राजस्व विभाग ने ग़रीबों को कृषि के लिये पट्टे पर दी भूमि पर लगा दिये बड़े झाड़ का जंगल

 

वन विभाग ने कहा हमारे पास नहीं है कोई जानकारी !

अमर धोलिया खबर नेशन Khabar Nation
नरसिंहपुर -  जिले की करेली तहसील के अंतर्गत धरमपुरी गांव में माझी निषाद समाज के लोगों को पट्टे पर मिली कृषि भूमि में एक बड़ा पेंच फंस गया है दरअसल राजस्व विभाग ने जिस भूमि को 1972-73 राजस्व रिकार्ड में कृषि भूमि माना था उस भूमि को ही विभाग ने 2004-05 वन भूमि घोषित कर बड़े झाड़ का जंगल के रूप में दर्ज कर गरीबों को जारी किये गये पट्टे खरिज कर दिये , किन्तु राजस्व विभाग के द्वारा की गई इस पूरी कार्यवाही की जानकारी वनविभाग नरसिंहपुर से सूचना के अधिकार के तहत मांगी गई तो वनविभाग नरसिंहपुर के द्वारा इस सम्बंध में उनके कार्यालय में किसी भी प्रकार की जानकारी का होना निरंक बताया गया, किंतु इस सब कार्यवाही की जानकारी पट्टेधारियों को इसी वर्ष मार्च 2020 में तब लगी जब वनविभाग और राजस्व विभाग ने उक्त भूमि का एकबार फिर बगैर पट्टेधारियों को सूचना दिये नापजोख कर उन्हें वहां से हटने का फरमान जारी कर दिया । मामला  करेली तहसील के अंतर्गत धरमपुरी का है जिसमें की शासन द्वारा गरीब भूमिहीनों को वर्ष 1972 -73 मे कृषि कार्य हेतु पट्टे प्रदान किये गये थे, कृषि भूमि के पट्टे के मामले में मार्च 2020 के महीने में वन विभाग और राजस्व विभाग के अधिकारियों और कर्मचारियों ने पट्टेदारों को बिना पूर्व सूचना दिया नापजोख कर तार फेंसिंग कर दी ,महत्वपूर्ण बात यह है कि धरमपुरी गांव के इस मामले में राजस्व रिकार्ड के अनुसार कई पेंच हैं । धरमपुरी गांव के पटवारी हल्का नम्बर 7 के तहत वनविभाग की भूमि के जो खसरा नम्बर 25 जुलाई 1984 के मध्यप्रदेश के गजट नोटिफिकेशन में जारी किये गये थे उस सूची में इन गरीबों के पट्टे की भूमि के खसरा नम्बर जो थे वह उस गजट नोटिफिकेशन में प्रकाशित न होने के बाद भी राजस्व विभाग और वनविभाग ने इन गरीबों की भूमि पर अपना कब्जा कैसे बता दिया और राजस्व विभाग के पास समस्त राजस्व रिकार्ड जिसमें कुछ लोग वर्तमान में बतौर भू स्वामी हैं तो कुछ लोगों के पहले के खसरा नम्बर बदल कर उन्हें दूसरे खसरा नम्बर पर बतौर भू स्वामी राजस्व रिकार्ड में दर्ज कर दिया है तो कुछ लोगों के नाम राजस्व रिकार्ड से नदारत हैं किन्तु वर्तमान में उक्त सभी अपनी अपनी भूमि पर ही काबिज हैं और उक्त भूमि पर कृषि कर अपने परिवार का भरणपोषण कर रहे हैं  । इस मामले में सबसे गौर करने लायक महत्वपूर्ण बात यह है कि वन विभाग द्वारा वर्ष 1984 के गजट नोटिफिकेशन के बाद उक्त भूमि पर अपना कब्जा बताया जा रहा है इस सम्बंध में मिली जानकारी के अनुसार  वन विभाग उक्त भूमि पर नापजोख कर अपना सीमांकन पूर्व में करवा चुका था और ग्रामीणों के बताये अनुसार वनभूमि के सीमा मुनारों का निर्माण वर्ष 2001 में करवा भी दिया गया था ऐसे में आखिर 19 साल बाद एक बार फिर वर्ष 2020 में नापजोख कर ग़रीबों को पट्टे पर मिली भूमि पर जबरन कब्जा कर तार फेन्सिंग करके वह इन गरीबों को पट्टे पर मिली भूमि जिस पर वह पिछले 40-45 साल से अपने परिवार का भरणपोषण कर रहे हैं उसे वनविभाग क्यों छीनना चाहता है और अब इस पूरे प्रकरण में क्या निर्णय होगा यह देखने वाली बात होगी ।

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