सहकारिता और मंडी के चुनाव टलने के आसार

बैकडोर से अपेक्स बैंक पर शिवराज ने कराया अपने इलेक्शन मैनेजर का कब्जा
 

खबरनेशन / Khabarnation
 

मध्यप्रदेश में सहकारिता और कृषि उपज मण्डियों के चुनाव टलने के आसार बन गये हैं। सोची समझी रणनीति के तहत पहले सहकारिता के चुनाव टाले गये और अब अपेक्स बैंक जैसी शीर्ष संस्था पर कब्जा करा दिया गया।

गौरतलब हैं कि मध्यप्रदेश की 4500 प्राथमिक सहकारी साख कमीटियों के चुनाव विगत 7 माह से टाले जा रहे हैं। नियमानुसार इन समीतियों का कार्यकाल समाप्त होने के तीन माह पहले चुनाव प्रक्रिया शुरू कर दी जाना चाहिए थी जो नहीं की गई। इन कमीटियों के माध्यम से प्रदेश के 77 लाख किसान सीधे-सीधे जुड़े हुए हैं। सहकारी संस्थाओं में चुनाव के लिए सरकार ने मध्यप्रदेश राज्य सहकारी निर्वाचन प्राधिकरण बनाया हुआ हैं। जिसमें निर्वाचन प्राधिकारी के तौर पर रिटायर्ड आई.ए.एस. अधिकारी प्रभात पाराशर की नियुक्ति की गई हैं। सरकार ने लंब चुनाव के दौरान सहकारिता एक्ट में नया प्रावधान कर दिया था कि जो सदस्य संचालक बनने के लिए पात्र हो उन्हें प्रशासक बना दिया जाए लेकिन सरकार ने अपने ही नियम का पालन ना करते हुए सभी प्राथमिक सहकारी समितियों में बैंक के अधिकारी और कर्मचारियों को प्रशासक नियुक्त कर दिया।

इसी के साथ ही सरकार ने अटल बिहारी वाजपयी के प्रधानमंत्री रहने के दौरान वैद्य नाथन कमीटी के साथ किये गये एग्रीमेंट का भी उल्लंघन कर दिया। वैद्य नाथन कमीटी में प्रदेश की डूब रही सहकारी बैंको को 2 हजार करोड़ रूपये का विशेष पैकेज दिया था। इस पैकेज की प्रमुख शर्त थी कि सरकार सहकारी संस्थाओं में स्वतंत्रता बनाये रखेगी और अधिपत्य का प्रयास नहीं करेगी।
 

इसी के साथ ही सरकार ने चुनाव कराने का आश्वासन भी दिया था। एक तरफ सरकार अपेक्स बैंक जैसी संस्था पर प्रशासक नियुक्त कर रही हैं और दूसरी तरफ मध्यप्रदेश राज्य सहकारी निर्वाचन प्राधिकरण सरकार के निर्देशों का इंतजार कर रही हैं कि चुनाव करायें। निर्वाचन प्राधिकारी प्रभात पाराशर के अनुसार चुनाव की तैयारिया पूर्ण हैं लेकिन सरकार ने नियमों में किसी संशोधन के बहाने चुनाव में अडंगा लगा रखा हैं। 
 

भाजपा के सहकारी क्षेत्र से जुड़े राजनैतिक सूत्रों का कहना हैं कि अब सरकार चुनाव नहीं करवायेगी क्योंकि 7 माह बाद मध्यप्रदेश में विधानसभा चुनाव होना हैं और सरकार किसी भी तरह की रिस्क नहीं ले सकती।  इसी के साथ ही कृषि उपज मंडियों के चुनाव भी टल सकते हैं।
 

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