राजनीतिक विरासत संजोते खोते नेताओं की संतान

अरुण - अजय-यशोधरा जलवा बरकरार नहीं रख पाए

गौरव चतुर्वेदी/ खबर नेशन/ Khabar Nation

ज्योति-जयवर्धन-विश्वास बने हुए हैं रेस में

मध्यप्रदेश में विधानसभा चुनाव अंतिम बेला में हैं। आगामी तीन माह में राजनीतिक कशमकश में नेता पुत्रों का भविष्य भी दांव पर लगा हुआ है। अगर मध्यप्रदेश के राजनीतिक इतिहास पर नजर डालें तो शीर्ष राजनेताओं की संतानों ने जहां राजनीतिक विरासत को संजोकर इज़ाफ़ा भी किया है तो कई राजनेताओं की संतानें विरासत को बढ़ाने की बजाय अपनी ही राजनीतिक जमीन को बचाए रखने में जद्दोजहद कर रहे हैं। वर्तमान दौर के स्थापित राजनेताओं की संतानें भविष्य की राजनीति के लिए दस्तक दे रहे हैं।

 मध्यप्रदेश गठन होने के साथ ही प्रदेश में परिवारवाद ने अपने पांव पसारना शुरू कर दिए थे। प्रदेश की सबसे सफल राजनेता की संतानें तत्कालीन मुख्यमंत्री पंडित रविशंकर शुक्ल के पुत्रदय श्यामा चरण शुक्ल और विधाचरण शुक्ल रहे। जहां श्यामाचरण शुक्ल तो मध्यप्रदेश के मुख्यमंत्री बनने में सफल रहे तो दूसरे भाई विधाचरण शुक्ल केन्द्र में कांग्रेस सहित विभिन्न राजनीतिक दलों की कई सरकारों में अपनी योग्यता का लोहा मनवाते रहे।

दूसरी सफल संतान के तौर पर माधवराव सिंधिया को माना गया। भारतीय जनता पार्टी की सर्वेसर्वा में शामिल रहीं राजमाता विजया राजे सिंधिया के साथ शुरुआती दौर में माधवराव सिंधिया ने राजनीतिक कदमताल करते  हुए बाद में अपनी अलग राह पकड़कर कांग्रेस में अलग मुकाम हासिल कर लिया। नेपाली मूल की हिंदू होने के कारण राजमाता विजया राजे सिंधिया का झुकाव हिंदूवादी पार्टीयों की और रहा। जिसमें भारतीय जनता पार्टी एक प्रमुख राजनीतिक दल के तौर पर उदय हो गई।

साफ सुथरी राजनीति और विकास को के मामले में सिंधिया आम जनता के बीच तेजी से स्थान बनाते चले गए। सिंधिया सिर्फ अपने लोकसभा क्षेत्र में ही नहीं बल्कि देश विदेश में भी अपने आपको सर्वस्वीकार्य बनाए रहे।

माधवराव सिंधिया के साथ बहन यशोधरा राजे सिंधिया अपनी मां के साथ खड़ी रहीं और भाजपा में अपनी जड़े मजबूती से जमाए रहीं। यशोधरा भी राजनीति में एक अलग मुकाम पर हैं। हांलांकि वे चम्बल तक ही अपने आपको सीमित रखे रहीं। संभवतः इसकी एक बड़ी वजह सिंधिया खानदान भले ही पारिवारिक तौर पर एक दूसरे का विरोध करता रहा लेकिन सामाजिक और राजनीतिक तौर पर आपस में टकराने से परहेज़ करता रहा।

इस दौरान भारतीय जनता पार्टी का एक मसले पर दो अलग-अलग स्टैंड देखने को मिलें। जहां कांग्रेस को परिवारवाद के नाम पर आरोपों से घेरती रही वहीं भाजपा में पनप रहे इस परिवारवाद पर चुप्पी साधे रही। जिसके चलते मध्यप्रदेश में भाजपा के शीर्ष नेता और पूर्व मुख्यमंत्री रहे सुंदर लाल पटवा के भतीजे सुरेन्द्र पटवा, पूर्व मुख्यमंत्री कैलाश जोशी के पुत्र दीपक जोशी, पूर्व मुख्यमंत्री वीरेंद्र कुमार सकलेचा के पुत्र ओमप्रकाश सकलेचा का उदय हुआ। 

 सिंधिया के बाद राजनीति में दस्तक देने वाले मध्यप्रदेश के पूर्व नेता प्रतिपक्ष अजय सिंह राहुल रहे। अजय सिंह राहुल मध्यप्रदेश के पूर्व मुख्यमंत्री और भारतीय राजनीति के कद्दावर चेहरा रहे अर्जुन सिंह के पुत्र हैं। अजय सिंह के बाद अर्जुन सिंह ने अपनी पुत्री वीना सिंह को भी राजनीति में आगे बढ़ाने का काम किया। हांलांकि अजय सिंह राहुल सौंपी गई पुश्तैनी विरासत को संभालने का काम कर रहे हैं पर मजबूती से संभाले रखने में नाकाम साबित हुए हैं। हांलांकि इसकी एक वजह कांग्रेस में उनका राजनीतिक विरोधियों की करामात और पारिवारिक कलह का बड़ा योगदान रहा।

अजय सिंह के बाद पुश्तैनी राजनीतिक विरासत को आगे बढ़ाने वालों में शामिल होने वाले नेता ज्योतिरादित्य सिंधिया रहे। ज्योतिरादित्य ने भी कांग्रेस की राजनीति में एक बड़ा मुकाम हासिल किया। कांग्रेस का गांधी परिवार में उनकी गिनती पारिवारिक सदस्य के तौर पर होती थी।ज्योतिरादित्य की राह में भी कांग्रेस के दिग्गजों के साथ कलह भी रहा। जिसके चलते ज्योतिरादित्य कांग्रेस की कमलनाथ सरकार गिराकर भाजपा की सरकार बना गए। सिंधिया अब केंद्रीय मंत्री हैं।

राजमाता विजयाराजे सिंधिया परिवार के लिए राजनीति हमेशा पारिवारिक संपत्ति को बचाने का ज़रिया रही है, पता चला है कि वर्तमान में भी गोविंद सिंह राजपूत के मंत्रालय का उपयोग वर्षों से लंबित राजस्व प्रकरणों का निराकरण कराने में किया जा रहा है। 

इस दौरान मध्यप्रदेश के पूर्व मंत्री और सहकारिता पुरौधा सुभाष यादव के पुत्र अरुण और सचिन यादव , पूर्व मंत्री इंद्रजीत पटेल के पुत्र कमलेश्वर पटेल 

 ज्योतिरादित्य सिंधिया के बाद पुश्तैनी राजनीतिक विरासत में पूर्व मुख्यमंत्री दिग्विजय सिंह के सुपुत्र जयवर्धन सिंह, केन्द्रीय मंत्री कांतिलाल भूरिया के पुत्र विक्रांत भूरिया, पूर्व मुख्यमंत्री और वर्तमान प्रदेश कांग्रेस अध्यक्ष कमलनाथ के पुत्र नकुलनाथ का उदय हुआ।

 अरुण यादव भी सहकारिता पुरौधा सुभाष यादव द्वारा तैयार की गई राजनीतिक जमीन को बरकरार रख पाने का संघर्ष कर रहे हैं। केंद्रीय मंत्री, प्रदेश अध्यक्ष और राहुल गांधी की गुड लिस्ट में शामिल रहे अरुण कांग्रेस के आंतरिक संघर्ष के चलते  बहुत कुछ खोया है।

ऐसे ही हालात विक्रांत भूरिया के है। युवक कांग्रेस के प्रदेश अध्यक्ष का पद विक्रांत की झोली में तो आ गया लेकिन अपनी उपयोगिता अभी तक सिद्ध नहीं कर पाए हैं। हांलांकि अन्य राजनेता पुत्रों के मुकाबले विक्रांत भूरिया का सक्रिय राजनीति में पदार्पण देर से हुआ है। 

राजनेता पुत्रों में वर्तमान दौर में सार्थकता सिद्ध करने में जयवर्धन सिंह और कमलेश्वर पटेल मेहनत कर रहे हैं पर स्थापित नहीं हो पाए हैं। इस मामले में कमलेश्वर पटेल को पिछड़े वर्ग के विंध्य के प्रतिनिधित्व के तौर पर जरुर आगे बढ़ाया गया है। हांलांकि इसकी एक वजह कांग्रेस का वह राजनीतिक आंतरिक संघर्ष भी है जो अजय सिंह राहुल को नियंत्रित करने के काम भी आता है। वर्तमान दौर में जयवर्धन सिंह और नकुलनाथ अलग अलग तरीके से अपनी उपयोगिता सिद्ध करने में लगे हुए हैं। नकुलनाथ पर्दे के पीछे कमलनाथ का साथ देते हुए जहां राजनीतिक ककहरा सीख रहे हैं वहीं जयवर्धन मैदान में उतरकर अपनी राजनीतिक जमीन तैयार करने का काम कर रहे हैं।

अपनी बुआ मध्यप्रदेश विधानसभा की नेता प्रतिपक्ष रही जमुनादेवी के साथ राजनीतिक सीढियां चढते हुए पूर्व मंत्री उमंग सिंगार ने भी अपनी राजनीतिक जमीन तैयार की है।

भाजपा राजनीति में परिवारवाद का विरोध करते हुए अपने अनुरुप परिभाषाएं गढ़ती रही।

इस दौरान मध्यप्रदेश में भाजपा के मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चौहान के पुत्र कार्तिकेय, केंद्रीय मंत्री नरेंद्र सिंह तोमर के पुत्र रामू तोमर, भाजपा के कद्दावर नेता कैलाश विजयवर्गीय के पुत्र आकाश विजयवर्गीय, मंत्री गोपाल भार्गव के पुत्र अभिषेक भार्गव, भाजपा के शीर्षस्थ नेता रहे कैलाश सारंग के पुत्र विश्वास सारंग, सक्रिय हैं। 

भाजपा के नेता पुत्रों में 

वर्तमान दौर में मध्यप्रदेश के चिकित्सा शिक्षा मंत्री विश्वास कैलाश सारंग इस लिहाज से सफलतम नजर आ रहे हैं। सारंग ने भोपाल में रहते हुए स्थापित नेताओं के बीच पार्टी नेतृत्व के साथ साथ आम कार्यकर्ता और जनता के बीच जगह बनाई है। विश्वास सारंग के बाद राजनीतिक जमीन तैयार करने में अभिषेक भार्गव और सिद्धार्थ मलैया सफल होते हुए नजर आ रहे हैं। 

भाजपा नेता पुत्रों की भीड़ में मैदानी पकड़ बनाने के बाद कार्तिकेय सिंह चौहान ने धीरे से अपने आपको पर्दे के पीछे सीमित कर लिया है। इसकी वजह भाजपा के केंद्रीय नेतृत्व द्वारा मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चौहान को दी गई चेतावनी रही। अब कार्तिकेय पर्दे के पीछे रहकर सोशल मीडिया कैंपेन और बुदनी विधानसभा के आमजन की समस्या दूर करने का काम कर रहे हैं।

पूर्व उपमुख्यमंत्री रहे शिवभानू सिंह सोलंकी के पौत्र राजनीतिक दस्तक दे रहे हैं। पौत्र पूर्व सांसद रहे सूरज भानू सिंह सोलंकी के पुत्र हैं। जो कांग्रेस से आगामी विधानसभा चुनाव में अपनी किस्मत आजमा सकते हैं।

दोनों राजनीतिक दलों के परिवार वाद का अंतर 

कांग्रेस,भाजपा और सामंतों के परिवार वाद में मूलभूत अंतर यह है कि कांग्रेस ने केवल नेता पुत्रों/पुत्रियों को सीधे चुनावों में टिकट दे कर उपकृत किया है जैसा कि सामंत वाद में होता है कि राजा का पुत्र राजा। भाजपा के परिवार वाद में नेता के परिवार जन विशेष रूप से पुत्र/पुत्री पहले वैचारिक रूप से संघ में प्रशिक्षण प्राप्त करते हैं फिर अनुवांषिक संगठनों में काम करते हुए टिकट पाते हैं ।

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गौरव चतुर्वेदी

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