यूं ही चमकते रहना...

खेल Sep 01, 2021

 

पैरालंपिक खिलाड़ियों को सुविधा बढ़ाएं जाने की जरूरत

नाज़नीन नकवी/खबर नेशन/Khabar Nation
( लेखक मध्यप्रदेश के रीजनल चैनल IND24 में एसोसिएट एडिटर हैं )

एक कहावत प्रचलन में है खेलोगे कूदोगे बनोगे खराब..पढ़ोगे लिखोगे बनोगे नवाब...लेकिन बदलते वक्त के साथ जैसे धीरे-धीरे परिभाषाएं बदलती गई। भारत में खेल प्राचीन काल से आधुनिक काल तक परिवर्तन की विभिन्न अवस्थाओं से गुजरा...लेकिन खिलाड़ी की खेल भावना किसी तरह की बाधा को नहीं मानती। उसका जोश काफी है हर ऊंचाई को छूने के लिए..उड़ान भरने के लिए..और तब ही चमकते हैं विश्व के पटल पर नीरज और सुमित अंतिल और अवनि लखेरा जैसे सितारे। पैरालंपिक्स के इतिहास में भारत को शूटिंग में पहला स्वर्ण पदक मिला।
ओलंपिक हो या पैरालंपिक दोनों ही जगह भारत के भाले की उड़ान दिखी। दुनिया ने देखा खेलों में भारत का दम। 

भाले की उड़ान..भारत की उड़ान 

अब तक ओलंपिक खेलों में यह भारतीय खिलाड़ियों को सर्वश्रेष्ठ प्रदर्शन रहा। टोक्यो ओलंपिक में भारतीय खिलाड़ियों ने अच्छा प्रदर्शन करते हुए 7 मेडल अपने नाम किए... नीरज चोपड़ा ने इतिहास रचते हुए देश को पहला गोल्ड मेडल दिलाया..तो वही टोक्यो पैरालंपिक में भाला फेंक में सुमित अंतिल ने गोल्ड मेडल जीता। नया विश्व रिकॉर्ड भारत के सुमित अंतिल ने टोक्यो पैरालंपिक में बनाया। शानदार प्रदर्शन करते हुए भाला फेंक क्लास F-64 वर्ग में गोल्ड मेडल अपने नाम कर लिया। देश का परचम लहराने के बाद देश और प्रदेश की सरकारों ने खिलाड़ियों को खूब प्रोत्साहित किया। लेकिन क्या ये उत्साहवर्धन,ये प्रोत्साहन युवाओं को औऱ पहले मिलना चाहिए? 

मिले सरकार का साथ..तब बनेगी बात

सरकार के साथ से आशय स्पष्ट कर दूं कि खेलों में जीत के बाद खिलाड़ी की पीठ थपथपाना जितना जरूरी है। उतना ही जरूरी है कि सरकारें खिलाड़ियों के खेल के साथ साथ बेहतर सुविधाओँ पर ध्यान दें। बेहतर स्टेडियम, हॉस्टल, किट और कोच के साथ डाइट का भी ख्याल रखा जाए। ऐसा नहीं कि सरकारें इस ओर ध्यान नहीं दे रही..लेकिन उन्हें बेहतर करने की दरकार अब भी है। बात मध्यप्रदेश की करें तो अलग अलग 5 स्टेडियम हैं। लेकिन दिव्यांग खिलाड़ियों की ओर फिलहाल सरकार का ध्यान नहीं। सुमित अंतिल दूसरों खिलाड़ियों के लिए प्रेरणा बनें, लेकिन एक खिलाड़ी को चाहिए अपनी प्रतिभा को निखारने के लिए माकूल संसाधन। 
जब बात पैरा एथलीट या खिलाड़ियों की हो, तो बात हौसलों के भी ऊपर की है. बात सिर्फ चुनौतियों का सामना करने की नहीं है. बात मेहनत करने की भी नहीं है.. दरकार है बेहतर संसाधनों की भी। जिसकी पूर्ति सरकार के माध्यम से होना चाहिए। बहरहाल परिवार और सरकार दोनों इस बारें में सोचे। तब शायद हम भी पदक तालिका में नंबर वन पर चमके।

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