मध्यप्रदेश में उन्नत खेती बन रही सर्वाधिक लाभकारी व्यवसाय

भोपाल। मध्यप्रदेश में खेती को लाभ का धंधा बनते देख उच्च शिक्षा प्राप्त नौजवान आधुनिक तकनीक से खेती को अपना व्यवसाय बना रहे हैं। लोग सरकारी नौकरी छोड़कर खेती की ओर बढ़ रहे हैं। अब तो वन अधिकार अधिनियम के अंतर्गत पट्टे में मिली जमीन पर भी सदियों से भूमिहीन रहे आदिवासी आत्म-निर्भर बनने के लिये खेती को ही अपना रहे हैं।

बड़वानी के हरीश मुकाती ने इलेक्ट्रानिक्स एण्ड कम्यूनिकेशन ब्रांच में इंजीनियरिंग करने के बाद अपने पिता के खेत की 2 हजार वर्ग मीटर भूमि पर सन् 2016 में पॉली हाउस बनवाया है। इसके लिए उन्हें उद्यानिकी विभाग से मार्गदर्शन और लागत का 50 प्रतिशत 8 लाख रुपये का अनुदान भी मिलाहै। पॉली हाउस में उन्होंने पुणे से लाकर 12 हजार गुलाब के पौधे रोपे हैं। डच वैरायटी के इन गुलाबों से हरीश को साल में 1.56 लाख रुपये का मुनाफा मिल रहा है। साल के चार सीजन में ये पौधे हरीश को तकरीबन 52 हजार फूल देते हैं। पाँच रुपये की दर से बिकने वाले इन फूलों से हरीश को प्रति वर्ष 2.60 लाख रुपये का व्यवसाय मिलता है। एक बार पौधे लगाने से सात सालों तक हरीश को ऐसे ही गुलाब मिलते रहेंगे। 

खरगौन जिले में नागझिरी के बापू सिंह परिहार ने शासकीय नौकरी से वीआरएस लेकर अपने गाँव में उन्नत खेती-किसानी शुरू की है। गोगांवा जनपद कार्यालय में लेखापाल पद से वर्ष 2013 में सेवानिवृत्ति लेने के बाद उन्होंने राष्ट्रीय कृषि विकास योजना की मदद से अपने 12 एकड़ के खेत में अनार का बाग लगाया। उद्यानिकी विभाग की सहायता से बापू सिंह ने ड्रिप सिंचाई की व्यवस्था की है।

बापू सिंह ने अनार की अच्छी फसल मिलने पर खरीफ में मूंग और रबी में चने की अंतरवर्ती फसल लेना भी शुरू कर दिया है। मूंग से उन्हें डेढ़ लाख रुपये से अधिक मुनाफा हुआ है। इस साल चने से भी डेढ़ लाख रुपये के लाभ की उम्मीद है। बापू सिंह कहते हैं 25 साल सरकारी नौकरी करने के बाद आज पुश्तैनी जमीन पर उन्नत तरीके से खेती करने और अपने गाँव में ही रहने का आनंद ही कुछ और है।

सीहोर जिले आष्टा विकासखण्ड के ग्राम कोठरी निवासी गजराज सिंह ने बी.ए करने के बाद अपने पिता के मार्गदर्शन में खेती करना शुरू किया। उन्होंने महसूस किया की खरीफ और रबी फसल की थ्रेशिंग में वह काफी पिछड़ जाते हैं। उन्होंने कृषि विस्तार अधिकारी को अपनी समस्या बतायी, जिन्होंने ट्रैक्टर चलित मल्टीक्रॉप थ्रेशर और उस पर दिए जाने वाले शासकीय अनुदान की जानकारी दी। सरकारी मदद से गजराज सिंह ने 30 हार्स पॉवर क्षमता का मल्टी क्रॉप थ्रेशर खरीदा। थ्रेशर खरीदने के एक माह के अन्दर उनके खाते में सरकारी अनुदान की 72 हजार रुपये की राशि भी पहुँच गई। गजराज सिंह कहते है अब बहुत आराम हो गया हैं। अपनी फसल थ्रेशर से तत्काल निकालने के बाद आस-पास के किसानों को भी 5-6 हजार रुपये तक के किराये पर थ्रेशर दे देता हूँ। इससे मुझे अतिरिक्त आमदनी हो जाती है।

सशक्तिकरण की मिसाल बनी मुरैना जिले के जलालगढ़ की महिला रेखा त्यागी प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी के हाथों दिल्ली में कृषि कर्मण अवार्ड ले चुकी हैं। इन्होंने पति की मृत्यु के बाद खेती को परिवार की आजीविका के लिए अपनाया है।

कृषि विभाग के सहयोग से रेखा ने सघनता पद्धति से बाजरे की खेती की और औसत उत्पादन 20 की जगह 40 क्विंटल तक पहुँचा दिया। इस नवाचार से उन्हें अच्छी आमदनी हुई। उन्होंने अपनी दोनों बेटियों की संपन्न परिवार में शादी कर दी है। बेटे को बी.एससी (कम्प्यूटर) की शिक्षा दिला रही हैं। जिले में अन्य पुरूष किसान भी हैं जिन्हें राज्य स्तरीय पुरस्कार मिल चुका है। राष्ट्रीय पुरस्कार पाने वाली रेखा त्यागी इकलौती महिला किसान हैं। मुरैना जिले के ग्राम करारी के किसान अतर सिंह और बीरमपुरा के राधे शर्मा 50-50 हजार रुपये का राज्य स्तरीय कृषक कर्मण अवार्ड पा चुके हैं। जिले के 35 किसानों को ब्लॉक स्तर का 10-10 हजार रुपये का कृषक कर्मण अवार्ड मिला है।

शहडोल जिले के ग्राम केलमनियाँ के आदिवासी किसान बबनू कोल आज वन अधिकार अधिनियम में मिली भूमि पर खेती करने से आत्मनिर्भर हो गये हैं। बबनू कोल कहते हैं की मेरे पुरखों के पास खेती योग्य जमीन नहीं थी। इसलिये हमेशा ही मजदूरी करके परिवार का भरण-पोषण करना पड़ता था। वर्ष 2012 में हितग्राही सम्मेलन में मुझे मिली जमीन पर मैं धान, अरहर, कोदो आदि उगाकर आज अपने परिवार का अच्छी तरह पालन कर पा रहा हूँ। अपने बाप-दादा की तरह अब मुझे दूसरों पर आश्रित नहीं रहना पड़ता। स्वयं खेती करता हूँ। पैदावार अधिक होने पर मंडी में बेचने से अच्छे पैसे मिल जाते हैं। आज मेरे बच्चे भी अच्छी शिक्षा पा रहे हैं। (खबरनेशन / Khabarnation)
 

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