आदिवासी है तो जंगल है

एक विचार Jul 08, 2019

खबर नेशन/Khabar Nation  

किसान संघर्ष समिति कि वरिष्ठ उपाध्यक्ष एड. आराधना भार्गव ने बताया कि वन अधिकार अधिनियम 2006 के तहत निरस्त एवं लम्बित दावों के निराकरण हेतु विशेष ग्राम सभा आयोजित करने सम्बधित पत्र (गौरी सिंह) अपर मुख्य सचिव मध्यप्रदेश शासन पंयायत एवं ग्रामीण विकास विभाग द्वारा दिनांक 06/07/2019 को मध्यप्रदेश के प्रत्येक जिले के कलेक्टर तथा मख्य कार्यपालन यंत्री को पत्र क्रमांक 440/अमुस/2019/22/पं.-1/ प्रेषित किया गया किन्तु आज दिनांक तक ग्राम सभा बुलाने की कोई कार्यवाही ग्रामीण क्षेत्र में नही की जा रही है। 

सुश्री भार्गव ने बताया कि माननीय सर्वोच्च न्यायालय द्वारा प्रचलित याचिका क्रमांक 109/2008 वाइल्ड लाईफ फस्र्ट आॅफ इंडिया विरूद्ध भारत सरकार एवं अन्य में दिनांक 13/02/2018 एवं दिनांक 28/02/2018 में दिये गये निर्देश के अनुक्रम में प्रदेश के वन अधिकार अधिनियम 2006 के तहत सभी 3.60 लाख निरस्त दावों को पुनः परीक्षण विकसित किये गए आॅनलाईन एमपी वनमित्र साॅफ्टवेयर के माध्यम से किया जाना है। 

सुश्री भार्गव ने बताया कि इस सम्बंध में राज्यस्तरीय निगरानी समिति की बैठक दिनांक 27/02/2018 में निर्णय लिया गया है कि समस्त निरस्त दावों को ग्राम सभा को पुनः सम्प्रेषित किया जावे एवं यह सुनिचित किया जावे कि प्रत्येक दावेदार को विधि अनुसार युक्तियुक्त सुनवाई का अवसर देकर उनके दावों का निराकरण हो। सुश्री भार्गव ने बताया कि उपखण्ड स्तरीय समिति व जिला स्तरीय समिति के समक्ष इन प्रकरणों को पुनः रखा जाकर निरस्त दावों को जिला स्तरीय समिति द्वारा ग्राम सभा को रिंमाड किया जाना है। 

सुश्री भार्गव ने बताया कि उक्त प्रकरण में उच्चतम न्यायाल में सुनवाई 24 जुलाई 2019 को लम्बित है। मध्यप्रदेश सरकार को 10 जुलाई 2019 तक सुप्रीम कोर्ट के समक्ष अपना शपथ पत्र प्रस्तुत करना है किन्तु मध्यप्रदेश सरकार इस मामले में गम्भीर दिखाई नही दे रही है, उन्होंने कहा कि छिन्दवाड़ा के सांसाद 07 जुलाई 2019 को छिन्दवाड़ा आये, तथा अशोक लीलेण्ड के कार्यालय में वन ग्राम के सदस्यों के साथ मीटिंग ली किन्तु एक भी शब्द उन्होने सुप्रीम कोर्ट मंे लम्बित प्रकरण के सम्बन्ध में जिक्र तक नही किया। सुश्री भार्गव ने कहा कि मामला सिर्फ आदिवासी का नही है। जंगल में निवास करने वाला व्यक्ति जिसके जीविका उपार्जन का साधन जंगल है और वही धरती माता को जिन्दा रखता है। अगर जंगल में निवास करने वालो को जंगल से बाहर कर दिया जायेगा तो हमारे जंगल बचने वाले नही है। 

उन्होंने कहा कि केन्द्र सरकार वन में निवास करने वाले असली जंगल के मालिक को जंगल से बाहर खदेड़ कर जंगल कार्पोरेट को सौंपना चहाती है, इसका जीता जागता उदाहरण है कि उच्चतम न्यायालय मे प्रकरण की सुनवाई के दौरान केन्द्र सरकार की तरफ से आदिवासीयों की पैरवी करने के लिए कोई अधिवक्ता उपस्थित नही रहा, स्पष्ट है कि केन्द्र सरकार काॅर्पोरेट जगत की कठपुतली बनकर रह गई है। 

उन्होने कहा कि यह लड़ाई सिर्फ आदिवासी की नही बल्कि जल, जंगल, जमीन बचाने की है और भारत के प्रत्येक नागरिक को जंगल बचाने की इस लड़ाई में शामिल होना चाहिए। सुश्री भार्गव ने कहा कि दिनांक 22 जुलाई 2019 को  छिन्दवाड़ा में इस सम्बंध में जिलाधीश छिन्दवाड़ा को ज्ञापन दिया जायेगा।  उन्होने छिन्दवाड़ा के आम नागरिकों से आग्रह किया है कि पर्यावरण के बचाने हेतु दिनांक 22 जुलाई 2019 को 11 बजे जिलाधीश कार्यालय के सामक्ष पहुँचे, तथा अपने जागरूकता का परिचय दे।

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