खेती के साथ पशु-पालन भी बना लाभकारी व्यवसाय

भोपाल। प्रदेश में किसान अपनी आय बढ़ाने के लिये खेती के साथ-साथ पशु-पालन गतिविधियों से भी जुड़ रहे हैं। इन गतिविधियों से किसानों की आय में अप्रत्याशित वृद्धि परिलक्षित होने लगी हैं।

दूध व्यवसाय से खेती को सफल व्यवसाय बनाया- रीवा जिले के गुढ़ तहसील के ग्राम मुढ़िया के किसान राजमणि अपनी तीन एकड़ पैतृक भूमि में परम्परागत खेती करते आ रहे हैं। उन्होंने देशी नस्ल की एक गाय और एक भैंस पाल रखी थी। इनसे इन्हें महीने भर में चार हजार रूपये की आमदनी ही हो पाती थी। राजमणि की पशुपालन विभाग के अधिकारियों से चर्चा में आचार्य विद्यासागर गौ-संवर्द्धन योजना की जानकारी मिलीं। इसके बाद उनका 6 लाख रूपये का प्रकरण बैक से मंजूर हुआ। ऋण राशि के साथ उन्हें डेढ़ लाख रूपये का अनुदान भी मिला। राजमणि ने तीन मुर्रा नस्ल की भैसें खरीदी और वैज्ञानिक तरीके से पशु शेड का निर्माण भी कराया। इसके बाद उन्हें दूध बिक्री से आमदनी होना शुरू हो गयी। वे नियमित रूप से बैंक किस्त चुका रहे हैं। उन्होंने दूध की बिक्री से हुए मुनाफे से दो और भैसें खरीद कर डेयरी का विस्तार कर लिया हैं। राजमणि घर पर ही पशुधन से मिलने वाली गोबर खाद भी तैयार कर रहे हैं। इससे उन्हें रासायनिक खाद में लगने वाली राशि की बचत भी हुई हैं।

नंदी शाला योजना से लाभ उठाकर देसी गाय को गिर गाय बनाया : देवास जिले के ग्राम अतवास के किसान अनिल राठी ने पशुपालन विभाग की नंदीशाला योजना से प्राप्त सांड से देसी गाय की नस्ल को गिर गाय की नस्ल में परिवर्तित कर लिया हैं। अनिल राठी का कहना हैं कि गौ-वंश के नस्ल सुधार से उन्हें अतिरिक्त उत्पादन होगा। 

अनिल खेती के साथ पशुपालन भी करते हैं। उन्हें पशु चिकित्सा विभाग से गोवंश के नस्ल सुधार के लिये नंदी शाला योजना से एक गिर नस्ल का सांड लिया। इसमें 80 प्रतिशत अनुदान और 20 प्रतिशत खुद का योगदान था। योजना की कुल राशि 17 हजार 500 रूपये थी। अनिल राठी ने गिर नस्ल के सांड से अपनी देसी गाय को फलाया। इससे संतति में गिर नस्ल के जीन आ गए। पहले उन्हें प्रतिदिन डेढ़ से 2 लीटर दूध ही देसी गाय से प्राप्त होता था किंतु गिर नस्ल की गाय से दुग्ध उत्पादन तीन गुना हो गया। उनका अनुमान हैं कि नस्ल सुधार से उन्हें साल भर में 3000 लीटर दूध मिलने लगेगा।

बकरी पालन व्यवसाय से सौरभ को मिला लाभ:बकरी बालाघाट जिले के कटंगी तहसील के ग्राम सिरपुर के युवा सौरभ ठाकरे ने बकरी पालन का व्यवसाय अपनाकर कम समय में ही अधिक लाभ कमाने का जरिया हासिल कर लिया हैं। सौरभ आज खुश हैं कि उसका बकरी पालन करना सही कदम साबित हुआ हैं। सौरभ ठाकरे की पशु पालन में पहले से ही रूचि रही हैं। उसके घर में खेती के साथ ही भैंस एवं गायें पाली जाती हैं। पशुपालन विभाग ने जब बताया कि बकरी पालन से कम समय में अधिक लाभ कमाया जा सकता हैं तो सौरभ ने बकरी पालन के लिये बैंक से ऋण लिया। मध्यप्रदेश राज्य पशुधन एवं कुक्कुट विकास निगम से मिली उन्नत नस्ल की 10 बकरियों से 11 बच्चे हो गये। अब सौरभ के पास 22 बकरियाँ हो गई हैं। सौरभ अपनी पढ़ाई के साथ ही बकरी पालन का काम भी करता हैं। सौरभ ने बताया कि भैंस और गाय की तुलना में बकरियों से कम समय में आय दोगुनी हो रही हैं। (खबरनेशन / Khabarnation)

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