हम नफ़रतें मिटाकर होली मना रहे हैं

 कवि सम्मेलन पर बिखरे इंद्रधनुषी रंग

इंदौर। रंगों के त्यौहार के जश्न के मौके पर मालवा श्रमजीवी पत्रकार संघ की मेजबानी में चिमनबाग स्थित स्कॉउट ग्राउंड पर बांगडू हास्य कवि सम्मेलन आयोजित किया गया।जिसमें देशभर से कवि, कवयित्री,शायरों विभिन्न रस की रचनाएं सुनाकर खूब रंग जमाया। मालवा श्रमजीवी पत्रकार संघ के प्रदेश अध्यक्ष समीर पाठक और प्रदेश उपाध्यक्ष प्रवीण धनोतिया ने बताया कि इस मौके पर पत्रकार अतुल पाठक की याद में 5 पत्रकारों और 5 समाजसेवियों को स्व.अतुल पाठक स्मृति अवार्ड से नवाजा गया। कवि सम्मेलन में इंदौर से शायर शरीफ कैफ,उस्ताद शायर इसहाक़ असर, मांडव से हास्य रस के कवि धीरज शर्मा,राजस्थान से गीतकार नरेंद्र पाल जैन,मेरठ से श्रंगार रस की शुभम त्यागी, सिवनी से हास्य रस के मुकेश मनमौजी, ओज रस के मुकेश मोलवा,राजगढ़ से अंशुल व्यास,इंदौर से वीर रस के हिमांशु भावसार की रचनाएं सुनने को मिली।डूंगरपुर राजस्थान के विपुल विद्रोही ने संचालन की ज़िम्मेदारी संभाली। कवि सम्मेलन में कवि शायरों ने राष्ट्रीय एकता और सामाजिक समरसता का संदेश दिया। हास्य-व्यंग्य, गीतों तथा ग़ज़लों से सजी इस शाम में संजीदा शायर शरीफ कैफ लगातार दूसरी बार बांगडू हास्य कवि सम्मेलन में शामिल हुए।उन्होंने रंगारंग त्यौहार के ज़रिए चमन में भाईचारे का पैगाम दिया,शायर शरीफ कैफ ने खूबसूरत ग़ज़ल सुनाई-

रंगों में रंग मिलाकर होली मना रहे हैं,
थोड़ी सी भंग खाकर होली मना रहे हैं।
आंखें हैं जिनकी काली होंठों पे जिनके लाली,
हम उनका संग पाकर होली मना रहे हैं।
ग़ज़लों की डालियों पर गीतों की है लताएं,
हम भी चमन में आकर होली मना रहे हैं।
ये अपना भाईचारा क़ायम रहे हमेशा,
मालिक से ये दुआ कर होली मना रहे हैं।
ऐ कैफ अपना भारत दुनिया की आबरू है,
हम नफ़रतें मिटाकर होली मना रहे हैं।

मेरठ से आई कवयित्री शुभम त्यागी ने श्रंगार रस में  मोहब्बत प्यार की बात कही-

मैं आज़ादी की चिंगारी शहर मेरठ से आई हूँ,
मोहब्बत की मैं बदली हूँ,मैं दीवानों पे छाई हूँ।

नरेंद्रपाल जैन ने अपनी रचना में किरदार को सुधारने पर ज़ोर दिया।उन्होंने सुनाया-
  
प्यार अगर चाहो तो देखो, प्यार तुम्हारा कैसा है,
जीवन के इस रंगमंच पर, सार तुम्हारा कैसा है।
दुनिया याद रखेगी तुमको, या फिर भूलेगी इक दिन,
इस पर निर्भर करता कि, किरदार तुम्हारा कैसा है।

उस्ताद शायर इसहाक़ असर ने नई नस्लों की बेहतरी के लिए नसीहत की-

तलवार अगर मुफ्त भी मिलती हो तो मत लो,
तलवार से बच्चों के मुक़द्दर नहीं बनते।

देर रात तक सुनने-सुनाने का सिलसिला चलता रहा।तकरीबन चार घंटों तक श्रोताओं ने कविताओं का रसास्वादन किया।

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