सिंधिया की चाल.... शिवराज बेहाल.?


मंत्रिमंडल विस्तार की तैयारियों में फूटे भाजपा में नाराजगी के सुर

कुछ ने दिल्ली, कुछ ने भोपाल में वरिष्ठ नेताओं से जताई नाराजगी

कई दिल में पालकर बैठ गये
कुछ ने दी इस्तीफे तक की धमकी
खबर नेशन / Khabar Nation
मध्यप्रदेश मंत्रिमंडल के पहले विस्तार के साथ ही भारतीय जनता पार्टी में नाराजगी के सुर फूटना शुरू हो गये हैं । मंत्रिमंडल में आने से छूटे कुछ विधायकों ने जहां दिल्ली में वरिष्ठ नेताओं के समक्ष अपनी उपेक्षा का इजहार किया तो कई विधायकों ने भोपाल में मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चौहान और भाजपा प्रदेशाध्यक्ष विष्णु दत्त शर्मा के समक्ष अपनी पीड़ा का इजहार किया । कई विधायक अपनी पीड़ा को मौका आने पर निकालने का मन बना रहे हैं ।
गौरतलब है कि मध्यप्रदेश के मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चौहान को मुख्यमंत्री पद की शपथ लेने और भाजपा की सरकार बनने के सौ दिन पूरे हो रहे हैं । मुख्यमंत्री शिवराज के शपथ लेते ही देश में कोरोना वायरस संक्रमण के चलते लॉक डाउन लगा दिया गया था । मध्यप्रदेश में इसके चलते मंत्रिमंडल गठन नहीं किया गया । लगभग एक माह बाद पार्टी के वरिष्ठ नेताओं की मंत्री बनने की छटपटाहट सामने आने लगी । शिवराज ने मंत्रिमंडल का गठन तो किया लेकिन सिर्फ पांच मंत्री ही बनाए । दो मंत्री सिंधिया गुट से तुलसी सिलावट और गोविंद सिंह राजपूत को बनाया गया । भाजपा के तीन मंत्री नरोत्तम मिश्रा,कमल पटेल और मीना सिंह को बनाया गया ।
मंत्रिमंडल के छोटे विस्तार से शिवराज और भाजपा संगठन ने बड़े नेताओं की महत्वाकांक्षाओं को साधने का प्रयास तो किया ही पार्टी के भीतर संतुलन बनाए रखने की कवायद भी शुरू कर दी । दो माह में लगभग कभी कोरोना संक्रमण से राजभवन के कंटेनमेंट जोन बनाए जाने तो कभी राज्यसभा चुनाव की आड़ को लेकर तीन चार बार मंत्रिमंडल विस्तार की कवायदों पर केन्द्रीय नेतृत्व अड़ंगे डालने का काम करता रहा । आज भी मंत्रिमंडल विस्तार को एक सप्ताह की मैराथन बैठकों के बाद अंतिम रूप दिया गया । बताया जा रहा है कि भारतीय जनता पार्टी के मजबूत रहने के दौर में पहली बार केन्द्रीय नेतृत्व को साधते साधते प्रधानमंत्री को भी हस्तक्षेप करना पड़ गया ।
सिंधिया की जिद या वज़न ?
मध्यप्रदेश में भाजपा की सरकार मतदाताओं ने अपदस्थ कर दी थी । जिस भरोसे और विश्वास के साथ कांग्रेस के 114 विधायकों को मतदाताओं ने चुनकर भेजा था उस विश्वास के एक बड़े हिस्से 19 विधायकों पर अपना हक जताते हुए कांग्रेस के कद्दावर नेता ज्योतिरादित्य सिंधिया ने खंड खंड करते हुए सरकार गिराने में अहम भूमिका निभा डाली । सिंधिया की ताकत में तीन अन्य कांग्रेस के विधायक ताकत बनकर खड़े हो गए । भाजपा ने मौके का फायदा उठाते हुए मध्यप्रदेश में पिछले दरवाजे से सरकार बना ली । मंत्रिमंडल में सिंधिया का वजन दिख रहा है । उन्होंने अपने गुट के मंत्री तो बनवाएं ही भाजपा के कई कद्दावर नेताओं के भविष्य पर ताला भी जड़ दिया । जो शिवराज चुनाव पूर्व माफ करो महराज का नारा दे रहे थे वे वास्तव में अब माफी मांगते नजर आ रहे हैं ।

वजह सिंधिया की जिद रही सिंधिया ने सबसे पहली जिद अशोकनगर जिले के मुंगावली से कांग्रेस विधायक रहे बृजेन्द्र सिंह यादव को मंत्री बनवाने की रही । सिंधिया इस माध्यम से तीन यादव बहुल सीटों पर समीकरण साधने के साथ साथ भाजपा सांसद कृष्ण पाल सिंह यादव और भाजपा विधायक गोपीलाल जाटव को एक बार फिर नीचा दिखाने में सफल रहे । गौरतलब है कि कृष्ण पाल सिंह यादव पूर्व में सिंधिया समर्थक थे और लोकसभा चुनाव में भाजपा से मैदान में उतर कर सिंधिया को पराजित कर चुके हैं । बृजेन्द्र यादव ने कांग्रेस शासन काल में कृष्ण पाल सिंह यादव और उनके पुत्र के खिलाफ जाति प्रमाण पत्र का मामला भी दर्ज कराया था । कृष्ण पाल सिंह यादव ने मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चौहान से बृजेन्द्र यादव को मंत्रिमंडल में लिए जाने को लेकर विरोध भी दर्ज कराया और इस्तीफा देने की धमकी भी दे डाली पर शिवराज ने इसे अनसुना कर दिया ।
गोपीलाल जाटव का नाम मंत्री बनने वाले दावेदारों में तेजी के साथ लिया जा रहा था । जाटव ने राज्यसभा चुनाव में सिंधिया के खिलाफ दिग्विजय सिंह को वोट दे दिया । बताया जा रहा है कि जाटव ने अशोकनगर में सिंधिया समर्थकों द्वारा किए गए अपमान का बदला लिया था ।

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