दृष्टिहीनता से मुकाबला मुश्किल नहीं

 खबर नेशन / Khabar Nation

(विश्‍व दृष्टि दिवस: 12 अक्टूबर पर विशेष)

 - संजय सक्सेना

 

सर्वे भवंतु सुखिनः सर्वे संतु निरामया, सर्वे भद्राणि पश्यंतु, मा कश्चिद् दुःख भागभवेत..। हमारे देश में ईश्वर से प्रार्थना के दौरान इस श्लोक का पाठ भी किया जाता है। और यह दर्शाता है कि हमारे यहां दृष्टिहीनता कितनी चिंताजनक स्थिति में है। विश्‍व स्वास्थ्य संगठन के अनुसार, 50 साल और उससे अधिक उम्र के लोगों में सभी नेत्रहीन 82 प्रतिशत हैं। दुनिया भर में लगभग 4 करोड़ 50 लाख लोग दृष्टिहीनता की समस्या से जूझ रहे हैं। भारत में दुनिया के सर्वाधिक दृष्टिहीन रहते हैं, इनकी संख्या सवा तीन करोड़ के आसपास होगी। यही कारण है कि पूरे विश्‍व में दृष्टिहीनता दूर करने के प्रयास प्रमुखता से किए जा रहे हैं। नेत्र बैंक खोले जा रहे हैं और नेत्रदान के लिए भी लोगों को प्रोत्साहित किया जा रहा है।

दृष्टिहीनता को देखते हुए ही अंतरराष्ट्रीय स्तर पर दृष्टिहीनता दिवस मनाने का निर्णय लिया गया है। प्रत्येक वर्ष अक्टूबर माह के दूसरे गुरुवार को विश्‍व दृष्टि दिवस के रूप में मनाया जाता है। यह दिन दृष्टि के महत्व और दृष्टिहीनों की समस्याओं की ओर ध्यान आकर्षित करता है। विश्‍व स्वास्थ्य संगठन, अन्य स्वास्थ्य समस्याओं की ही तरह, दुनिया भर में अंधापन से बचाव के लिए भी काम करता है। लॉयन्स क्लब इंटरनेशनल और कुछ अन्य अंतरराष्ट्रीय संगठन भी विश्‍व दृष्टि दिवस मनाने में सहयोग करते हैं। विश्‍व दृष्टि दिवस बचने योग्य अंधेपन और दृष्टि नुकसान के वैश्विक मुद्दे पर ध्यान केंद्रित करने के लिए जागरूकता प्रसारित करने वाला अंतरराष्ट्रीय दिवस है।

विश्‍व दृष्टि दिवस अंधेपन की रोकथाम के प्रयासों को प्रोत्साहित करने के महत्व पर प्रकाश डालता है। अस्सी प्रतिशत दृष्टिहीनता रोके जाने योग्य है या उपचार योग्य है। पांच में से चार लोग बचने योग्य दृष्टि नुकसान से पीड़ित है। विश्‍व दृष्टि दिवस बचने योग्य अंधेपन और दृष्टि नुकसान को समाप्त करने वाले विभिन्न रोकथाम के उपायों की पहल के लिए व्यक्तियों, समुदायों को प्रोत्साहित करने वाले संगठनों को मंच प्रदान करता है। दृष्टि नुकसान विशेषज्ञ समूह की ताजा रिपोर्ट के अनुसार 253 मिलियन से अधिक लोग दृष्टिहीनता से पीड़ित हैं। 36 मिलियन लोग दृष्टिहीन है। 217 मिलियन लोग गंभीर या मध्यम दृष्टि नुकसान (दूर की दृष्टि) से पीड़ित है। नेत्रहीन लोगों में 55 प्रतिशत महिलाएं हैं। विश्‍व दृष्टि दिवस मनाने के प्रमुख उद्देश्य हैं- दृष्टिहीनता को एक प्रमुख स्वास्थ्य समस्या का दर्जा दिलाना और इसके प्रति जनजागरूकता बढ़ाना, सरकार, खासकर स्वास्थ्य मंत्री को कार्यक्रम में शामिल होने तथा राष्ट्रीय दृष्टिहीनता बचाव कार्यक्रमों हेतु राशि आवंटित करने के लिए प्रोत्साहित करना तथा दृष्टिहीनता से बचाव, विजन 2020 और इसकी गतिविधियों के मामले में जागरूक बनाना और विजन 2020 कार्यक्रम की गतिविधियों के लिए समर्थन हासिल करना।

भारत में 2020 तक 31.6 मिलियन दृष्टिहीन लोग होंगे :

पूरी दुनिया में भारत ऐसा देश हैं, जहां सर्वाधिक दृष्टिहीन लोग रहते हैं, उनमें से अधिकांश लोगों को यह बात नहीं पता कि 80 प्रतिशत मामलों में इस स्थिति की रोकथाम की जा सकती है। राष्ट्रीय दृष्टिहीनता नियंत्रण कार्यक्रम, जो कि स्वास्थ्य एवं परिवार कल्याण मंत्रालय, भारत सरकार द्वारा सौ प्रतिशत केंद्र प्रायोजित योजना है, यह संस्था व्यापक नेत्र देखभाल सेवाओं के प्रावधान के माध्यम से दृष्टिहीनता की रोकथाम, दृष्टि हानि  तथा भारत में नेत्र देखभाल पर समुदाय की जागरुकता बढ़ाने के लिए वर्ष 1976 से काम कर रही है। वर्ष 2020 तक दृष्टिहीनता के प्रभाव को 0.3 प्रतिशत तक कम करने के लक्ष्य को प्राप्त करने के लिए विभिन्न गतिविधियों का लक्ष्य रखा गया हैं। बाल्यावस्था अंधापन कम दृष्टि का राष्ट्रीय प्रसार 0.80 प्रति हजार है। मोतियाबिंद, अपवर्तक त्रुटि, क्रोनियाल अंधा, ग्लूकोमा, अंधेपन के मुख्य कारण हैं।

दिल्ली आई सेंटर और सर गंगाराम अस्पताल में कॉर्निया एवं रेफरेक्टरी सर्जरी स्पेशलिस्ट डॉ. इकेदा लाल जागरूकता फैलाने के महत्व पर जोर देती हैं। उनका कहना है कि जैसे दृष्टिहीनता के 80-90 प्रतिशत मामलों में रोकथाम संभव है यदि लोग इस बात को जान लें कि इसका इलाज कैसे करना है। वह कहती हैं, भारत में दृष्टिहीनता होने के आम कारणों में, कैटरेक्ट, ग्लूकोमा, मैक्यूलर डिजनरेशन, इनकरेक्ट रिफरेक्टिव एरर, डायबिटिक रेटिनोपैथी और कॉरनियल ब्लाइंडनेस शामिल है। दुर्भाग्य से कई बार लोगों को यह पता नहीं होता है कि इन समस्याओं का इलाज संभव है और दृष्टिहीनता को ठीक किया जा सकता है। विश्‍व दृष्टि दिवस जैसे दिन लोगों को जागरूक करने और इस तरह के महत्वपूर्ण मुद्दे को सामने लाने का बेहतरीन अवसर होते हैं।

नेत्र रोग विशेषज्ञों का कहना है कि विश्‍व में दृष्टिहीनता के लगभग 80 प्रतिशत मामलों को रोका जा सकता है, यानी या तो यह रोकथाम योग्य होता है या फिर उपचार योग्य। आइये इस दिशा में लोगों में जागरूकता पैदा करें, ताकि समाज में जो लोग लापरवाही की वजह से दृष्टिहीन होते हैं वह जीवनभर के लिये अपनी दृष्टि सुरक्षित रख सकें। रोकथाम योग्य दृष्टिहीनता के ऑक्यूलर कारणों में, ट्रेकोमा, विटामिन ए की कमी हो सकती है, जबकि उपचार योग्य दृष्टिहीनता में कैटेरेक्ट, अनकरेक्टेड रिफ्रैक्टिव एरर, डायबिटिक रेटिनोपैथी हो सकती है। 1976 में भारत विश्‍व का पहला ऐसा देश था, जिसने दृष्टिहीनता की रोकथाम के लिये नेशनल प्रोग्राम की शुरुआत की थी। राष्ट्रीय स्‍वास्‍थ्‍य देखभाल नीतियों में दृष्टिहीनता को जड़ से खत्म करना एक प्रमुख हिस्सा बन गया है। हालांकि, उम्र बढ़ाने और दृष्टिहीनता के बोझ को कम करने के लिये हमें संभवत: जागरूकता अभियान चलाने की जरूरत है। साथ ही दृष्टिहीनता की रोकथाम के उपाय को और भी स्पष्ट और सीधे तौर पर बताने की जरूरत है।

दृष्टिहीनता के आम कारण :

अभी भी देश में ज्यादातर लोगों में दृष्टिहीनता के सबसे प्रमुख कारण, कैटेरेक्ट्स यानि मोतियाबिंद के बारे में जानकारी नहीं है। उन्हें नहीं पता कि इसका किसी भी चरण में इलाज किया जा सकता है। अभी भी ज्यादातर लोग सर्जरी करवाने से पहले अपने कैटेरेक्ट के पकने का इंतजार करते हैं, इसके बाद स्थिति बदतर हो जाती है और कुछ मामलों में आंख की रोशनी चली जाती है। एक रिपोर्ट में यह बात कही गई है कि कैटेरेक्ट, जो उम्र बढने पर आंख की लेंसों में क्लाउडिंग की वजह से होते है, आंखों में धुंधलापन को बढ़ावा देता है और देश में 50-80 प्रतिशत असमय दृष्टिहीनता के लिये यह जिम्मेदार होता है।

ग्लूकोमा का कारण :

आंखों में ऑप्टिक नर्व के क्षतिग्रस्त होने से ग्लूकोमा होता है, क्योंकि आमतौर पर उच्च इंट्रा-ऑक्यूलर दबाव के कारण ऐसा हो सकता है। इसका इलाज दवाओं, लेजर ट्रीटमेंट या सर्जरी द्वारा किया जा सकता है, लेकिन समय पर इसकी जांच जरूरी है। देश में 12 मिलियन लोगों के ग्लूकोमा से पीड़ित होने के साथ और इसकी वजह से 1.2 मिलियन लोगों के आंखों की रोशनी चली जाती है। ऐसा लगता है कि इसकी रोकथाम और इलाज के बारे में जागरूकता काफी कम है। इतना ही नहीं आंकड़ों से पता चलता है कि ग्लूकोमा के 90 प्रतिशत से भी ज्यादा मामलों में इस कम्युनिटी में जांच नहीं हो पाती है।

डायबिटिक रेटिनोपैथी :

खासतौर से देश में डायबिटीज की बहुलता को देखते हुए, भारत में दृष्टिहीनता का एक और प्रमुख कारण डायबिटिक रेटिनोपैथी है। विशेषज्ञों के अनुसार लोगों को यह पता होना चाहिये कि समय के साथ सभी टाइप 2 और लगभग सभी टाइप 1 डायबिटिक, डायबिटिक रेटिनोपैथी में तब्दील हो जाते हैं, लेकिन नियमित जांच और सही उपचार से इसे रोका जा सकता है।

कोरोनियल ब्लाइंडनेस :

कोरोनियल ब्लाइंडनेस की वजह से देश में लगभग 6.8 मिलियन लोग प्रभावित हो रहे हैं, जिसका इलाज कोरोनियल ट्रांसप्लांट के जरिये संभव है। एक बार फिर, हमें नेत्रदान को लेकर और अधिक जागरूकता फैलाने की जरूरत है। उचित समय है कि नीति निर्माता और हितधारक ना केवल जागरूकता फैलाने का प्रयास करें, बल्कि इसके लिये स्थाई समाधान भी ढूंढें।

नेत्रदान को प्रोत्साहित करना :

नेत्रदान के प्रति लोगों को जागरूक करने के तमाम प्रयास के बावजूद नेत्रदान करने वालों का आंकड़ा उत्साह बढ़ाने वाला नहीं है। नेत्रदान और कार्निया प्रत्यारोपण के वर्तमान आंकड़ों पर गौर करें तो इसके दानदाता एक फीसदी से भी कम हैं। यही वजह है कि देश में 25 लाख लोग अभी भी दृष्टिहीनता की चपेट में हैं। देश में हर साल 80 से 90 लाख लोगों की मृत्यु होती है लेकिन नेत्रदान 25 हजार के आसपास ही होता है।

भारत को हर साल 2.5 लाख डोनेट की गई आंखों की जरूरत होती है, देश के 109 नेत्र बैंक (दिल्ली में पांच) अधिकतम 25,000 आंखें एकत्र करने का प्रबंधन करते हैं, जिनमें से 30 प्रतिशत का उपयोग नहीं किया जा सकता है। एशिया पैसिफिक ऑप्टोमेट्रिस्ट्स ऑर्गनाइजेशन के निवर्तमान अध्यक्ष अजीत भारद्वाज के अनुसार, भारत में 12,000 नेत्र रोग विशेषज्ञ हैं जिनके पास अंधापन रोकने वाली सर्जरी करने का कोई समय नहीं है क्योंकि वे रोगियों की सामान्य नेत्र जांच से भर जाते हैं। भारत के लिए, यह महत्वपूर्ण है कि नेत्र रोग विशेषज्ञ सर्जरी पर ध्यान केंद्रित करते हैं और ऑप्टोमेट्रिस्ट प्रीबायोपिया, कॉन्टेक्ट लेंस, कम-दृष्टि एड्स और दृष्टि चिकित्सा जैसी प्राथमिक नेत्र देखभाल अपवर्तक त्रुटियों का प्रभार लेते हैं। यही कारण है कि अधिकांश देश परहेज अंधापन को नियंत्रित करने और समाप्त करने में कामयाब रहे। देश में 153 मिलियन लोगों को पढने के लिए चश्मे की आवश्यकता होती है, लेकिन उन तक पहुंच नहीं है।

नेत्र स्वास्थ्य के लिए सुझाव :

- अच्छा खाएं। आहार में अधिक से अधिक मात्रा में हरी सब्जियों एवं पीले व लाल फलों को शामिल करें।

- धूम्रपान न करें। धूम्रपान मोतियाबिंद, ऑप्टिक तंत्रिका क्षति और धब्बेदार अधरू पतन के जोखिम का कारक है।

- आंखों को सूरज की पराबैंगनी किरणों से बचाने के लिए धूप का चश्मा पहनें।

- खतरनाक कार्य के दौरान सुरक्षा चश्मा या सुरक्षात्मक चश्में का उपयोग करें।

- कंप्यूटर स्क्रीन से दूर रहें। हर बीस मिनट में अपनी आँखों को आराम दें, बीस सेकंड के लिए बीस फीट की दूरी

  पर देखें।

- उचित स्वच्छता बनाए रखें अपनी आंखों को मलने से पहले या अपनी आँखों को छूने से पहले अपने हाथ ठीक   

  से धोएं।

- आंखों की जांच के लिए नियमित जाएं।

- आँखों के संक्रमण से बचने के लिए प्रस्तावित किए बिना (ओटीसी) दवाओं का सेवन न करें।

- नियमित व्यायाम करें, क्योंकि नियमित व्यायाम न केवल आपके शरीर को तंदुरुस्त रखता है, बल्कि आपकी आंखों

  को भी स्वस्थ बनाता है।                       (लेखक दैनिक सांध्य प्रकाश समाचार पत्र के स्थानीय संपादक हैं।)

                                                                       (प्रस्‍तुति: मनुज फीचर सर्विस)

 

 

 

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