कृषि से आमदनी बढ़ाने के लिये किसानों ने अपनाई आधुनिक तकनीक

भोपाल। प्रदेश में किसान अब अपनी आय बढ़ाने के लिये कृषि विशेषज्ञों की मदद से नई-नई तकनीक अपना रहे हैं। इससे किसानों के जीवन-स्तर में काफी बदलाव आया है। पन्ना जिले के ग्राम अहिरगुवा के किसान अग्निमित्र शुक्ला के पास तीन हेक्टेयर सिंचित रकबा हैं। इस वर्ष अग्निमित्र को दो एकड़ में चने का लगभग दो गुना उत्पादन मिला है। उन्होंने बताया कि पूर्व वर्षों की तुलना में 18 से 20 क्विंटल प्रति हेक्टेयर के स्थान पर 34 क्विंटल प्रति हेक्टेयर चने का उत्पादन प्राप्त हुआ है। किसान अग्निमित्र बताते हैं कि वे पिछले 7-8 वर्षों से चने की खेती कर रहे हैं।

उन्होंने अपने खेत में विभिन्न किस्मों के चने की बोनी की। इन सबके बावजूद उन्हें कभी भी 18 से 20 क्विंटल प्रति हेक्टेयर से अधिक चने का उत्पादन प्राप्त नहीं हुआ। इस संबंध में उन्होंने वरिष्ठ कृषि विकास अधिकारी से चर्चा की।  कृषि विभाग की चना क्‍लस्टर प्रदर्शन योजना के अंतर्गत अग्निमित्र को चने का जे.जी.-63 प्रजाति का 60 किलो बीज दिया गया। उन्होंने इस बीज को दो एकड़ में बोया, कृषि अधिकारियों की सलाह पर खेत में मृदा स्वास्थ्य कार्ड की अनुशंसा पर उर्वरक भी डाला। इससे बीज का अंकुरण और पौधों की बढ़त भी अच्छी हुई। कृषि की इस तकनीक को अपनाने से इन्हें 34 क्विंटल प्रति हेक्टेयर चने का उत्पादन प्राप्त हुआ है। आज वे इस तकनीक को अपने किसान साथियों को बताते हैं तो वे आश्चर्यचकित रह जाते हैं। अब क्षेत्र के अन्य किसानों ने भी चने की जे.जी.-63 प्रजाति को अपनाने का मन बना लिया है।

खरगोन जिले की कसरावद तहसील के किसान महेंद्र पाटीदार ने उद्यानिकी विभाग के सहयोग से नींबू का बगीचा तो लगा लिया, लेकिन पानी की समस्या ने उनकी चिंता बढ़ा दी थी। ऐसे समय में नव-विवाहित महेंद्र ने अपनी पत्नि को साथ लेकर, बैलगाड़ी पर कोठी बाँधकर एक-एक पौधे को कढ़ी धूप में पानी देकर सिंचाई की पाँच वर्षो के बाद नींबू को पहली फसल आई। पहली फसल से कोई खास मुनाफा तो नहीं हुआ, मगर अंतरवर्ती फसलों कपास, गेहूँ और सोयाबीन के सहारे उनको मुनाफा होता रहा। इसके लगातार बाद 5 वर्षो से उन्हें मुनाफा ही मिल रहा है। अब अग्निमित्र क्षेत्र के प्रतिशील किसान की श्रेणी में भी शामिल हो गये है।

उद्यानिकी विभाग से किसान महेंद्र को एक हेक्टेयर में मल्चिंग शीट के लिए 10 हजार रुपए की सब्सिडी भी मिली। इसके बाद महेंद्र ने मल्चिंग विधि से तरबूज की खेती की और एक लाख 29 हजार 600 रुपए खर्च कर 5 लाख 70 हजार 567 रुपए का शुद्ध मुनाफा लिया। महेंद्र ने मात्र 80 दिनों की तरबूज की फसल में 75 हजार 960 किलोग्राम तरबूज की फसल ली। कृषि और उद्यानिकी विभाग के जानकार बताते हैं कि निमाड़ में मल्चिंग विधि से तरबूज की फसल सफलतापूर्वक लेने वाले महेंद्र पहले किसान हैं। अब महेंद्र कृषि की नई-नई तकनीकों को अपनाकर अलग-अलग प्रयोग करने में जुट गए हैं। (खबरनेशन)

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