यह घर में घुसकर दिल चुराने का खेल है-जयश्री पिंगले
मर्दाना घमंड और जोश से भरी ठसक नरेंद्र मोदी को औरतों के दिल में एक खास जगह पर ले जाती है. जहां कोई फिल्म स्टार, कोई दूसरा राजनेता नहीं टिकता. भाजपा अगर महिला वोटो के दम पर गाय पट्टी के इलाके से कांग्रेस को साफ कर रही है तो इसकी वजह 56 इंच की शेखी बघारती वह छवि है जो औरतों के दिल दिमाग पर सर चढ़ कर बोलती है. देश की राजनीति में लंबे अरसे से सेक्स सिंबल की जगह खाली थी. यह एक करिश्माई अंदाज है, जो सीधा औरतों के दिलों में उतरता है. मोदी ने उन महीन तारों को छुआ है. जो औरतों की गहरी राजदार जिंदगी में सितार की तरह बजते हैं.
हिंदी पट्टी के तीन खास राज्यों में कांग्रेस के सफाए की वजह घिसे पिटे वोट शेअर, सीट के बंटवारे, बागियों खेल नहीं है. यह घर में घुसकर औरतों के दिल चुराने का खेल है. जिसकी खबर चौकीदार बनकर बैठे पति को भी नहीं है. कांग्रेस का झंड़ा उठाकर घूम रहे पति के घर में ही औरतों ने मोदी और शिवराज को वोट दे दिया है. मध्यप्रदेश में भाजपा ने साढ़े अड़तालीस फीसदी वोट लाकर अब तक का सबसे बड़ा रेकार्ड बना है तो इसकी वजह मोदी और शिवराज की मर मिटने वाली जुगलबंदी है.
मोदी सीना फूला फूला कर दंभ से भरी बाते करते हैं वहीं शिवराज हर औरत को उसकी दर्द भरी दास्तान सुनाने लगते हैं. गांव के एक इलाके में लाड़ली बहना के पैसे बंटने के बाद पहुंचे शिवराज के शो को देखकर कई अधिकारी चौंक गए. औरतें आंखों में आंसू भर भर कर शिवराज को सुन रही थीं. उन्हें दुआएं दे रही थी. यह उनका अपना पैसा था जो पति की चाकरी करने, खेत में हाथ बंटाने के बाद भी हाथ फैलाकर नहीं मांगना पड़ रहा था. तीन हजार तक कर दूंगा.. शिवराज की यह बाते उन्हें गहरे सुकून में ले जा रही थी.
जिसने भी इस नज़ारे को करीब से देखा था, वह तभी जान गया था कि शिवराज ने औरतों की कमर में खोंच कर बंधने वाली साड़ी की सलवटों वाली चोर पोटली में अपना वोट रख लिया है. हारने वाला चेहरा औरतों का भाई बनकर सेहरा बांधने वाला है. टारगेट के साथ शिवराज ने पिछले तीन महीनों में घूम –घूम कर सिर्फ औरतों को साधा. पूरे खज़ाने को औरतों के लिए खोल दिया. काम रुक गए, पेमेंट रुक गए कोई चिंता नहीं की. किसी भी कीमत पर बहनों का साथ मिल जाए. इसकी कवायद चलती रही. मुसलमानों का 9 फीसदी वोट भी मुस्लिम औरतों के दम पर तोड़ा गया.
भाजपा का लक्ष्य अपना दस फीसदी वोट बढ़ाना था. 2003 के बाद उसने हर चुनाव में अपने 9 फीसदी तक वोट को आगे रखा.सिर्फ 2018 में ही कांग्रेस ने 40 फीसदी पर बराबरी कर ली. मध्यप्रदेश में बसपा, सपा, गोंडवाना गणतंत्र पार्टी और निर्दलीय मिलकर 20 फीसदी वोट खींच लेते हैं. भाजपा ने बसपा, सपा, आप, गोगोपा जैसी पार्टियों का सफाया कर दिया वहीं औरतों का 5 फीसदी वोट बढ़ाकर अपनी जीत गणित पक्का कर लिया. कांग्रेस 40 फीसद वोट पर टिकी रही.
चुनावी हवा अगर दिखाई नहीं दे रही थी, इसकी वजह औरतें थीं. जो अपने राज़ दिलों में रखती हैं. मोदी और शिवराज उनका दिल उड़ा चुके थे. रही सही कसर हिंदुत्व के उस अखाड़े ने कर दी थी. जहां सनातनियों को ड़र सता रहा है कि उन्हें मच्छर की तरह खत्म करने की धुआं मशीन भाजपा से इतर नेताओं ने पीठ पर चढ़ा ली है. मुसलमानों की आबादी बढ़ने वाली हैं और हिंदु अल्पसंख्यक होने वाले हैं. वहां उन्हें मोदी नज़र आते हैं जो बेरहमी से वार करते हैं. माथे पर त्रिपुंड़ी, बाजुओं में भस्प लेपकर गले में तुलसी, रुद्राक्ष की माला पहनकर अपने सनातनी होने का ढ़ोल पिटते हैं. यहां राहुल गांधी मानसरोवर तक पहुंचने के बाद भी मात खा जाते हैं. भरे चुनाव में वोट की खिचड़ी पकाने की बजाय वे बद्री- केदार पहुंच कर खिंचड़ी बांटते नज़र आते हैं लेकिन सनातनियों पर इसका कोई असर नहीं होता. वोट दिलों में जल रहे चुल्हें की हांड़ी में पकते हैं. कोसो दूर चल रही बीरबल की हांडी पर नहीं.
हिंदी पट्टी के पूरे इलाके में मोदी घूम घूम कर अपनी ग्यारंटी का भरोसा दिला रहे थे. गैस का चूल्हा, खाते में पैसा, मुफ्त अनाज, औरतों के नाम मकान, औरतों का तीन तलाक, और अब चुनाव में आरक्षण. वहीं राहुल गांधी बात कर रहे थे जितनी आबादी उतना हक. जातिगत जनगणना. एक बेदम बेअसर नारा. क्योंकि ओबीसी जिसे राहुल टारगेट कर रहे थे. वह यूपी बिहार का नारा है.जो इन हिंदी पट्टी के इन राज्यों में फिट नहीं है. यहां पिछड़े बहुत आगे हैं. शिवराज पिछड़ों के वह सरताज है जो पिछले 18 साल से राज कर रहे हैं. राहुल बेखबरी की तरह अपना चुनावी कैंपेन अनमने ढंग से करते रहे.
कमलनाथ, गेहलोत, बघेल को राहुल की दरकार नहीं थी. मनमाने फैसले लेने वाले, हाईकमान की खुले आम न मानने वाले यह नेता अपने ढंग से चुनाव चुनाव खेलते रहे. कमलनाथ ने कर्नाटक में कांग्रेस की जीत तय करने वाले रणनीतिकार को चलो चलो के साथ रवाना कर दिया. वहीं अपनी कोटरी में दो पुराने पुलिस अधिकारियों और कभी चुनाव नहीं लड़ने वाले नेताओं को बैठाकर दरबार सजाया. कांग्रेस कार्यकर्ता और आम आदमी की पहुंच से दूर रहने के शौकीन कमलनाथ चुनावी समय में दिग्विजय सिंह को ही कहने लगे बगैर बताए मिलने कैसे आ गए. पूरा खेल अंधेरे में चलता रहा. दिग्विजय सिंह जनता के नहीं लेकिन कांग्रेस कार्यकर्ता के नेता हैं. जो कम अंतर से हारी हुई 66 सीटों पर घूम कर मैदान से बाहर हो गए. कमलनाथ ने हाइमकान से खुले तौर पर कहा – दिग्विजय की चुनावी सभा से वोट कटते हैं इसलिए इन्हें दूर रखा जाए. इसका असर यह हुआ कि दिग्विजय पार्टी कार्यकर्ताओं को भी चार्ज करने का काम नहीं कर पाए. पिछले चुनाव में कमलनाथ – दिग्विजय से ज्यादा चुनावी रैलियां ज्योतिरादित्य सिंधिया ने की थी. वह ताजा और करिश्माई चेहरा था. जो औरतों और युवाओं के वोट खींचने में कामयाब रहा. भाजपा ने सिंधिया को अपनी ओर खींच कर कांग्रेस का ग्लैमर और चार्म भी लूट लिया.
गेहलोत का हारना तय था. जो अपने से छोटे सचिन पायलट को पटा न पाए . पार्टी के अध्यक्ष पद को मुख्यमंत्री के लिए ठुकरा दे. ऐसे नेता की यह आखिरी पारी थी. चौंकाने वाला खेल छत्तीसगढ़ का रहा. भूपेश बघेल दंभ से घिरे रहे. अरविंद नेताम जैसे पुराने कांग्रेसी को झटका देकर उन्होंने सत्ता का झटका खा लिया.
मध्यप्रदेश में कमलनाथ ने भाजपा को इतिहास बनाने का और कांग्रेस को इतिहास की धूल से भरी किताबों में खोने का मौका दे दिया. जहां जहां भी कांग्रेस 20 साल सत्ता से बाहर हुई है वहां फिर वापसी नहीं कर पाई है. शिवराज अब भाजपा के प्रधानमंत्री पद के दावेदारों में दिखाई देने लगे हैं. जहां मोदी के बाद योगी का जिक्र है अब सबसे सहज और सरल शिवराज भी उस क्लब में शामिल हो गए हैं. यह वक्त तय करेगा कि मोदी इस जीत में कितना श्रेय शिवराज को देते हैं या खुद ही पूरा बटोर कर मुँह फेर लेते हैं.