और कमलनाथ ने चुन लिए कांटे....


मध्यप्रदेश मंत्रिमंडल विस्तार पर विशेष
आखिर क्यों नहीं चुन पांए मनमाफिक कैबिनेट ?

खबर नेशन / Khabar Nation

मध्यप्रदेश मंत्रिमंडल का गठन कर मुख्यमंत्री कमलनाथ ने अपनी भविष्य की राजनीति के लिए कांटों का चयन कर लिया है। मंत्रिमंडल गठन में सिर्फ और सिर्फ दूसरी बार से अधिक बार जीते विधायकों को मंत्रिमंडल में शामिल कर क्राईटयेरिया पूरा करने का प्रयास किया है। जिसके चलते सिर्फ निर्दलीय विधायक प्रदीप जायसवाल को मंत्रिमंडल में शामिल किया गया है । समर्थन देने वाले अन्य निर्दलीय विधायक जहां पहली बार चुनकर आए हैं। वहीं बसपा और सपा ने बिना शर्त समर्थन दिया था जिसके चलते सपा के एक और बसपा के दो विधायकों को मंत्रिमंडल से बाहर रखा गया है।
मुख्यमंत्री कमलनाथ की भविष्य की राजनीति के चुने गए कांटे कांग्रेस के भीतर के ही हैं। कमलनाथ जाति, क्षेत्र , वर्ग में संतुलन नहीं बना पाए । इसी के साथ ही कांग्रेस की गुटीय राजनीति में संतुलन साधने में असफल रहे है ।
  मध्यप्रदेश में कांग्रेस की आठ विधायक जीतकर आई है जिनमें से दो  महिला विधायकों को ही मंत्री बनाया गया है। वरिष्ठ नेता के रिश्तेदारों को मंत्री बनाने और क्षेत्रीय संतुलन साधने के चक्कर में तीन वरिष्ठ महिला विधायकों को मंत्रिमंडल में शामिल नहीं किया गया है । इसके चलते आदिवासी वर्ग की तीन वरिष्ठ महिला विधायकों की उपेक्षा कर दी गई ।
अगर क्षेत्र के आधार पर बात करें तो यहां भी असंतुलन नजर आ रहा है। ग्वालियर चंबल से जहां 27 विधायकों में से छह मंत्री बनाए गए है । वहीं विंध्य से मात्र एक विधायक को ही मंत्री बनाया गया है । हालांकि विंध्य से मात्र तीन विधायक ही चुनकर आए हैं । जिसके चलते यह माना जा रहा था कि विंध्य के कद्दावर नेता को मंत्रिमंडल में शामिल कर भविष्य में कांग्रेस को मजबूत करने का काम किया जाएगा । इसी प्रकार मालवा निमाड़ से 37 विधायकों के जीतने के बाद मात्र नौ को ही मंत्री बनाया गया है। बुंदेलखंड में कांग्रेस के नौ विधायकों के बाबजूद तीन मंत्री बनाए गए है। 
महाकौशल में 28 जीते विधायकों में से मात्र चार मंत्री बनाए गए है । वहीं भोपाल होशंगाबाद से 13 विधायक जीतने के बावजूद पांच को मंत्री बनाया गया है । यह क्षेत्रीय असंतुलन का सबसे बड़ा उदाहरण है । अनुसूचित जाति और अनुसूचित जनजाति वर्ग को भी जनसंख्या के हिसाब से प्रतिनिधित्व नहीं दिया गया है।
सिंधिया-दिग्विजय के गुट को साधने के चक्कर में क्षेत्र,जाति और वर्ग के साथ साथ अन्य गुट और योग्यता की उपेक्षा कर दी गई ।
राजनीतिक विश्लेषक संभावना जता रहे हैं कि भविष्य में कमलनाथ को राजनीतिक संकट का सामना करना पड़ सकता है ।

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