सिंधिया की सहमति से बदले जाएंगे प्रत्याशी
भाजपा कार्यकर्ताओं के बीच नहीं हो पा रही स्वीकार्यता
राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ , भाजपा संगठन , और इंटेलिजेंस की रिपोर्ट में खतरा
खबर नेशन / Khabar Nation
मध्यप्रदेश में 24 विधानसभा क्षेत्रों में होने वाले उपचुनाव में भारतीय जनता पार्टी कुछ चेहरों को बदल सकती है । भाजपा संगठन के सूत्रों से मिली जानकारी के अनुसार इसकी सबसे बड़ी वजह सिंधिया गुट के प्रत्याशियों की भाजपा कार्यकर्ताओं में स्वीकार्यता नहीं हो पाना है । जिसके चलते सत्ता और भाजपा संगठन को खामियाजा भुगते जाने की आशंका नजर आ रही है ।
गौरतलब है कि मध्यप्रदेश में कांग्रेस के अंतरकलहों से उपजे हालात या व्यक्तिगत महत्वाकांक्षा को लेकर मार्च में कांग्रेस के कद्दावर नेता रहे ज्योतिरादित्य सिंधिया ने कांग्रेस छोड़ भारतीय जनता पार्टी का दामन थाम लिया । सिंधिया के साथ कांग्रेस के इक्कीस और एक निर्दलीय विधायक ने इस्तीफा दे दिया । कांग्रेस के मुख्यमंत्री कमलनाथ की सरकार अल्पमत में आ गई और सरकार गिर गई । मध्यप्रदेश में भारतीय जनता पार्टी ने विधायक दल के बहुमत के साथ सरकार बना ली । सिंधिया गुट के इस्तीफा दे चुके विधायक भाजपा में शामिल हो गए । सूत्रों के अनुसार सिंधिया और उनके समर्थक मंत्री विधायकों को भाजपा के आला नेताओं ने यह भरोसा दिलाया हुआ था कि सत्ता में आते ही उनके गुट के जो मंत्री कांग्रेस सरकार में थे उन्हें भाजपा भी मंत्री बनाएगी और दो तीन मंत्री एक्स्ट्रा तौर पर बनाएगी । इसी के साथ ही सिंधिया को राज्यसभा और केंद्र सरकार में मंत्री एवं सभी पूर्व विधायकों को उपचुनाव में प्रत्याशी बनाएगी।
सूत्रों के अनुसार इंटेलिजेंस और भाजपा एवं संघ संगठन से मिल रहे संकेतों के अनुसार लगभग दस पूर्व विधायकों की क्षेत्र में स्थिति खराब नजर आ रही है ।
पार्टी के आला नेता के अनुसार भाजपा नेताओं को जिस तरह से अपेक्षा थी कि कांग्रेस में जमीनी स्तर के कार्यकर्ता पार्टी छोड़ देंगे वैसे अपेक्षाजनक परिणाम नहीं मिले। मंत्री तक के साथ सीमित मात्रा में कांग्रेस कार्यकर्ताओं ने भाजपा संगठन ज्वाइन किया ।
संगठन के बड़े नेताओं को यह जानकारी भी मिली है कि भाजपा कार्यकर्ताओं और कांग्रेस छोड़कर आए विधायकों के बीच तालमेल नहीं बन पाया है और एक गहरी खाई भरने की जरूरत है । प्रमुख तौर पर इसके दो कारण नजर आ रहे हैं एक तो भाजपा कार्यकर्ताओं ने जिस व्यक्ति के राजनीतिक कार्यो का शिद्दत के साथ विरोध किया है उसे कैसे समर्थन दिया जाए । दूसरा वर्तमान में और भविष्य में अगर सत्ता ने सिर्फ कांग्रेस से आयातित प्रत्याशी की बात को ही तव्वजों दी तो उन्हें इसका राजनीतिक खामियाजा भुगतना पड़ सकता है ।
एक महत्वपूर्ण कारण और है कि डेढ़ साल सत्ता में रहने के दौरान सिंधिया समर्थक विधायकों ने जिस तरह से क्षेत्र में राजनीतिक बदले की भावना, भ्रष्टाचार जबरन वसूली , और दंभ पूर्ण व्यवहार किया है उससे उपजी एंटी इंकंबेंसी विपरीत असर डाल सकती है ।
सूत्रों के अनुसार क्षेत्र में इन पूर्व विधायकों के पैसा लेकर सरकार गिराने के आरोप से विपरीत माहौल बना हुआ है । जिसकी काट ना भाजपा ढूंढ पाई और ना ही ये संभावित प्रत्याशी ।
पार्टी के आला नेताओं के अनुसार संघ की रिपोर्ट , इंटेलिजेंस और भाजपा संगठन की रिपोर्ट के आधार पर विनिंग कैंडिडेट तय किए जाने की परंपरा रही है । जिसे दिल्ली से अनुमति मिलने के बाद सूची जारी की जाती रही है । उन्होंने कहा कि इस बार परिस्थिति भिन्न है क्योंकि जब रिस्क उठाकर कांग्रेस विधायक त्याग की भावना से भाजपा में शामिल हुए हैं तो उनका प्रत्याशी बनाए जाने पर स्वभाविक हक बनता है और ऐसी स्थिति में उन्हें टिकट दी जाना चाहिए । उन्होंने इस बात को भी स्वीकारा कि हर राजनीतिक दल जीतने वाले को ही प्रत्याशी बनाता है ऐसी स्थिति में कमजोर प्रत्याशी के स्थान पर सिंधिया से सहमति लेकर प्रत्याशी बदला जाना उचित होगा । उन्होंने इस बात से इंकार नहीं किया कि ऐसी परिस्थिति में भी सिंधिया गुट के ही किसी व्यक्ति को प्रत्याशी बनाया जा सकता है ।