राष्ट्रपति सचिवालय के कहने पर भी नहीं हुई कार्रवाई

38 साल से नियमितिकरण जंग लड़ रहे भूमिहीन श्रमिक को न्याय की दरकार
- नवंबर माह में हो जाएंगे रिटायर, पर नियमित न होने से नहीं मिल पाएगी पेंशन, सता रही बुढ़ापे की चिंता  
भोपाल/बैतूल। 
अफसर अपने मातहत काम करने वाले कनिष्ठ कर्मचारियों को किस कद्र प्रताडि़त करते हैं, इसका उदाहरण मध्य प्रदेश में सामने आया है। पीडि़त शख्स का नाम बैतूल जिले केे तिवरखेड़ गांव निवासी एकनाथ शेषराव है। अफसरों की कारगुजारियों के चलते उद्यानिकी विभाग में कार्यरत एकनाथ माली पद पर अपने नियमितिकरण के लिए पिछले 38 वर्षों से जंग लड़ रहे हैं। मंगोना खुर्द उद्यान में कार्यरत मप्र के भूमिहीन व आवासहीन एकनाथ 4-11-2019 को रिटायर हो जाएंगे। लेकिन नियमित नहीं होने के कारण उन्हेंं पेंशन नहीं मिल पाएगी। जिससे वे अपने बुढ़ापे को लेकर काफी चिंतित हैं। एकनाथ बीपी, सुगर से भी पीडि़त हैं। खास बात यह भी है कि एकनाथ के साथ काम करने वाले कुछ श्रमिक विभाग में पदस्थ अपने रिश्तेदार अधिकारियों की कृपा से माली पद पर नियमित भी हो गए।

लेकिन सभी नियम व सेवा शर्तें पूरी करने के बावजूद एकनाथ आज भी नियमितिकरण की बाट जोह रहे हैं। अभी एकनाथ कुशल श्रमिक के पद पर हैं। एकनाथ बताते हैं कि तत्कालीन ग्रामीण उद्यान विस्तार अधिकारी एमएल साहू ने नियमों की अनदेखी कर अपने भांजे राजू मारोती साहू को प्रशिक्षण के लिए पचमढ़ी भेज दिया, जिससे बाद में वह भी नियमित हो गया। राजू सिर्फ  चौथी पास था व उसकी उम्र भी सिर्फ 17 वर्ष थी। जबकि नियमों के मुताबिक वरिष्ठ व पढ़े लिखे श्रमिक को प्रशिक्षण के लिए भेजा जाना था। एकनाथ बताते हैं कि यदि उस समय उन्हें प्रशिक्षण के लिए भेज दिया जाता तो वे 10-1-1986 से नियमित हो जाते।

यहीं नहीं एकनाथ के मुताबिक, परियोजना अधिकारी (उपसंचालक) द्वारा 1-1-1984 से पहले से कार्यरत श्रमिकों की सूची मंगाए जाने पर एमएल साहू द्वारा उन्हें 23 जून 1983 से विभाग में कार्यरत बताया गया। जबकि वे 5 जून 1982 से कार्यरत हैं। सूची पर उद्यान अधीक्षक पीके श्रीवास्तव के हस्ताक्षर हो गए और यह परियोजना अधिकारी के पास चली गई। जिसकी वजह से भी एकनाथ को नियमितिकरण का लाभ नहीं मिल सका।

यहां खास बात यह भी है कि एक शख्स माणिकराव भैया का नाम विभाग द्वारा कभी भी नहीं भेजे जाने के बावजूद 1989 में तत्कालीन संचालक, मप्र उद्यानिकी संचलनालय द्वारा उसे भी नियमित कर दिया  गया। इसकी शिकायत किए जाने के बावजूद आज तक इसकी जांच नहीं हो पाई है।


न्यायालय के निर्देश पर नियमित माली पद का वेतन मिला, पर नियमित अब भी नहीं :

एकनाथ बताते हैं कि अपने खिलाफ  हो रहे इस अन्याय के खिलाफ वे श्रम न्यायालय, बैतूल पहुंचे। श्रम न्यायालय की ओर से 29-6-1999 को मेरे पक्ष में फैसला आया। श्रम आयुक्त इंदौर ने श्रम न्यायालय को पत्र लिखकर कहा कि एकनाथ को 10-1-1986 से 15-12-2005 तक नियमित माली पद का वेतन दिया जाए। इसे श्रम न्यायालय ने स्वीकार कर लिया। इस फैसले  के खिलाफ विभाग ने जबलपुर हाईकोर्ट में प्रकरण पे्रेषित किया। जबलपुर हाईकोर्ट ने भी एकनाथ केे पक्ष में फैसला देते हुए विभाग से कहा कि एकनाथ की नियमित माली पद की वेतन राशि  4 लाख 44 हजार 256 रुपए देय है। हाईकोर्ट केे निर्देशानुसार विभाग द्वारा 2,28000 रुपए की राशि एकनाथ के नाम से श्रम न्यायालय में जमा कराई गई।  178000 रुपए की राशि एकनाथ केे नाम से सेंट्रल बैंक ऑफ इंडिया, बैतूल में जमा कराई गई। और सिर्फ 56 हजार रुपए एकनाथ को नगद प्राप्त हुए। इस तरह एकनाथ को नियमित माली पद का वेतनमान तो मिला, लेकिन वे अब भी नियमित नहीं हो सके।

राष्ट्रपति सचिवालय के कहने पर भी नहीं हुई कार्रवाई :

इस संबंध में एकनाथ ने मध्य प्रदेश के उद्यानिकी विभाग के तत्कालीन प्रमुख सचिव, मध्य प्रदेश शासन के मुख्य सचिव, कलेक्टर बैतूल व भारत के राष्ट्रपति महोदय से भी शिकायत की। राष्ट्रपति सचिवालय की ओर से मध्य प्रदेश के तत्कालीन प्रमुख सचिव को मामले पर ध्यान देने के लिए कहा गया। लेकिन आज तक  कोई कार्रवाई नहीं हुई।

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