आंसू असली या आरोप झूठे !

दरअसल

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विश्व हिंदू परिषद के अंतरराष्ट्रीय अध्यक्ष प्रवीण तोगड़िया के हालात पर विशिष्ट लेख।

विश्व हिंदू परिषद के अंतरराष्ट्रीय अध्यक्ष प्रवीण तोगड़िया न्यूज़ चैनलों पर जिस तरह रो रहे थे, उनकी यह हालत देख कर मेरा तो मन द्रवित हो गया। इतने बड़े नेता की एनकाउंटर की साजिश और वह भी तब जबकि उन्हें केंद्र सरकार ने जेड प्लस सुरक्षा दे रखी हो ! विश्वास नहीं हुआ लेकिन हिंदू हित की बात करने वाले तोगड़िया ने यदि एनकाउंटर की बात कही है तो मानना चाहिए कि उन्हें कुछ जानकारी मिली होगी। वह जिस तरह से मीडिया से मुखातिब हुए, आरोप पर आरोप जड़ते रहे तो लगा था कि अब तो देश में सड़कों पर विहिप-संघ के कार्यकर्ता आक्रोश के साथ तलवार और त्रिशूल लहराते सड़कों पर निकल आएंगे और तोगड़िया के एनकाउंटर की साजिश करने वालों की गिरफ्तारी, पूरे मामले की सीबीआई जांच कराने जैसी मांग करेंगे। कांग्रेस महासचिव दिग्विजयसिंह सिंह भी नर्मदा परिक्रमा में व्यस्त हैं उनकी सहानुभूति से भी वंचित रहना पड़ा उन्हें । धरना-प्रदर्शन-ज्ञापन ऐसा कुछ भी नहीं हुआ तो क्या माना जाए तोगड़िया के आंसू सच्चे थे या उनके द्वारा एनकाउंटर की साजिश का दावा झूठा है।
 

नए साल की शुरुआत के पहले पखवाड़े में दो घटनाएं ऐसे हुई हैं जिसने आम आदमी को स्तब्ध कर दिया है एक तो सुप्रीम कोर्ट के मुख्य न्यायाधिपति के खिलाफ एससी के ही चार जजों द्वारा गंभीर आरोपों वाली बयानबाजी करना और दूसरा प्रवीण तोगड़िया का अपना एनकाउंटर कराने की साजिश को लेकर मीडिया से रुबरु होना । इन दोनों घटनाओं से एक बात तो साफ हो गई कि मीडिया की जरूरत सबको पड़ने लगी है।
 

अब बात की जाए प्रवीण तोगड़िया के आरोपों की। इन आरोपों की जांच गुजरात पुलिस, खुफिया एजेंसी अपने तरीके से कर रही है । तोगड़िया के इस प्रलाप से एक बात तो समझ आ गई कि चाहे रामलीला मैदान के मंच से सलवार-कुर्ती पहनकर रफूचक्कर होने वाले बाबाजी हों या सारे देश में त्रिशूल-तलवार बांटने के अभियान की अगुवाई कर उन्मादी नेता के रूप में पहचान बना चुके हिंदू हृदय सम्राट तोगड़िया हों पुलिस के नाम से धोती तो सबकी गीली होती है। 
 

दरअसल सत्ता प्राप्त हो जाने के बाद अब प्रधानमंत्री मोदी से लेकर भाजपा के राष्ट्रीय अध्यक्ष अमित शाह ऐसे किन्ही लोगों को हवा नहीं देना चाहते जिनके बयानों से मुस्लिम मतदाता भड़क जाए। यही कारण है कि कभी राम मंदिर आंदोलन के नाम से जिन की पहचान होती वे आचार्य धर्मेंद्र गुमनामी के अंधेरे में हैं, ताजमहल को लेकर बयान देने वाले यूपी सीएम योगी आदित्यनाथ को उसी ताजमहल के दीदार कर बड़े पैकेज की घोषणा करना पड़ती है और प्रवीण तोगड़िया को पुलिस से बचने के लिए एनकाउंटर की साजिश जैसे आरोपों का दावा अश्रुधारा के बीच करना पड़ रहा है । 

अभी कुछ राज्यों में विधानसभा चुनाव का सामना सरकार को करना है। यही सारी वजह है कि तीन तलाक और हज सब्सिडी बंद कर यह पैसा मुस्लिम महिलाओं की खुशहाली पर खर्च करने की घोषणा से सरकार मुस्लिम मतदाताओं का दिल जीतने में लगी हुई है। इसके साथ ही राम मंदिर मामले को भी वह हिंदू-मुस्लिम, संतों-मौलवियों को एक जाजम पर बैठाकर हल करने की दिशा में काम कर रही है। 

यह गौर किया जाना चाहिए कि राममंदिर मुद्दा मामले में सरकार ने ना तो तोगड़िया का सहयोग लिया ना धर्मेंद्र आचार्य को पीले चांवल भेजे। यही नहीं अब मंदिर का जिक्र निकलने परआरएसएस प्रमुख के स्वर भी मुलायम हो जाते हैं। कोई रामलला ने तो सपने में कहा नहीं होगा कि जाओ बेटा रविशंकर अयोध्या हो आओ, श्रीश्री रविशंकर मध्यस्थ के रूप में अयोध्या में सभी पक्षों से मिलते रहे हैं तो यह सरकार की प्लानिंग का ही हिस्सा है। इससे समझा जा सकता है कि सरकार उग्र बयानबाजी को तवज्जो देने वाले संतों-नेताओं की अपेक्षा सद्भाव के वातावरण में राम मंदिर का मसला हल करने का मन बना चुकी है। ऐसे में उनके आंसू एनकाउंटर की साजिश वाले भय से अधिक राममंदिर मसला हाथ से निकल जाने वाले अधिक लगते हैं। तोगड़िया यदि कह रहे हैं कि उनके एनकाउंटर की साजिश रचि जा रही है तो केंद्र सरकार को गंभीरता से इस मामले की जांच करवा ही लेना चाहिए। रही बात उन पर राजस्थान सहित अन्य राज्यों में चल रहे प्रकरणों की तो राम मंदिर आंदोलन से जुड़े देश भर के ऐसे सैकड़ों कार्यकर्ता हैं जो ऐसे नेताओं के उन्मादी नारों-धर्म यात्राओं में भड़की हिंसा के बाद दर्ज प्रकरणों में थाने-अदालतों के चक्कर लगा रहे हैं। जब एक सामान्य कार्यकर्ता पुलिस में दर्ज प्रकरण से नहीं घबरा रहा तो तोगड़िया से भी अपेक्षा की जानी चाहिए कि वे प्रकरणों का सामना करें, और फिर राजस्थान में कहां कांग्रेस सरकार है। साध्वी प्रज्ञा के मुकाबले तो हिंदू हृदय सम्राट ने पुलिस और जांच एजेंसियों की कथित ज्यादती देखी नहीं है । साध्वी प्रज्ञा का दुर्भाग्य है कांग्रेस शासन ने कथित प्रताड़ना की हदें पार कर दी और बीजेपी की सरकार आने के बाद भी ससम्मान तो बरी नहीं हो पाई । यानी सरकार अपना काम कर रही है, कानून अपना काम कर रहा है।

तोगड़िया के इन आंसुओं से उन सामान्य कारसेवक-परिवारों का हौंसला कमजोर हुआ हैं जिन्हें स्थानीय नेताओं ने अपने हाल पर छोड़ दिया फिर भी वे गांठ की पूंजी लगाकर अदालतों में तारीख पर हाजिर हो रहे हैं, क्योंकि उनकी आस्था राम में हैं। (खबरनेशन / Khabarnation)

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