राष्ट्रीय ध्वज तिरंगे का अपमान और आरएसएस

एक विचार Aug 03, 2022

 

लेखक वरिष्ठ पत्रकार पीयूष बबेले की कलम से

खबर नेशन / Khabar Nation

आर एस एस के अंग्रेजी अखबार ऑर्गेनाइजर्स में संविधान सभा की समिति में सभी दलों और सभी समुदायों को मंजूर तिरंगे को राष्ट्रीय ध्वज के रूप में मान लेने के फ़ैसले की ख़बर पर प्रतिक्रिया जताते हुए 'दि नेशनल फ़्लैग' शीर्षक से 17 जुलाई, 1947 के अपने संपादकीय में लिखा

"हम इस बात से बिल्कुल सहमत नहीं हैं कि राष्ट्रीय झंडा 'देश के सभी दलों और समुदायों को स्वीकार्य होना चाहिए। यह निरी बेवक़ूफ़ी है। झंडा राष्ट्र का प्रतिनिधित्व करता है और देश में केवल एक राष्ट्र है, हिन्दू राष्ट्र, जिसका लगातार चलने वाला 5000 साल का इतिहास है। हमारा झंडा इसी राष्ट्र और केवल इसी राष्ट्र का प्रतीक होना चाहिए। हमारे लिए यह मुमकिन नहीं है कि हम एक ऐसा झंडा चुनें जो सभी समुदायों की इच्छाओं और आकाँक्षाओं को संतुष्ट कर सके। यह बिल्कुल गैरज़रूरी, अनुचित है और पूरे मामले को और उलझा देता है।... हम अपने झंडे को उस तरह नहीं चुन सकते हैं जैसे कि हम एक दर्जी को एक क़मीज़ या कोट तैयार करने लिए कहते हैं...।"

 

इस सम्पादकीय में आगे लिखा गया. अगर हिन्दुस्तान के हिन्दुओं की एक साझी सभ्यता, संस्कृति, रीति-रिवाज और शिष्टाचार, एक साझी भाषा और साझी परम्पराएं थीं तो उनका एक झंडा भी था। एक ऐसा झंडा जो सब से पुराना और महान था बिलकुल उसी तरह जैसे कि वे और उनकी सभ्यता है। हमारे राष्ट्रीय झंडे के बारे में किसी भी फ़ैसले से पहले हमें इस ऐतिहासिक परिप्रेक्ष्य का ध्यान रखना चाहिए, न कि उस ग़ैर ज़िम्मेदारी से जैसे हाल ही में किया जा रहा है। यह सच है कि विदेशी आक्रमणों के कारण जो भयावहता उनके साथ आई. अस्थायी विफलताओं ने हिन्दुओं के राष्ट्रीय ध्वज को अन्धकार में धकेल दिया। लेकिन हम सब इस बात को जानते थे कि एक दिन यह ज़रूर महानता और प्राचीन महिमा को छुएगा और लहरायेगा। इस ध्वज के अद्वितीय

 

रंग में ऐसा कुछ है जो देश के प्राण और आत्मा के लिए, अत्यंत प्रिय है और यह रंग और का अद्भुत रंग है, जो पूर्व की दिशा में धीर किंतु अन्य सूर्योदय के वक्त प्रकट होता है। इसी तरह हमारे पूर्वजों ने विश्व की जीवन-शक्ति देने वाला यह ध्वज सौंपा है। वे सिर्फ अज्ञानी और दुष्ट हैं जो इस ध्वज के अद्भुत आकर्षण, आकी महानता और भव्यता की देख नहीं सकते। यह आकर्षण, महानता और भव्यता आना ही गौरवशाली है जैसा कि स्वयं सूर्य है। यह ध्वज हिंदुस्तान का एकमात्र सच्चा ध्वज बन सकता है। राष्ट्र को यही और एकमात्र यही स्वीकार होगा। जनता की लगातार बढ़ती मांग देखी जा सकती है और संविधान सभा को इसके मदेनजर जनआकांक्षाओं की पूर्ति के लिए सुझाव दिये जाने चाहिए।

 

भारत की स्वतंत्रता से मात्र एक दिन पहले आरएसएस के इसी मुखपत्र 'आर्गनाइजर' (14 अगस्त, 1947) में तिरंगे को शर्मनाक हद तक अपमानित करते हुए लिखा

 

"ये लोग जो क़िस्मत के दांव से सत्ता तक पहुंचे हैं वे भले ही हमारे हाथों में तिरंगे को थमा दें, लेकिन हिंदुओं द्वारा न इसे कभी सम्मानित किया जा सकेगा न अपनाया जा सकेगा। तीन का आंकड़ा अपने आप में अशुभ है और एक ऐसा झण्डा जिसमें तीन तरंग हो बेहद खराब मनोवैज्ञानिक असर डालेगा और देश के लिए हानिकारक होगा।"

 

स्वतंत्रता के बाद तिरंगा झंडा राष्ट्रीय ध्वज बन गया, लेकिन तब भी आरएसएस ने इसको स्वीकार करने से मना कर दिया। गोलवलकर ने 'विचार नवनीत' में राष्ट्रीय झंडे के मुददे पर अपने लेख "पतन ही पतन" में तिरंगे की अवमानना करते हुए लिखा

 

"हमारे नेताओं ने हमारे राष्ट्र के लिए एक नया ध्वज निर्धारित किया है। उन्होंने ऐसा क्यों किया? यह पतन की और बहने तथा नकलचीपन का एक स्पष्ट प्रमाण है। "कौन

 

कह सकता है कि यह एक शुद्ध तथा स्वस्थ राष्ट्रीय दृष्टिकोण है? यह तो केवल एक राजनीति की जोड़जाड़ थी, केवल राजनैतिक कामचलाऊ तात्कालिक उपाय था। यह किसी राष्ट्रीय राष्ट्रीय इतिहास तथा परम्परा पर आधारित किसी सत्य से प्रेरित नहीं था। वही ध्वज आज कुछ छोटे से परिवर्तनों के साथ राज्य ध्वज के रूप में अपना लिया गया है। हमारा एक प्रचीन तथा महान राष्ट्र है, जिसका गौरवशाली इतिहास है। तब, क्या हमारा अपना कोई ध्वज नहीं था? क्या सहस्त्र वर्षों में हमारा कोई राष्ट्रीय चिह्न नहीं था? नि:सन्देह वह था। तब हमारे दिमाग़ों में यह शून्यतापूर्ण रिक्तता क्यों?"

 

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