चुनाव दर चुनाव पिछड़ता भाजपा का इलेक्शन मैनेजमेंट

 

2018 के परिणामों से भी सबक नहीं सीखा

गौरव चतुर्वेदी /खबर नेशन/ Khabar Nation

प्रबंधन की माहिर भारतीय जनता पार्टी में चुनाव दर चुनाव मैनेजमेंट की देर से शुरुआत होती रही। 2018  में चुनाव परिणाम भाजपा के खिलाफ आए। इसके बावजूद भाजपा ने सबक नहीं सीखा।

कांग्रेस के शासनकाल में तत्कालीन मुख्यमंत्री दिग्विजय सिंह का एक सार्वजनिक बयान काफी चर्चित हुआ था कि चुनाव काम से नहीं मैनेजमेंट से जीते जाते हैं। इस बयान की सार्वजनिक तौर पर तीखी आलोचना भी हुई थी। सिर्फ भाजपा ही नहीं कांग्रेस के कई आला नेताओं ने भी इस बयान को लेकर दिग्विजय सिंह की भरपूर आलोचना की थी। इसके बावजूद हकीकत यही है कि चुनावी मैनेजमेंट के सहारे ही चुनाव जीते जा सकते हैं। इस मामले में आज भी भाजपा सबसे बेहतर राजनीतिक दल माना जाता है। इसके बाद भी 2018 विधानसभा चुनाव परिणाम विपरीत रहना सोचने पर विवश कर रहा है।

भाजपा संगठन में इलेक्शन मैनेजमेंट से जुड़े सूत्रों का कहना है कि 2003 विधानसभा चुनाव में जावली के मैनेजमेंट के सहारे चुनाव जीतकर प्रबंधन की महत्ता समझ आई थी। भाजपा के 173 विधायक जीते थे और 42.50 प्रतिशत वोट हासिल हुए थे। इस चुनाव में उमा भारती की तेजतर्रार छवि और तत्कालीन दिग्विजय सिंह सरकार की नाकामी को व्यवस्थित तरीके से जनता के सामने रखा। इसलिए 2008 के विधानसभा चुनाव के एक साल पूर्व दीपावली के बाद चुनावी मैनेजमेंट का काम शुरू कर दिया था। भाजपा सरकार में तीन मुख्यमंत्री और सरकार के अपेक्षानुरूप परफार्मेंस की कमी के चलते भाजपा को तीस सीटों का नुक़सान उठाना पड़ा। भाजपा को पिछले चुनाव के मुकाबले पांच प्रतिशत कम वोट मिले। 143 विधायक ही चुनकर आ सके।

2013 में चुनावी मैनेजमेंट का कार्य मकर संक्रांति से शुरू किया गया। भाजपा का वोट प्रतिशत सवा सात प्रतिशत बढ़कर 44.88 प्रतिशत हो गया। बाईस विधायक ज्यादा जीते। जिसके चलते विधानसभा में भाजपा के 165 विधायक हो गये। हांलांकि चुनाव के पूर्व भाजपा ने लोकसभा चुनाव 2014 को दृष्टिगत रखते हुए नरेंद्र मोदी को प्रधानमंत्री पद के उम्मीदवार के तौर पर प्रोजेक्ट कर दिया था। जिसका बढ़ा फायदा मध्यप्रदेश में भाजपा को मिला।

2018 में इस कार्य की शुरुआत मई 2018 से की गई। जिसके चलते चुनावी मुद्दे सही समय पर नहीं समझ पाए। हांलांकि भाजपा को कांग्रेस के मुकाबले लगभग 40 हजार वोट ज्यादा मिले पर विधानसभा में सबसे बड़े दल के तौर पर कांग्रेस उभर कर सामने आई। भाजपा को 56 सीटों और पौने चार प्रतिशत वोटों का नुक़सान हुआ।भाजपा को 109 सीटें 41 प्रतिशत वोटों के साथ मिली। कांग्रेस 114 सीटें जीतकर बड़े दल के तौर पर उभरी।चुनावी प्रबंधन सूत्रों का कहना है कि अगर मैनेजमेंट सही समय पर कर लिया जाता तो विधानसभा में सदस्यों के लिहाज से स्थिति पहले ही भाजपा की ज्यादा बेहतर होती।

इस बार चुनाव में मात्र चार पांच माह ही शेष हैं और भाजपा में चुनाव प्रबंधन की शुरुआत अब होने जा रही है।

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गौरव चतुर्वेदी

खबर नेशन

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