भारत में कृषि से 50 % जी.डी.पी. कैसे बढ़ाएगे ?

 
                                                               

खबर नेशन /Khabar Nation
नरेन्द्र मोदी जी के नेतृत्व में भारत सरकार का लक्ष्य वर्ष 2022 तक किसानों की आमदनी दुगनी करना है। दूरदर्शन, रेडियो, अखबारों में देखना एवं पढ़ना बहुत अच्छा लगता है तथा मन गदगद हो जाता है। हम कहते है कि भारत कृषि में आत्मनिर्भर देश बन चुका है पर सच्चाई कुछ और है। हमे वास्तविक स्थिति को समझना होगा, हमें यह भी समझना होगा कि सरकारें जो फैसला ले रही है, वह भारत के हित में है कि नही ? वर्तमान में देश मंदी के दौर से गुजर रहा है। आॅनलाईन शाॅपिंग में अमेजन, फ्लिपकार्ट बहुत आगे निकल गए है, यह बिजनेस मंदी-प्रूफ है? हमे यह सोचना पडेगा आखिर भारत में मंदी के लिए अमेजन अगर जिम्मेदार है तो आॅन लाईन शापिंग की परिमिशन भारत सरकार उसे क्यों दी ? अब तो चाय वा काॅफी के दौरान लोगों में बहुत-सी चर्चा इस विषय पर हो होने लगी है कि ‘आर्टिफिशियल इंटेलिजेंस’ नौकरीयाँ खा रही है, पर हम बुद्धिजीवी यह समझने के बाद भी, कि देश आर्थिक मंदी के दौर से गुजर रहा है विरोध करने को तैयार नही है।  हमारी लड़ाई भारत पाकिस्तान को लेकर ही होती है इन मुद्दों परे आखिर लड़ाई कब शुरू होगी ?
भारत द्वारा रीजनल काॅम्प्रिहेंसिव इकोनाॅमिक पार्टनरशिप के नाम पर 10 आसियान देशों  (इंडोनेशिया, मलयेशिया, फिलिपींस, सिंगापुर, थाईलेण्ड, ब्रुनेई, वियतनाम, लाओस, म्यांमार और कम्बोडिया) जापान, दक्षिण कोरिया, न्यूजीलैंड, आस्ट्रेलिया और चीन के साथ साथ एक नए कवायत चल रही है। जिसमें कृषि एवं डेयरी के उत्पादों में मुक्त व्यापार के नाम पर अधिकांश उत्पादकों पर आयात शुल्क शून्य पर लाने का समझौता प्रस्तावित है। इस समझौते पर बातचीत की शुरूआत में भारत में आनेवाले 92 प्रतिशत कृषि उत्पादों पर आयात शुल्क शून्य करने और 7 प्रतिशत उत्पादों पर 5 प्रतिशत आयात शुल्क करने की मांग आई है। ‘‘आसियान’’ देशों के समुह के साथ जो मुक्त व्यापार समझौता किया गया था उसके परिणाम स्वरूप हमारे रबर, खाद्य तेल, काफी, फल, आदि पर भारी दुष्प्रभाव पड़ा, परिणिति यह हुई कि देश खाद्य तेलों के लिए अधिकांशतः विदेशों पर ही निर्भर हो गया। हमने पाया कि मलेशिया जैसे देशों से आने वाला पाम आॅईल जैसे घटिया तेल जो खाने लायक भी नही है, देश के अन्य तेलों के साथ मिलावट कर बेचा जा रहा है, जो सेहत के लिए खतरनाक तथा केन्सर को बढ़ावा दे रहा है।
अन्तर्राष्ट्रीय व्यापार समझौते में कृषि और डेयरी को अलग रखा जा रहा है। भारत में कृषि एवं डेयरी बहुत छोटे पैमाने पर चल रही है, यहाँ डेयरी में सामान्यतः किसान 2 से 4 पशु का पालन करता है उसका कारण है कि गांव में चरनौही की जमीन का रकबा घटते चला गया और कई गांव में तो चरनौही की जगह बची हि नही। कृषि में औसत जोत का आकार 1 हेक्टेयर से भी कम है। ऐसे में डेयरी पर यदि कोई संकट आता है तो उसका असर 1 करोड़ लोगों पर होगा। इतनी बड़ी मात्रा में रोजगार के समाप्त होने पर बेरोजगारी से निपटना सरकारों के लिए मुशिकिल होगा। भारत की आधी आबादी कृषि पर आधारित है। विकसित देशों में मात्र दो से चार प्रतिशत लोग ही कृषि पर आश्रित है, ऐसी स्थिति में कृषि और डेयरी को अन्तर्राष्ट्रीय बाजार के उतार-चढाव पर नही छोड़ा जा सकता। किसान संघर्ष समिति कृषि और डेयरी को जो कि बड़ी जनसंख्या को जीविका देती है उसके लिए पर्याप्त संरक्षण की मांग करती है, ताकि अन्तर्राष्ट्रीय बाजार के थपेड़ों से किसान, किसानी और देश  को बचाया जा सके।

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