डब्बू जी का डांस मनोरंजन है या टी आर पी और सियासी दाव पेंच है ?

 

मध्यप्रदेश के दमोह जिलें में पत्रकारिता का परचम फहराने वाले महेन्द्र दुबे का ताजा कटाक्ष

 

खबर नेशन  / khabarnation

 

 वो दिन याद आ रहे हैं जब पत्रकारिता की पढ़ाई कर रहा था, पहले ही दिन  प्रोफेसर ने क्लास में आते ही औपचारिक परिचय के बाद पहला सवाल किया कि इस क्षेत्र में मौजूदा समय मे कौन काम कर रहा है मतलब पत्रकारिता करते हुए पढ़ाई करने वाले कितने लोग हैं ? जो हांथ उठे उनमे एक हांथ अपना भी था तपाक से प्रोफेसर साहब का अगला सवाल आया ख़बर क्या है ? जवाब का सिलसिला शुरू हुआ तो एक एक कर  सहपाठी पत्रकारों ने जवाब देना शुरू किया और तमाम लोगों के जवाब का मजमून यही था कि सूचना का प्रसारण या सूचना को लोगों तक पहुंचाने का जरिया खबर है। उन दिनों में घटनाक्रम आयोजन और समीक्षा ही ख़बर को मानता था शायद यही वजह थी कि तकनीकी पत्रकारिता के गुर सीखने के साथ डिग्री हासिल करने की ललक ने ये सब करने को मजबूर किया और प्रोफेसर साहब ने जवाबो को सुनने के बाद जो पहला वाक्य कहा वो सदैव मानस पटल पर अंकित रहेगा और ये सहज वाक्य ही था लेकिन उसका गूढ़ अर्थ और उपयोगिता के साथ उसकी प्रासंगिकता हमेशा रहेगी ऐसा मानता भी हूँ। प्रोफेसर साहब का वाक्य था " कुत्ता आदमी को काट ले तो ख़बर नही लेकिन आदमी कुत्ता को काटे तो ख़बर है "  आसानी से समझ पाना जरा मुश्किल था पर कहीं ना कहीं सहज भी था। उनके इस वाक्य का अर्थ सिर्फ इतना था कि जो रोज घट रहा वो ख़बर नही है बल्कि जो अचंभित आश्चर्यचकित करने वाला हो वो ख़बर है। दरसल पत्रकारिता की पढ़ाई का ये चेप्टर या अध्याय आप सब को जबरन पढ़ाने की वजह सिर्फ इतनी है कि ख़बर या सूचना का सीधा सरोकार आपसे ही है और सही मायने में दुनियाभर के खबरनवीस आम जनता पाठक या दर्शक के लिए ही सारा तानाबाना बुनता है इसलिए इससे रूबरू होना आपके लिए जरूरी भी है। आधुनिक पत्रकारिता का ये सिद्धांत या रास्ता आप सब रोजना देख रहे हैं और कहीं ना कहीं पत्रकारिता का सम्पूर्ण क्षेत्र इसी दिशा में काम कर रहा है और देश भर में घट रहे ताजा घटनाकर्मो औऱ मीडिया की सुर्खियों को देखकर आप यकीन भी करेंगे कि जो मैंने लिखा वो यथार्थ भी है क्योंकि सुर्खियां बता रही कि खबरों की दुनिया मे मची भेड़चाल और सुर्खियों का सुर्खियां बनने का दौर जारी है और मजबूरन कलम चलने को मजबूर हो जाती है।

    इन दिनों देश के कई राज्यों के हालात बहुत ठीक नही हैं कहीं किसान सड़कों पर हैं तो कहीं कर्मचारी। मजदूरों से लेकर सरकारी मुलाज़िम तक सड़कों पर दिख रहे हैं लेकिन देश "डब्बू जी "के डांस में मगन है। जी हां डब्बू जी का डांस। मेरे हिसाब से डब्बू जी इस आलेख के पढ़ने तक किसी परिचय के मोहताज नही हैं बल्कि महानगरों से लेकर शहरों गावों गावँ की गलियों तक मशहूर हो गए।।सोशल मीडिया की उपज ये चरित्र देश भर की मीडिया अखबारों का अहम हिस्सा बन गया हर तरफ चर्चा डब्बू जी की ही है। घर दफ्तर बाजार और समारोह में डब्बू जी छाये हैं पक्ष विपक्ष सब डब्बू जी का दीवाना है । हाँ डब्बू जी वही जो एक फेमस गीत "में से मीना से ना साकी से " गीत पर थिरके तो उनका अंदाज कुछ अलग लगा । डब्बू जी का असल नाम संजीव श्रीवास्तव पेशे से मध्यप्रदेश की राजधानी भोपाल के एक इंजीनियरिंग कॉलेज में लेक्चरर हैं। संजीव अपने एक रिश्तेदार की शादी में विदिशा गए थे। अमूमन शादी समारोहों में जो घरेलू कार्यक्रम होते हैं वैसा ही कार्यक्रम संजीव जिस शादी में गए हुआ। वो पुराने कलाधर्मी हैं और कला उन्हें ईश्वर प्रदत्त है लिहाजा स्टेज पर अपनी पत्नी साहिबा के साथ जब उन्होंने थिरकन भरी तो परिवार के लोगों ने ही उनका वीडियो बनाया। जो दौर जारी है उस दौर का पालन करते हुए सोशल मीडिया के जरिये डब्बू जी यानी संजीव श्रीवास्तव का डांस वीडियो वायरल हो गया। वायरल हुई इस वीडियो को हमारे एक नेशनल चैनल ने जगह दी। शायद जगह इसलिए मिली कि क्योंकि उनके डांस का अंदाज कुछ अलग था उनकी पर्सनाल्टी अर्थाथ काया कद और उम्र शायद ये अब अजीब दर्शा रही थी और एक चैनल ने अपने दर्शकों के मनोरंजन के लिए वीडियो को जगह दी। इस वीडियो की पड़ताल हुई तो संजीव भी आसानी से खोजे जा सके। विदिशा के वरिष्ठ पत्रकार प्रीतीश अग्रवाल ने आसानी से डब्बू जी को खोज लिया और दुनिया से उन्हें मिलवाया भी पर डब्बू जी देखते ही देखते सेलेब्रिटी बन गए। शायद ही हो किसी रीजनल नेशनल चैनल ने उनके वीडियो को जगह ना दी हो तो अखबारों में उनके डांस की फोटो प्रकाशित करने की होड़ लग गई। डब्बू जी ने ये खुद कभी नही सोचा होगा कि वो एक साथ इतने सारे न्यूज़ चैनल्स के स्टूडियो में जाकर दर्शकों के सामने पेश होंगे। सोशल मीडिया लगातर इस चरित्र के बारे में मजे ले रही थी। अंकल जीजा और फूफा के नाम से डब्बू जी घर घर मोबाइल मोबाइल तक पहुंच गए तो में से मीना से ना साकी से गीत पर किये गए डान्स के बाद उनके एक एक कर गई गीतों पर डांस वीडियो सामने आने लगे और मुझे लगता है कि शायद अब तक जितना उन्होंने ना नाचा होगा उतना एक हफ्ते में वो नाच चुके होंगे। खबरिया चैनल्स डब्बू जी को अपने स्टूडियो में बुला कर नचवा रहे हैं तो रिपोर्टर उनके घर जाकर उनसे नये नए गीतों पर डांस कराकर उनका लम्बा चौड़ा इंटरव्यू रिकार्ड कर रहे हैं। इस रिकॉर्ड को टी वी पर परोसने के साथ सोशल मीडिया पर भी जारी किया जा रहा है। एक न्यूज रिपोर्टर होने के नाते इस तरह की खबरों के प्रस्तुतिकरण में जिन मापदंडों को अपनाया जाता है उसका एहसास कर रहा हूँ। हर रिपोर्टर डब्बू जी के साक्षात्कार में अपनी पूरी ताकत लगा रहा है वो दर्शकों को  ये बताने की भरसक कोशिश कर रहा है कि वो जो दिखाने जा रहा है वो एक दम नया है जो पिछलों ने दिखाया वो कुछ नही है ये देखिये ये एकदम लेटेस्ट वर्जन है इसमे आपका ज्यादा मनोरंजन होगा और रिपोर्टर का जितना ज्ञान और सामर्थ्य है वो पूरा झोंक रहा है और उसके सामने सवाल महज एक ख़बर का हिट कराना है क्योंकि अब डब्बू जी दर्शकों की पसन्द है और दर्शक की पसन्द संस्थान को ध्यान में रखता है और नही दिखाया तो टी आर पी का नुकसान  होगा और चैनल या संस्थान को इसका खामियाजा भुगतना पड़ेगा। वाह... डब्बू जी को सेलिब्रटी बनाने वाला हमारा सूचना तंत्र दर्शक की डिमांड पूरी करने की जद्दोजहद में लगा है और सिस्टम यानी सरकार भी इसमे पीछे नही। यकीन मानिए खबरिया चैनल्स पर आने से पहले डब्बू जी सिर्फ मसखरी और मनोरंजन का साधन थे सोशल मीडिया पर हंसी और मजाक का पात्र थे लेकिन देश की टी वी मीडिया और अखबारों ने डब्बू जी को टी आर पी वाला बना दिया तो सरकार की टी आर पी भी कैसे बच सकती। मध्यप्रदेश के मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चौहान ने ट्वीट कर डब्बू जी की तारीफ की ये भी कह दिया कि एम पी में दम है और सी एम के एक ट्वीट ने उनके फॉलोअर्स को भी प्रेरित किया कि डब्बू जी को सेलिब्रटी बनाया जाए। सी एम के ट्वीट ने फिर खबरिया चैनल्स को काम दे दिया। फेसबुक ट्वीटर पर आम से लेकर खास तक मतलब दिग्गजों ने डब्बू जी को सेलेब्रिटी बनाने की कवायद तेज की तो विदिशा की नगर पॉलिका ने तो डब्बू जी को अपना ब्रांड एम्बेसडर तक बना दिया ऐसी सूचनाएं मिल रही है। सरकार और सिस्टम का ये रुख देखकर मशहूर व्यंग्यकार नाटक कार शरद जोशी का लिखा नाटक " एक था गधा उर्फ अलादाद खाँ " याद आ गया। शरद जी के लिखे इस नाटक में अपनी किशोर अवस्था मे अभिनय किया है और नाटक के डायलॉग आज भी याद हैं और वर्षों पहले लिखे इस नाटक की प्रासंगिकता आज भी दिखती है । शरद जी का ये नाटक जिन्होंने देखा या पढ़ा है वो मेरी बात को आसानी से समझ गए होंगे और जिन्होंने नही पढ़ा उनसे गुजारिश करूँगा की डब्बू जी के वीडियोस देखने के बाद इंटरनेट के ऊपर इस नाटक को जरूर पढ़ें यकीनन डब्बू जी के डांस की तरह कहीं ज्यादा मनोरंजन इस नाटक में आपका होगा और सत्ता सिस्टम और नेताओं के साथ समाज के कई अंगों के बारे में आपको जो दिखेगा वो लगेगा की वो सब आज भी आपके आसपास घट रहा है। इस नाटक में एक नवाब लोकप्रियता हासिल करने क्या करता है और नवाब की इक्षा पूर्ति के लिए सिस्टम क्या करता है उसका ज्ञान आपको हो जाएगा। शायद आज भी वही हो रहा है।

  डब्बू जी यानी संजीव श्रीवास्तव के बारे में अब तक जो जानकारी मिली उसके मुताबिक वो अपनी नोकरी करने के अलावा कला जगत में भी दखल रखते हैं। डांस का ज्ञान या उनकी ये कला आपने देख ही ली इसके अलावा वो कॉमेडियन भी है मतलब कुल मिलाकर कलाकार हैं। मैं खुद भी एक खबरनवीस होने के साथ एक अदना सा कलाकार भी हूँ और बचपन से लेकर अब तक कला जगत और कलाकरों का सम्मान करता आया हूँ और डब्बू जी भी मेरे लिए सम्मान के पात्र हैं और में सार्वजनिक रूप से उनके इस हुनर को सलाम करता हूँ।और लोगों से भी अपेक्षा करता हूँ कि वो भी कलाकार का सम्मान करें और ये सम्मान उन्हें मिलना भी चाहिए। पूरे घटनाक्रम में सब ने अपना अपना किरदार बखूबी निभाया इसमे कोई संदेह नही। मीडिया ने अजीबो गरीब से लगने वाले एक तंदुरुस्त उम्रदराज व्यक्ति के डांस को इसलिए दिखाया क्योंकि डब्बू जी जैसी काया और उम्र में लोगों के अंदर इतनी स्फूर्ती काबिले तारीफ है शायद तभी बाबा रामदेव का पेट घुमाना फुलाना औऱ पिचकाना कभी सुर्खियों में रहा तो डब्बू जी को सुर्खियों का हिस्सा बनना गलत नही है। कहीं ना कहीं सोशल मीडिया पर हंसी और मजाक का पात्र बन रहे इस कलाकार की कला को चैनल्स ने सम्मान दिलाया और लोगों का नजरिया भी कुछ हद तक बदला और सरकार को भी अपने दिल की बात कहने का अवसर दिया। सिस्टम एक कदम और आगे बढ़ा तो ब्रांड एम्बेसडर बना डाला । हो सकता है यदि एक वीडियो ने तहलका ना मचाया होता तो यही डब्बू जी विदिशा की म्यूनसिपालटी में एक जन्म प्रमाण पत्र बनवाने महीनों घूमते रहते और उन्हें कोई नही पूंछता पर अब वो ब्रांड एम्बेसडर ही नही बल्कि हमारे टी वी चैनल्स के मुताबिक सेलेब्रिटी हैं और देश उन्हें पहचान रहा है इसलिये हुनर को सलाम तो बनता है।

    इस सब के बीच कई सवाल भी सामने खड़े होते हैं। अपने ही कर्मक्षेत्र के बारे में कहूँ तो डब्बू जी पहले या इकलौते इस तरह के डांस करने वाले शख्स नही हैं बल्कि सोशल मीडिया पर हर दिन अजीबो गरीब डान्सर मिलते है  जिन्हें दिखाने के बाद शायद टी वी चैनल्स दर्शकों का ज्यादा मनोरंजन कर सकते है या अखबार उनके बारे में छाप कर ज्यादा नाम कमा सकते हैं। पर डब्बू जी प्रदेश के मुखिया यानी मुख्यमंत्री के जिले के हैं उनकी सांसद देश की विदेश मंन्त्री हैं और फिर सी एम ने भी तो खुद ट्वीट किया है ये सब तो होना ही था लेकिन पत्रकारिता का कीड़ा कुछ और भी सोचने को मजबूर करता है। फिलहाल प्रदेश का अन्नदाता परेशान है किसान आंदोलित होकर कई जगहों पर सड़कों पर है । आने वाले दिनों में आम जनजीवन किसानों के आक्रोश और हड़ताल की वजह से बेहद प्रभावित हो सकता है। मंडियों में फसल बेंचने की आश लिए किसान धूप खाने मजबूर है। गांवों की सरकार का अभिन्न अंग रोजगार सहायक काम बंद किये है गर्मी के प्रकोप की वजह से प्रदेश के जंगलों में जंगली जानवर मर रहे हैं और वन कर्मचारी जंगल की हिफाजत करने की बजाए दफ्तरों में तालाबंदी करने विवश हैं। सूबे में कुछ महीनों बाद चुनाव है मतदाता सूचियों में गड़बड़ी उजागर हो रही है सियासी दाव पेंच खेले जा रहे हैं। महिलाओं और बेटियों की हालत खराब है नेताओं की जुबान पर लगाम नही है और कुल मिलाकर समस्याओ का पुलिंदा बड़ा है ऐसे दौर में क्या डब्बू जी इन तमाम मुद्दों से जनता की नजर हटाने का काम कर रहे हैं? अचानक डब्बू जी को इतनी हाइट कैसे मिल गई क्या इसके पहले के दूसरे डब्बू जी कलाकर की श्रेणी में नही आते थे या अचरज वाले डांस के वीडियो पहले कभी नही आये ? कहीं ना कहीं डब्बू जी के जरिये जनता का ध्यान भटकाने का काम तो नही हो रहा ? सैकड़ो मामलों में सरकार से जवाब मांगने वाले ट्वीट्स पर मुखिया के जवाब क्यों नही आते ? हर शहर में ऐसे अनोखे अंदाज रखने वालों को ब्रांड एम्बेसडर क्यों नही बनाया जाता ? इन बातों पर भी चिंतन करना बेहद जरूरी है क्योंकि सवाल किसी डांस वीडियो के जरिये मनोरंजन करने तक का नही है बल्कि आगे भी सोचने का है। कला कला है सम्मान हमारा देश सदियों से करता चला आ रहा है और फिर कहूंगा कि कला और कलाकार को सम्मान मिलना चाहिए पर ये सम्मान टी आर पी या सियासी दांव पेंच भर ना बन जाये। इस बात पर भी गौर करना होगा। आम जनता को भी ये समझना होगा कि कहीं माजरा कुछ और तो नही। वरना ख़बर तो ख़बर ही है बस और कुछ नही। और सच यही है कि कुत्ता आदमी को काटे कुछ नही आदमी कुत्ते को काटे ख़बर है।

     महेंद्र दुबे दमोह

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