायदे में बांधा जा सकता है।नाज पर निशाना केवल इसलिए कि वो हिंदू समुदाय से जुड़े गाने गा रही है।क्या अन्य धर्म के लोगों को ये नहीं मालूम कि धर्म उठना सिखाता है, गिरना नहीं।संसार के भवसागर को पार कराने वाले हमारे धर्माचार्य,धर्मगुरु खेवनहार है वे स्वयं अंधे,अज्ञानी और मोहमाया में लिप्त होकर  नौका पार कराने की बजाय हमें मंझदार में ही डूबो रहे है।

आश्चर्य यह है कि ईश्वर हमारे हृदय में निवास करता है,हम उसे अपनी कर्म की साधना से अपने भीतर ही देख सकते है, पर ऐसा करने की बजाय हम उसे धर्म के भेदभाव,कलुषित विचारधारा और बाह्याचार और पाखंड में खोजते है।यह कार्य उतना ही मूर्खतापूर्ण है जितना नेत्रविहीन व्यक्ति का घर में रखी हुई वस्तु को न देख पाना। आपसी प्रेम अज्ञान की भीषण ज्वाला में आपसी सौहार्द जल कर भस्म हो रहा है।अगर इस समदर्शी भाव से देखें तो नाज जैसी महिलाऐं हमें धर्मांधता और मिथ्याचार से निकालने के लिए एक मजबूत कड़ी के रूप में काम कर सकती थी। दोनों समुदाय के बीच प्रेम, सौहार्द और मेलजोल बढ़ाने का यह एक बेहतरीन अवसर था। नाज का संगीत प्रेम के इस इस समीकरण को साधने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाता अगर मुस्लिम समुदाय इस धर्मविरोधी मानकर धर्मपरवर्ती मानता।

 

 नाज ने अपनी रूहानी आवाज से शिव के भजनों को उर्ध्वगामी बनाया है ।इससे समाज में एक महत्त्वपूर्ण और सकारात्मक संदेश गया है।क्या जरूरी नहीं की मौजूदा परिस्थितियों में यह समुदाय को धर्म संबंधी भेद भाव से उपर उठकर समदृष्टि भाव से इस देखता।

 

यहां कबीर की झीनी झीनी बिनी चदरिया के बोल अकस्मात ही जीवंत हो उठते है।ऐसे समय में वे अचानक समाज के एकता के पुजारी और मानव अखंडता के सच्चे प्रहरी बन कर खड़े हो जाते है।उन्होंने हिंदू मुसलमान में प्रेम की वह सुदृढ़  आधार शिला रखी जिस पर आज की धर्म निरपेक्ष नीति का प्रासाद खड़ा है।क्या हमें उनसे सीखने की जरूरत नहीं।

नाज को फटकार नहीं, सराहना मिलनी चाहिए थी।इतिहास गवाह रहा है कि कलाकारो ने वर्ण भेद से उठकर समाज को हमेशा जोड़ने का काम किया है। उनकी कोई जाति या धर्म नहीं होती सिर्फ कला ही उनका धर्म है।

 आत्मा की निर्मलता,परस्पर सौहार्द एवं सद्भाव, सात्विक विचार, अहंकार से मुक्ति,जीव मात्र पर दया ये सब कलाकारों की चेतना के मूल में है।मुस्लिम समुदाय मन की सारी मलीनता त्याग कर  नाज को प्रोत्साहित करे तभी गंगा जमुनी तहजीब को सुरक्षित रखा जा सकेगा। मौजूदा वक्त समाज की विकृतियों का विरोध कर मनुष्य मनुष्य की समता,मानव एकता और सत्य को पूरी तरह प्रतिष्ठित करने का  है।शक्ति और सत्ता के सात्विक विचार,अहंकार से मुक्ति दिला सकते है।नाज जिस तरह घुटन और नाउम्मीदी के घनेरे बादलों को बेधकर निकली है उसे भरपूर सम्मान और प्यार मिलना चाहिए था।अनेक रगों वाले भारत की मिट्टी से भी तो एकता का यही रंग निकलता है।

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